2 अगस्त 2016

बौध्द मतावलंबी हिन्दू श्रीराम जन्मस्थान पर किस आधारपर अपना दावा कर रहे है ?

महाभारत में कहा गया है,"प्लावन से पूर्व इस वेद में कहे धर्म का नाम "सात्वत धर्म" था।" इसी धर्म का प्रचार मनु के वंश श्राध्ददेव के पुत्र इक्ष्वाकु ने किया। रामायण में श्रीराम को इक्ष्वाकु वंशी निरुपित किया गया है। श्रीराम का जन्म  उत्तर कौशल प्रमुख शाखा की ३९वी पीढ़ी में महाराज दशरथ के पुत्र के रूप में हुवा। चैत्र मासके शुक्ल पक्ष की नवमी को कर्क लग्न पुनर्वसु नक्षत्र,मध्यान्ह में सूर्य के मेष राशी में स्थित होने पर हुवा।कालिदास ने रघुवंश के १६ वे सर्ग में, जानकी हरण के कवी कुमार दास ने अयोध्या का सुन्दर वर्णन किया है।                                                                                                                                 
*जैन ग्रंथो में अयोध्या का वर्णन "तिलक मंजिरी"में धनपाल ने बढ़ कर किया है।अयोध्या नरेश ऋषभ राय और बाहुबली दो भाईयो में सत्ता संघर्ष हुवा। परन्तु,बाहुबली ने जैन मत का स्वीकार किया। काल पश्चात ऋषभ राय ने भी जैन मत का स्वीकार किया। चार तिर्थंकरो की जन्म भूमि अयोध्या ही रही है और विशेष यह की इनका एक ही वंश था,इक्ष्वाकु ! सूर्य वंशी आर्य क्षत्रिय !
 इक्ष्वाकु कुल की लिच्छवी शाखा में महात्मा बुध्द का जन्म हुवा। महात्मा बुध्द का सम्पूर्ण जीवन कौशल में बिता,जन्म कपिलवस्तु में,मुख्य निवास सरावती,धम्म प्रसार सारनाथ और महानिर्वाण कुशीनगर में हुवा जो कौशल प्रदेश में हुवा। भगवान बुध्द राजधानी अयोध्या आने का प्रमाण "दन्त धावन कुंड" है,किन्तु नगरी की दशा उस समय उन्नत नहीं थी।

 अलेक्झांडर पंजाब के रास्ते आया परन्तु १२ गणराज्यो ने आपसी भेद भुलाकर संयुक्त हमला कर लौटने को विवश किया.उसके पराजय को ध्यान में रखकर, "रोमन-कुषाण मिनेंडर ने वैष्णवो की एकात्मता पर प्रहार करने बुध्द मतावलंबी बनने का स्वांग किया। मगध सम्राट बृहद्रथ ने उसपर विश्वास किया और  मानवरक्त प्राशी रोमन सेना का आतंक आरम्भ हुवा। स्थानीय बुध्द प्रत्याक्रमण नहीं, सहायता करेंगे इस आत्मविश्वास के साथ मिनैडर ने वैष्णव मंदिर ध्वस्त करना आरम्भ कर दिया। बदरीनाथजी की मूर्ति नारदकुंड में फेंक दी।अयोध्या-मथुरा के जन्मस्थान घेरकर ध्वस्त किये।समस्त घटनाओ के लिए बृहद्रथ को दोषी मानकर उसके सेनापति पुष्यमित्रने बृहद्रथ की हत्या की और रोमनों को मार भगाकर मंदिर-स्तूप खड़े किये. दो बार अश्वमेध यज्ञ किया। मिराशी संशोधन मंडल को मंदिर शिलालेख में,"द्विरश्वमेध् याजिना:सेनापते: पुष्यमित्र्स्य षष्ठेन पुत्रेन केतनं कारितं ll "मिला है। उपरोक्त हार के कारण सभी हिन्दू अपने भेद नष्ट करके संगठीत होकर तीन महीने के संघर्ष के पश्चात शुंग वंशीय राजा द्युमत्सेन ने मिनेंडर को परास्त किया और मार गिराया। फिर भी कुषाणों के आक्रमण बारंबार होते रहे,इसलिए श्रीराम जन्मस्थान पर मंदिर बनाने में बाधा आती रही।आक्रान्ता मिनैडर पर "मिलिंदपन्ह"ग्रन्थ लिखनेवाले आचार्योने उसकी अस्थियोपर कब्ज़ा करने में प्राण गवाकर भी रोमनोंसे आधा हिस्सा लेकर स्तूप बनाए थे। इस्लामी शासनकाल में वहा बौध्द मतावलंबियो का कब्ज़ा ही नहीं था। 
 गढ़वाल नरेश गोविन्दचन्द्र शैव (१११४-११५४) ने शरणार्थी,घुसपैठियों पर "तुरष्कदंड" (निवासी कर) लगाया था। इन्होंने बुध्द मतावलंबी कुमारदेवी से विवाह कर भिक्षुओ को ६ गाव इनाम दिए,बर्मा के पेगोंग में महाबोधि प्रतिकृति मंदिर बनवाया.अपने सामंत कन्नोज नरेश नयचंद को ८४ कसोटी के गढ़वाली पत्थर भेजकर अयोध्या में श्रीराम जन्मस्थान पर विशाल मंदिर का निर्माण किया.जिसके प्रमाण भी १८ जुन १९९२ को उत्खनन में प्राप्त ३९ अवशेषोमें से एक २० पंक्ति शिलालेख से ज्ञात होता है.

