27 अगस्त 2012

श्री गंगाजी पर बांध,हिन्दू महासभा के साथ हुए ब्रिटिश समझौते का उल्लंघन !

        श्री गंगाजी पर बांध,हिन्दू महासभा के साथ हुए ब्रिटिश समझौते का उल्लंघन !
       
हिन्दुओ के लिए चातुर्मास एक पर्व होता है,मल मास के कारन भी पुण्यप्रद नदियों का स्नान एक परंपरा है. कुम्भ पर्व-मकर संक्रांति को भी स्नान की परंपरा रही है. मोक्षदायिनी गंगाजी का आविर्भाव हिन्दू दैवतो से जुड़ा है.गंगोत्री-गोमुख से गंगाजी का प्रवाह अवरूध्द हुवा है. गंगाजी का तीर्थ रूप जल विदेशो में बेचा जा रहा है.प्राकृतिक जल प्रवाह को रोका गया है.ब्रिटिश सरकार द्वारा हिन्दू महासभा के साथ किया समझौता भ्रष्टाचारीयोने नकारा.श्री शंकराचार्य श्री स्वरूपानंदजी, अविमुक्तेश्वरानंदजी महाराज के साथ सहस्त्रो साधू-संन्यासीयो ने दिल्ली के जंतर मंतर पर १८ जून १२ को सरकार के विरोध में धरना प्रदर्शन किया.स्वामी निगमानंद जैसे अनेक संत-महंत श्रीगंगाजी के लिए प्राण दे चुके है.उपवास किये है परन्तु केंद्र सरकार हिन्दुओ की मान्गोंको अनदेखा कर रही है.                                            
उत्तर-पूर्वोत्तर राज्योंकी दो प्रमुख नदिया गंगा और ब्रह्मपुत्र ! टिहरी बाँध ने और चीन ने हमारी आशाओ को फलित होने से पूर्व ही रौंद दिया है.ब्रह्मपुत्र का पानी रोकना और गंगाजी का प्रवाह हिमालय से मोड़ने का षड़यंत्र हो रहा है.
* अखिल भारत हिन्दू महासभा;गंगा महासभा; B.H.U. के संस्थापक महामना पं.मदन मोहन मालवीय जी के साथ १८-१९ दिसंबर १९१६ को ब्रिटिश सरकार का समझोता हुवा था.
    उपस्थित महानुभाव-महाराजा ग्वालियर,जयपुर,बीकानेर,पटियाला,अलवर,बनारस,दरभंगा,महाराजा कासिम बाजार मनिन्द्र नंदी प्रथम राष्ट्रिय अध्यक्ष अ.भा.हिन्दू महासभा
              उपस्थित ब्रिटिश अधिकारी-रोज,सचिव भारत सरकार,लोक निर्माण विभाग २)बार्लो मुख्य अभियंता संयुक्त उत्तर प्रान्त ३)स्टैंडले,अधीक्षण अभियंता,सिंचाई ४)कूपर कार्यकारी अभियंता,सिंचाई ५)आर.बर्न,मुख्य सचिव संयुक्त प्रान्त
अखिल भारत हिन्दू महासभा संस्थापक पं.मालवीय जी,राष्ट्रिय महामंत्री लाला सुखबीर सिंह आदि अन्य

* सन १९०९ में गंगा जी पर बाँध का प्रस्ताव हुवा था.परंतु ,१९१४ समझोते में हिन्दू तिर्थालूओंको स्नानार्थ निरंतर अविच्छिन्न पर्याप्त पानी मिलेगा.ऐसा १९१६ अनुच्छेद ३२- i में वचन दिया गया  था, "गंगा की अविरल अविच्छिन्न धारा कभी भी रोकी नहीं जाएगी l" ऐसा लिखा है।                   *२६ सप्तम्बर १९१७ को शासनादेश २७२८/ lll- ४९५ जारी हुवा.लाला सुखबीर सिंह महामंत्री अ.भा. हिन्दू महासभा को भेजे पत्र,उसके अनुच्छेद ३२ भाग ii में कहा गया है कि,
" इसके विपरीत कोई भी कदम हिन्दू समाज से पूर्व परामर्श के बिना नहीं उठाया जायेगा."

            आज स्थिति यह है कि,श्री गंगा जी की पवित्र धारा अवरूध्द-अशुध्द हुई है.मायनिंग का अवैध कारोबार राजाश्रयसे बेरोकटोक जारी है,शहरीकरण का निकास गंगा जी में छोड़ा जा रहा है.कारखानों का अशुध्द निकास गंगाजी में है.शव दहन और अस्थिया-राख के गंगार्पण को हिन्दू विरोधी निशाना बना रहे है.अनेक धर्माचार्य श्री गंगा शुध्दी के लिए व्रत-तप-उपवास कर रहे है परन्तु भीषण समस्या को सुनने केंद्र और राज्य सरकार को समय नहीं है. विदेशी साम्राज्यवाद के सत्ताधारी गुलामो को यह समझना चाहिए की, ब्रिटिश सरकार को हिन्दुओ की मांग को मानना पड़ा था.यह सरकार हिन्दू विरोधी तो है ही, अंततः जाना पड़ेगा हिन्दू संसद आएगी.                                                                                                                                                   राष्ट्रिय विकल्प :- देश में बारह मास प्रवाहित नदिया वर्षा काल में बाढ़ से उग्ररूप धारण करती है. तो,कही सुखा पड जाता है। वर्षा काल में ही बहने वाली नदिया ग्रीष्म में सुखी होती है.भौगोलिक स्थिति के कारण जल असमतोल निर्माण हुवा है.सन १९६५-७६ के बिच एक प्रस्ताव आया गंगा-कावेरी प्रकल्प ! उसमे से अधिक चर्चा कॅप्टन दस्तूर की ' गारलैंड केनोल स्कीम' की तथा दूसरी डॉ.के.एल.राव की 'नैशनल वाटर ग्रिड स्कीम' थी जिसे अधिक मान्यता मिली.गंगा से कावेरी तक २६४० कि.मी.जल प्रवाह से १६८० क्यूमेक्स जल १५० दिन तक बहेगा.यह अनुमान था।
       इस कार्य में समस्या जल को उठाने की है,इस योजना में १४०० क्यूमेक्स जल ५४९ मीटर ऊँचा उठाना पड़ेगा.जिसके लिए ५-७ मेट्रिक किलो वेट बिजली की आवश्यकता है.नर्मदा का जल गुजरात-राजस्थान में फ़ैलाने २७५ मीटर तक उठाना पड़ेगा.गंगा-ब्रह्मपुत्र नदी प्रवाह एक करने के लिए १८००-३००० क्यूमेक्स जल १२-१५ मीटर तक उठाना पड़ेगा.विद्युत् भार नियमन के कारण यह असंभवसा है.परन्तु,राजस्थान के थार में अब श्री गंगाजी बहेगी ऐसा संकेत है।

