17 जून 2012

कश्यपनील स्वर्गभूमि-कश्मीर के धर्मांतरण की कहानी

कश्यप निर्मित सम्राट नील संवर्धित "कश-नील "सन ५९९ तक भिन्न हिन्दू राजघरानो के नेतृत्व मे रहा .आगे कर्कोटक वंश के प्रतापदित्याने संभाला.कर्कोटक वंश पश्चात् ८५५ अवंती वर्मा ने राजपाट सम्भाला. प्रानान्तिक रोग के बाद त्रिपुरेश पहाड़ी के ज्येष्ठेश्वर मंदिर मे अंतिम समय बिताया.९५८ क्षेम गुप्त पश्चात् व्यभिचारी रानी दिद्दा १००३ तक रही पश्चात् भांजा संग्राम राज ने तुर्क गझनी का महमूद से लोहा लेकर वापस भेजा.परन्तु बलात्कारित वंश पीछे छुटा,जिन्हें हर्ष के कार्यकाल मे सेना मे १% लेकर इस्लाम की घुसपैठ आरम्भ हुई.११०० मे उसकी मृत्यु पश्चात ११५० तक जयसिंह के कार्यकाल मे घुसपैठ बढ़ी,राजाश्रय मिला.१२५१ सहदेव ने इस्लामिस्टो को प्रशासन मे सहभागी किया,तिब्बती शरणार्थी राजकुमार रिन्चन उसके सहयोगी,धर्म प्रचारक शाहमीर को अधिकार के स्थान दिए.इसी कार्यकाल मे स्वातस्थान से प्रथम सूफी संत सैय्यद शाराफुद्दीन बुलबुल शाह और पर्शियन सरदार लंकर चाक्क शरणार्थी आये,चाक्क जमात कश्नील मे घुल मिल गयी.  ततार सेनापति दुल्चू के आक्रमण को शरणार्थी इस्लामिस्टोने दुल्चू की सहायता की,सहदेव के किश्तवाड़ पलायन बाद लुट,बलात्कार,धर्मान्तरण  हुवा.   जिस रिन्चन को सहदेव ने आश्रय दिया वह शाहमीर के षड़यंत्र का शिकार हुवा,उसने सेनापति रामचंद्र की हत्या कर गद्दी छीन ली और उसकी पुत्री कोटारानी से विवाह करने बौध मत का त्याग करने का मन बना ही लिया था शाहमीर और बुलबुल शाह  के दबाव मे इस्लाम का स्वीकार किया इस प्रकार कश्नील पर प्रथम इस्लामी शासक मलिक सदरुद्दीन बना,परन्तु सत्ता शाहमीर के पास थी, जिसके कारन कश्मीर बना.रिन्चन की मृत्यु १३२० बाद पुत्र हैदर और कोटारानी शाहमीर के कब्जे मे रहे.वीरांगना कोटारानी के बलिदान पश्चात् शाहमीर ने राजभाषा संस्कृत के जानकर पंडितो को साथ जोड़ा तो हमदानी बाप बेटे ने ७०० अनुयायी मिलकर धर्मान्तरण को गति दी. सिकंदर ने प्रधान मंत्री सुहा भट्ट को सैफुद्दीन बनाया और हिन्दू संस्कृति ध्वस्त की.उसके पुत्र जैनुल आबदीन ने राजभाषा फारसी बनायीं. असाध्य रोग को पंडित श्रीभट्ट ने ठीक किया तो संपत्ति नकारनेवाले वैद्यराज की मांग पर बंदी हिन्दू मुक्त किये लुटी सम्पत्ति लोटाई,धर्मान्तरण रोका। अमरनाथजी के दर्शन करने जाने लगा.