मंदिर के सन्दर्भ-१)ऑस्ट्रेलियन मिशनरी जोसेफ टायफेंथालेर ने १७६६-१७७१ अयोध्या यात्रासे लौटकर १७८५ में लिखी हिस्ट्री अन जोग्राफी इंडिया के पृ.२३५-२५४ पर लिखे सन्दर्भ के अनुसार,"बाबरने राम जन्मभूमि स्थित मंदिर ध्वस्त कर मस्जिद बनवाने का प्रयास किया.उसमे मंदिर के मलबे से निकले ८४ कसोटी के स्तंभों का प्रयोग किया. मुसलमानों से लड़कर हिन्दू वह पूजा अर्चना करते है,परिसर में बने राम चबूतरा पर परिक्रमा की जाती है."
२)१६०८-१६११ भारत भ्रमण आये विल्यम फिंच की अर्ली ट्रेवल्स इन इंडिया के पृ.१७६ पर रामफोर्ट-रानिचंड का उल्लेख है.
३)गैझेटियर ऑफ़ दी टेरीटरिज अंडर गव्हर्मेंट ऑफ़ इस्ट इंडिया कं.लेखक एडवर्ड थोर्नटन पृ.क्र.७३९-४० पर १८५४ में लिखते है,"बाबर ने मस्जिद के लिए मंदिर गिराकर उसी के मलबे से १४स्तम्भ चुनकर लगवाए."
४)इनसाय्क्लोपीडिया ऑफ़ इंडिया १८५७ एडवर्ड बाल्फोअर,"राम जन्मस्थान,स्वर गडवार,माता का ठाकुर ३ मंदिर गिराकर मस्जिद कड़ी की गयी."
५)हिस्टोरिकल स्केच ऑफ़ फ़ैजाबाद ले. कार्नेजी १८७०,"राम मंदिर में काले से वजनदार स्तम्भ थे,उनपर सुन्दर नक्काशिकामकिया गया था,मंदिर गिराने के पश्चात मस्जिद में लगाया गया."
६)गैझिटियर ऑफ़ दी डाविन्स अवध -१८७७,बाबर ने १५२८ में मंदिर गिरक मस्जिद बनवाई
 ७)पर्शियन ग्रन्थ हदीका इ शहादा ले.मिर्जा जान १८५६ लखनोऊ पृ.७,"मथुरा,वाराणसी, अयोध्या में हिन्दू आस्था जुडी है,जिन्हें बाबर के आदेश से ध्वस्त कर मस्जिदे बनाई गयी."
८)ब्रिटिश नियुक्त जन्मभूमि व्यवस्थापक मौलवी अब्दुल करीम की ग़ुमइश्ते हालात इ अयोध्या में मान्य किया है की,मंदिरों को गिराकर मस्जिद बनायीं गयी थी.
९)अकबरनामा आइन ए अवध अब्दुल फाजल १५९८,अन्य                                                                    