       महाराष्ट्र के एक अभियंता श्री.एम्.डी.पोल जी ने १९७६ में 'इरिगेशन पोजेक्ट फॉर इंडिया' दिया था। जिसमे विद्युत् प्रयोग के बदले गुरुत्वकर्षण से गंगा-ब्रह्मपुत्र का जल कन्याकुमारी तक जा सकेगा.उसमे भी सुधार कर उन्होंने ' नैशनल इंटिग्रेटेड वाटर रिसोर्सेस डेवलोपमेंट प्लान फॉर इंडिया' बनाया था।
       हिमालय का जल स्त्रोत रोककर विशिष्ट ऊँचाई पर संचयन कर दार्जिलिंग में लाकर दक्षिण हिन्दुस्थान में घुमाव किया जाने का प्रस्ताव है.जिसमे दार्जिलिंग से रांची ५७५-६५० कि.मी. Underground Pressure Tunnels से २०० से २५० मीटर निचे से गुरुत्वाकर्षण से होकर बहेगा.
          प्राचीन काल में सगर वंशीय भगीरथ ने गंगा भूमि पर प्रवाहित की.अलकनंदा-मन्दाकिनी समेत तिन स्त्रोत एक साथ जोड़कर उत्कृष्ट अभियंता का अविष्कार किया था।'गंगा सागर' यह उनकी ही देन है.उत्तर से दक्षिण की ओर प्रवाह से हरित क्रान्ति तो होगी ही ५७,२२७ मैगावेट की विद्युत् निर्मिती अपेक्षित है.मत्स्योद्योग में बढौतरी होगी तथा उत्तर हिन्दुस्थान में ६७% बाढ़ में कमी आएगी.कृष्णा खोरे प्रकल्प या कोंकण रेल ने ऐसे प्रकल्प को प्रोत्साहित किया है.
          हिमालय से मिलनेवाले जल पर चीन की भी वक्र दृष्टी है,ब्रह्मपुत्र (त्सांगपो) नदी चीन से बहकर अरुणाचल प्रदेश से ईशान्य से हिन्दुस्थान में बहती है उसके प्रवाहो में अणु ध्वम्म कर उसे रोकने का षड्यंत्र हो रहा है और इस ही कारन से अरुणाचल को अपना बनाने का षड्यंत्र उजागर हुवा है.हिमालयीन स्त्रोत अथवा प्रवाह रोकने का भी प्रयास हो सकता है इसलिए उत्तर से दक्षिण गंगा कावेरी प्रवाह को जल्द से जल्द पूरा करने से लागत में भी कमी आएगी.परन्तु सरकार बांध बनाकर कम खर्च में लागत में बचत या भ्रष्टाचार कर रही है यह जाँच का विषय बनेगा।फिर भी यह हिन्दुओ की भावना को ठेंस पंहुचा रही है।
           टिहरी बाँध के निर्माण में स्थानीय लोगो को हानि पहुंचाकर जल स्त्रोत की अनियमितता हुई है.हिन्दू धार्मिक भावना को ठेस पहुंचाकर गंगा को सुखा-खनन आदि से गटर बहाकर प्रदूषित किया गया है.धर्माचार्योंकी अभ्यर्थना को सरकार अनुलक्षित कर उनके प्राण हर रही है.कुम्भ पर्व में उत्तराखंड सरकार ने महंतोंके स्नान बहिष्कार के आवाहन को रोकने का षड्यंत्र किया था फिर भी  अंतिम स्नान पर कुछ आखाड़ो के संत-महंतों ने बहिष्कार किया और मुख्यमंत्री निशंक को भी सत्ताच्युत होना पड़ा.१९९७ से अभियंता श्री.वीरभद्र मिश्र-वाराणसी गंगा जी को स्वच्छ निर्मल करने के प्रयास में लगे है प्रस्ताव पारित है परन्तु राजनीती आड़े आ रही है . ब्रिटिश हिन्दुस्थान में किये समझौते खंडित हिन्दुस्थान में रद्दी खाते में फेंक दिए है.इसलिए सरकार का विरोध !                                    ( सन्दर्भ-गंगा महासभा जमशेदपुर,झारखण्ड पुस्तिका तथा दिनांक १० अक्तूबर २००० दैनिक सामना में प्रकाशित श्री.सूर्यकांत पलसकरजी के लेख से अनुवादित )