धर्मनिष्ठ श्री भट्ट ने सामाजिक विषमता नष्ट कर हिन्दू समाज को कश्मीरी पंडित बनाया.जैनुल पुत्र हैदर १४७४ कार्यकाल मे फिर वही आरम्भ हुवा.१ वर्ष मे २४,००० हिन्दू धर्मान्तरित किये.१४७५ बाद अत्याचार के विरोध मे चक्क शिया पंथी बने और सैय्यदो का विरोध करने हिन्दुओ का साथ दिया,धर्मंतारितो को शिया पंथ मे जोड़ा आगे युसूफ चाक्क ने १६ वि शताब्दी मे  कब्ज़ा किया तो उसके अत्याचार से मुक्ति पाने हिन्दुओने लाहोर सामंत मानसिंह से सहायता मांगी. युसूफ को हटाकर याकूब सत्तासीन हुवा उसके अत्याचार से हिन्दू ,सुन्नी त्रस्त हुए तब प्रतिनिधि मंडल शैख़ शरीफ और बाबा दावूद ख्की के नेतृत्व मे अकबर के पास आये,उसके मीर कासिम ने चाक्क सत्ता भंग की. विकास हुवा जहाँगीर ने मिरू पंडित को सेनापति बनाकर सत्ता संभाली,शाहजहाँ ने अली मर्दन को राज्यपाल तो पंडित महादेव को सलाहकार बनाया,परन्तु महादेव के विरोध मे ख्वाजा माफ़ ने षड्यंत्र किया. सन १६६६ शाहजह की मृत्यु बाद औरंगजेब ने अपने शासन कालमे १४ धर्मांध प्रशासक दिए, तिलक जनेऊ शिखा की रक्षा करने गुरु श्री तेग बहादुर सोढ़ी आगे आये और अपने शिष्य सतिदास,मतिदास,दयालदास के साथ चांदनी चौक मे बलिदान दिया.मुहमद शाह के कार्यकाल मे कश्मीर सूबेदार अब्दुल समद बना तब कुछ समय ठीक था ,अफ़ग़ान सरदार नादिर शाह का आक्रमण हुवा बाद मे अहमद शाह अब्दाली ने १७५२ मे अब्दुल्ला खान आया उसे अब्दुल हसन ,सुखजीवन मल्ला ने मार कर सत्ता संभाली मल्ला ने अब्दाली की सत्ता नकारी और एकात्मता स्थापित कर विकास किया.उसकी हत्या पश्चात् महामंत्री पंडित कैलाश धर कश्मीर छोड़ गए अफ़ग़ान सरदार लाल मुहम्मद खान ने कब्ज़ा कर लुट लिया,खुर्रम खान के सामने भाग खड़ा हुवा .खुर्रम ने कैलाश धर को सुबेदारी दी और काबुल गया तो मीर फकीरुल्ला को विरोध मे खड़ा किया गया,उसने बामबा जमात के धर्मंतारितो को हिन्दुओ के विरोध मे खड़ा किया .कट्टर पंथियों ने कैलाश धर की हत्या की.  सन १७७६ अफ्घान सरदार हाजी करिम्दाद खान ने कब्ज़ा किया जिजिया लगाया ,उसका पुत्र आज़ाद खान ने पंडित दिलाराम को महमंत्री नियुक्त किया उसे कट्टर पंथी यो ने सत्ताच्युत करवाया .सन १७७२ अफाघन मीर हाजर खान सत्ता मे आया उसने १७९३ दिलाराम की हत्या की.असंख्य हिन्दुओ की हत्या कर दल लेक मे डुबाया उसे काबुली सेना ने बंदी बनाया. १८०७ मे अत्ता मुहमद खान ने कश्मीर लिया बलात्कार की सीमा लांघी गयी,१८१३ अफ्घनी आझिम खान  ने सलाहकार सहजराम को नियुक्त किया.महाराजा रंजित सिघ के आक्रमण का आरोप हिन्दुओ पर मकर उन्हें निर्वासित कर दिया.

वीर सावरकर - एक संक्षिप्त इतिहास





हिन्दू सभा लाहोर की १३ अप्रेल १८८२ की स्थापना और २८ मई १८८३ भगुर-नासिक (महाराष्ट्र में) विनायक दामोदर सावरकरजी का आविर्भाव!