मंदिर गिराने के पश्चात मस्जिद बनाते समय २ वर्ष युध्द जारी था हंसबर नरेश रणविजयसिंह,महारानी जयराजकुमारी उनके राजगुरु पं.देवीदीन पाण्डेय के बलिदान के बीच स्वामी महेशानंद साधु सेना लेकर लडे. मस्जिद बनाने जितनी दिवार दिनभर बन जाती रात में टूट जाती थी तब बाबर ने हिन्दू संतो की राय मांगी, और साधुओ के भजन पूजन का स्थान बनवाया,मीनार तोड़ दिए,वजू के लिए जलाशय नहीं बनवाया,द्वार पर सीता पाकस्थान लिखवाया,छत में चन्दन की लकड़ी लगवाई।
  १९४९ अयोध्या हिन्दू महासभा आंदोलन :- हिन्दू महासभा अंतर्गत कार्यरत श्रीरामायण महासभा के प्रधान महंतश्री रामचंद्रदास ,सं.मंत्री गोपालसिंह, संघटक श्री.अभिरामदास की सार्वजानिक सभा हनुमान गढ़ी पर संपन्न हुई.इस सभा में तय हुवा प.पू.श्री.वेदांती राम पदार्थदास जी की अध्यक्षता में का.कृ.९ को रामचरित मानस के १०८ नव्हान्न पाठ;समापन उ.प्र.हिं.म.स. अध्यक्ष महन्त् श्री दिग्विजयनाथ जी की उपस्थिति में,स्वामी करपात्रीजी महाराज,कांग्रेसी बाबा राघवदास,बड़ा स्थान महंत श्री.बिन्दुगाद्याचार्यजी,रघुवीर प्रसादाचार्यजी के भाषण प्रवचन हुए.वही मार्गशीर्ष शु.२ श्रीराम जानकी विवाह तिथि पर मानस के ११०८ नव्हान्न पाठ का संकल्प हुवा। निर्मोही अखाडा के महन्त् श्री बलदेवदास ,जन्मस्थान पुजारी तथा हिन्दू महासभा नगर कार्याध्यक्ष श्री.हरिहरदास ,पार्षद स्वर्गीय श्री परमहंस रामचंद्रदास,तपस्वियों की छावनी के अधिरिसंत दास,बाबा वृन्दावन दास,हिन्दू महासभा फ़ैजाबाद जिला अध्यक्ष ठा.गोपालसिंह विशारद जी ने सम्पूर्ण मंदिर परिसर साफ़,समतल किया.इसपर कब्रे उखाड़ फेंकने के आरोप हुए और न्यायालय में निर्दोष ! ११०८ से अधिक पाठकर्ता जन्मस्थान से हनुमान गढ़ी तक कतार में, इन में मुसलमान भी पाठ कर्ता थे.   पक्षकार हिन्दू महासभा ३/१९५० 