मई १८९८: पुणे में चापेकर बंधुओ को फांसी से क्रुध्द वीर विनायक की कुलदेवी अष्टभुजा के सन्मुख सशस्त्र क्रान्ति की प्रतिज्ञा

५ सितम्बर १८९९: पिताश्री का देहावसान

१ जनवरी १९००: नासिक में मित्र मेला की स्थापना

मार्च १९०१: मंगल परिणय

१९ दिसंबर १९०१: शालांत परीक्षा उत्तीर्ण

२४ जनवरी १९०२: फर्ग्युसन महाविद्यालय-पुणे प्रवेश

सावरकर एक संक्षिप्त इतिहास








हिन्दू सभा लाहोर की १३ अप्रेल १८८२ की स्थापना और २८ मई १८८३ भगुर-नासिक (महाराष्ट्र में) विनायक दामोदर सावरकरजी का आविर्भाव!

मई १८९८: पुणे में चापेकर बंधुओ को फांसी से क्रुध्द वीर विनायक की कुलदेवी अष्टभुजा के सन्मुख सशस्त्र क्रान्ति की प्रतिज्ञा

५ सितम्बर १८९९: पिताश्री का देहावसान

१ जनवरी १९००: नासिक में मित्र मेला की स्थापना

मार्च १९०१: मंगल परिणय

१९ दिसंबर १९०१: शालांत परीक्षा उत्तीर्ण

२४ जनवरी १९०२: फर्ग्युसन महाविद्यालय-पुणे प्रवेश

15 जून 2012

अखिल भारत हिन्दू महासभा के चुनाव लड़ने पर आपत्ति क्यों ?

अखिल भारत हिन्दू महासभा का आगामी लोकसभा चुनाव के लिए "सर्व दलीय हिन्दू संसद" का आवाहन !
2012 उ.प्र।विधानसभा चुनाव में हिन्दू महासभा के चुनाव में उतरते ही लोगो ने प्रश्न किये आप हिन्दू मत विभाजन के लिए चुनाव लड़कर कांग्रेस को सहायता कर रहे है ?
इसका उत्तर देने के लिए हमें 60 वर्ष पीछे जाकर नयी पीढ़ी को अवगत करना होगा। हिन्दू महासभा नेताओ ने रा.स्व.संघ का निर्माण परस्पर पूरक संगठन के रूप में किया था।1939 कोलकाता अधिवेशन में सावरकरजी तीसरी बार राष्ट्रिय अध्यक्ष चुने गए,डॉक्टर हेडगेवार राष्ट्रिय उपाध्यक्ष चुने गए परन्तु कार्यालय मंत्री रहे गुरु गोलवलकर महामंत्री पद के चुनाव में हार गए उसका ठीकरा सावरकरजी पर फोड़कर हिन्दू महासभा त्याग दी हेडगेवारजी ने उन्हें संघ में जिम्मेदारी सौपकर क्रोध शांत किया। हेडगेवारजी की अकस्मात् मृत्यु के बाद पिंगले को दरकिनार सर्वेसर्वा बने गुरूजी ने सावरकर विरोध के लिए जोगदंड को निकलकर संघ में सैनिकी शिक्षा बंद कर सावरकर को ' रिक्रूट वीर ' कहकर उपेक्षित किया। यह निजी द्वंद्व था ; संघ-सभाई परस्पर पूरक थे। 1945-46 लोकसभा चुनाव में हिन्दू महासभा पक्ष ने "कांग्रेस को मत अर्थात पाकिस्तान को मत कहकर प्रचार आरम्भ किया।" नेहरू ने सावरकर विरोधी गोलवलकर से मिलकर अखंड भारत का वचन देकर समर्थन माँगा। गुरूजी ने समर्थन दिया और जो संघी प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे थे उन्हें अंतिम दिन नामांकन वापस लेने का आदेश देकर हिन्दू महासभा को क्षति पहुंचाई।16% मत मिले कांग्रेस-लीग जित गयी.अंततः कांग्रेस ने हिन्दुओ की ओर से विभाजन करार पर हस्ताक्षर किये।
1949 अयोध्या आन्दोलन में हिन्दू महासभा को मिली सफलता का लाभ जनाधार में न बदले इसलिए नेहरू-पटेल के दबाव में गुरूजी ने हिन्दू महासभा तोड़कर भारतीय जनसंघ बनाया।हिन्दू महासभा प्रत्याशियों के विरोध में अपने प्रत्याशी उतारकर हिन्दू राजनीती का प्रत्यक्ष विरोध आरम्भ किया।यह व्यक्ति वर्चस्ववाद की लडाई अखंड हिन्दुस्थान-हिन्दू राजनीती के लिए हानिकारक बनी।
हिन्दू महासभा चुनाव क्यों लडती है ?
विधानसभा-परिषद,लोकसभा अर्थात शासन में हिन्दू मत को स्थान मिले।हिन्दुराष्ट्र प्राप्ति के दो मार्ग है।एक चुनाव लड़ने का दूसरा सैनिकी क्रांति का,चुनाव सभी वर्ग को मान्य ऐसा लोकतांत्रिक मार्ग है।इसलिए।
राज्य आपका ही है उसमे आपके उपस्थिति की क्या आवश्यकता? 
विगत वर्षो में देश का राज्य तथाकथित निधर्मी दलों के हाथ में है।उन्होंने राज्य को समर्थ करने के बजाय दुर्बल-प्रतिष्ठाहीन बनाया है।उसे सबल हिंदुत्वनिष्ठ करने के लिए हमें सत्ता चाहिए।
विश्व में निधर्मवाद प्रबल है और हिंदुत्वनिष्ठ कल्पना पुरानी नहीं है?
आप सच कहते है परन्तु,पाकिस्तान,बंगला,अफगानिस्तान,इरान,इराक,अरब राष्ट्र मुस्लिम है खंडित हिन्दुस्थान के आश्रयार्थी इस्लामी राष्ट्रवाद का पुरस्कार करते है।अखंड पाकिस्तान की अभिलाषा रखते है।
इंग्लॅण्ड,अमेरिका,यूरोपियन राष्ट्र ख्रिश्चानिती के पुरस्कर्ता है।धर्मान्तरण के लिए सहस्त्रो प्रचारक-धन भेजते है।चीन-रूस आदि देश साम्यवादी कहलाते है।यह सभी साम्राज्यवादी है।निधर्मी नहीं।फिर भी हमें निधर्मी बनाये रखने के प्रयास तुष्टिकरण की राजनीती से स्पष्ट रूप से निधर्मी नहीं है।यदि होता तो,मुसलमानों के लिए स्वतंत्र विधान,अल्प संख्यक आयोग,बहु विवाह,बहु संतति की अनुज्ञा विदेशी या विभाजन की भाषा उर्दू को मान्यता नहीं होती।विभाजन का इतिहास यह कहता है की,जहा मुसलमान बहुमत हुवा इस्लामी राज्य बना। हिन्दू शरणार्थी बने।यह दोहराया न जाये इसलिए उसे रोकने के लिए हिंदुत्वनिष्ठो का सबल राजनितिक मोर्चा बनाने हम प्रत्याशी खड़े करते है।
* यह कार्य जनसंघ (भाजप) नहीं कर रही है?
बिलकुल नहीं,क्यों की वह अपने आप को हिन्दू राष्ट्रवादी नहीं कहलाता।फिर वह हिन्दुहित की रक्षा कैसे करेगा?उनको भी मुस्लिम मतों की चिंता सताती है।मुस्लिम मतों के बिना चुनाव नहीं जित पाएंगे ऐसा सोचना आत्मघाती है।
* कैसे?
60/70% मतदान होता है,इनमे से आधे लोगो में हिन्दू स्वाभिमान,संगठन निर्माण कर पाए तो हिन्दू मतोपर चुनाव जीता जा सकता है।जो लोग चुनावी प्रक्रिया से दूर रहते है उनको विश्वास के साथ जोड़ना होगा।"हमें इस ही देश में हिन्दू बनकर रहना है,इसलिए हिन्दुओ को संकट में डालनेवाले विदेशनिष्ठ-भ्रष्टाचारी तथा गैरहिंदूओ को अन्याय लाभ पहुचानेवालो को एक भी वोट नहीं जायेगा !" ऐसा निश्चय पूर्वक कहेंगे!
आत्मविश्वास,पराक्रम,निष्ठां,सातत्य से योग्य दिशा में कार्य हुवा तो हिन्दुराष्ट्र निर्माण होगा।
          हिन्दू महासभा ब्राह्मणों की पार्टी है ऐसा आरोप होता है फिर जातीयवाद ग्रस्त हिन्दुओ का संगठन कैसे?
हिन्दू समाज जातीयवाद में विकेन्द्रित है,संविधानिक समान नागरिकता के लिए हिन्दू महासभा एक मात्र पार्टी 1985 से सर्वोच्च न्यायालय में लड़ रही है।राष्ट्रीयता में विषमता का राजनितिक लाभ उठानेवाले उसे लागु करने में बाधक है और उन्हें निधर्मी और हिन्दू महासभा को जातीयवादी-सांप्रदायिक कहा जाता है।हिन्दू महासभा ने जातिभेद तोड़क कार्य किये है, किसी जाती-पंथ के लोगो की सदस्यता पर प्रतिबन्ध नहीं है।पंडित मदन मोहन मालवीय,धर्मवीर मुंजे,वीर सावरकरजी ने अछुतता नष्ट करने सामाजिक विरोध झेलकर कार्य किया है।मुंजे-सावरकर ने हिन्दुओ में क्षात्र तेज बढ़ने सैनिकीकरण और धर्मान्तरितो का शुध्दिकरण का प्रयास-प्रचार किया है फिर हिन्दू महासभा केवल ब्राह्मणों की कैसी? ब्राह्मण अन्य दलों में भी है फिर वह भी ?
      *इतना सब कुछ होते विजय क्यों नहीं मिलती?
हम अपने विचार लोगो तक पहुँचाने में कम पड गए,जिन्हें विचार संयुक्त लगे उनमे से कुछ लोग पराजय से दुसरे दलों में चले गए।अन्य अनेक दलों में अनेक परिवर्तन हुए फिर भी हम वही है।हिंदुत्वनिष्ठ,विचारवंत, कर्मयोगी इस पार्टी में है।
   *आपको मत देने से जनसंघ-भाजप को हानि होगी कांग्रेस को लाभ,उसका क्या?
यह सभी दल गैर हिन्दुओ के मतों के लिए उनके पैर पकड़ते है,इसलिए इनमे से कोई गिरा या उठा कोई फरक नहीं पड़ता।उल्टा हम यह कहेंगे की, हिंदुत्वनिष्ठो के मत नहीं मिलने के कारन यह हार हुई ऐसा साक्षात्कार जब उन्हें होगा तब वह भी हिन्दू मत के लिए हिन्दुहित रक्षण की भाषा बोलने लगेंगे। तुष्टिकरण छोड़ेंगे। उन्हें पाठ पढाने गिराना कोई पाप नहीं, कर्तव्य है !
* कांग्रेस आपकी सहायता करती है ऐसी मान्यता है,क्या है सच।
वास्तविकता यह है की,हमारे कट्टरवादी दल के विरोध में निधर्मी दलों को विदेशो से धन मिलता है और करोडो रूपया खर्च होता है इसके विपरीत हमारे निर्धनता के कारन प्रत्याशी तयार नहीं होते,जो स्वखर्च से लड़ते है वह उस प्रमाण में प्रचार साहित्य-जनसभा-शोभायात्रा संपर्क नहीं कर सकते।दुसरे दलों के पास ख़रीदे प्रचारक होते है अब सोचिये किसको धन मिलता है। हमारे पराजय और देश के दुर्भाग्य का यह मुख्य कारन है।
पूर्व राष्ट्रिय अध्यक्ष अखिल भारत हिन्दू महासभा स्व.श्री.बालाराव उपाख्य शांताराम सावरकर का साक्षात्कार 
द.बा.फडणीस द्वारा दिनांक 19-5-1980 साप्ताहिक काळ में प्रकाशित