9 अप्रैल 2016

कन्हैय्या,बटवारे के पश्चात यह हिन्दुराष्ट्र है !

Press Note-


JNU फेम कन्हैय्या कॉन्स्ट्रटूशन क्लब में प्रेस वार्ता को सम्बोधित कर रहा था। {ABP News 9 April 2016} ये वामपंथी मनुवाद-ब्राह्मणवाद की बात करते है और राष्ट्रवाद का अर्थ उससे जोड़कर बताते है। मेरे विचार को वह ठीक नहीं लगा। इसलिए यहाँ लिख रहा हूँ।
१९२५ में संघ और वामपंथी दोनों का आगमन हुआ है। एक संगठन है और एक दल ! मात्र १९४६ के असेम्ब्ली चुनाव में नेहरु ने वामपंथियों का समर्थन नहीं माँगा। गुरूजी गोलवलकर का समर्थन माँगा था। इतना ही बताना ठीक होगा।
कन्हैय्या ,संघ पर आरोप लगा रहा है ,"संघ हिन्दुराष्ट्र स्थापित करना चाहता है और हिन्दुराष्ट्र का बेस ब्राह्मणवाद-मनुवाद है !"
कन्हैय्या को देश के सामाजिकता का ध्यान नहीं है। केवल अफु गोली खिलाकर जिसप्रकार सामाजिक-राष्ट्रिय भेद का विष वामपंथी खिलाते है उसका वह वमन है और कुछ नहीं। मनुवाद क्या है ? मनु प्रभु श्रीराम के पूर्वज थे और शासन व्यवस्था का सञ्चालन करने के लिए बनाया संविधान मनुस्मृती थी। ब्राह्मण का इसपर कोई अधिकार नहीं। ब्राह्मण देश का अतिअल्पसंख्य हिन्दू समाज है। इसलिए कन्हैय्या का आरोप गलत है।
कन्हैय्या ने,"हिन्दुराष्ट्र स्थापना की बात कही है !" वह अविश्वसनीय है। यदि ऐसा होता तो,१९४६ के चुनाव में मुस्लिम लीग और हिन्दू महासभा के बिच मतों का बटवारा होता और कांग्रेस तीसरे नंबर पर होती। विभाजन हुआ वह गुरूजी और नेहरु के सत्ता सहयोग के कारन। हिन्दू महासभा सत्ता में आती तो,अखण्ड हिन्दुराष्ट्र बना देखा होता। संघ हिन्दुराष्ट्र बनाने के इच्छुक होती तो,नेहरु-पटेल के इशारे पर "जनसंघ" का निर्माण हिन्दू महासभा तोड़कर क्यों किया होता ?

रही बात मुद्दे कि ,"अल्पसंख्या के आधारपर बटवारे के पश्चात यह हिन्दुराष्ट्र है ! क्योकि,यहाँ संविधानिक समान नागरिकता लागु नहीं है !"
राष्ट्रिय प्रवक्ता हिन्दू महासभा Pramod Pandit Joshi

1 अप्रैल 2016

श्रीराम लला निकट से दर्शन तथा तुलसी दल अर्पण- हिन्दू महासभा की गुहार !

 Press Note ;- 1 April 2016


श्रीराम नवमी को तथा हर माह की एकादशी को दर्शनार्थियों को श्रीराम लला ,रामकोट-अयोध्या में जन्मस्थान पर निकट से दर्शन तथा तुलसी दल अर्पण करने का सौभाग्य मिले ! सुप्रीम कोर्ट से पक्षकार हिन्दू महासभा की गुहार ! राष्ट्रिय प्रवक्ता हिन्दू महासभा प्रमोद पंडित जोशी
 * पर्शियन ग्रन्थ हदिका ए शहादा के लेखक मिर्झाजान ने सन १८५६ में पृष्ठ ७ पर लिखा है, "अयोध्या,मथुरा,वाराणसी में हिन्दुओ की आस्था जुडी हुई है।जिन्हें बाबर के आदेश से ध्वस्त करके मस्जिदे बनाई गयी।"
* ऑस्ट्रेलियन मिशनरी जोसेफ टायफेंथालेर सन १७६६-७१ के बिच अयोध्या-भारत भ्रमण कर वापस लौटा तब १७८५ में लिखे" हिस्ट्री एंड जिओग्राफी इंडिया" ग्रंथ में पृष्ठ २३५-२५४ पर लिखा है कि,"बाबर ने राम जन्मभूमि स्थित मंदिर ध्वस्त कर मस्जिद बनायीं ! उसमे मंदिर के स्तंभों का प्रयोग किया गया है।मुसलमानों के विरोध के पश्चात् भी हिन्दू वहा पूजा अर्चना के लिए आते है।इस परिसर में राम का पालना (राम चबुतरा) पर परिक्रमा की जाती है।देश के कोने कोने से यात्री आकर यहाँ धूमधाम से उत्सव मानते है।"
* हिस्टोरिकल स्केच ऑफ़ फ़ैजाबाद ग्रंथ के लेखक कार्नेजी सन १८७० में लिखते है,"राम जन्म मंदिर में काले पत्थर के वजनदार स्तंभ थे।उनपर सुंदर नक्काशिकाम किया गया था। उन्हें मंदिर गिराए जाने के पश्चात् मस्जिद में लगाया गया।" अनेक मुस्लिम विद्वानों के अनेक प्रमाण ग्रंथो में भी समान विचार है।

31 मार्च 2016

सावरकर विरोधी गद्दार और उनकी पोलखोल !

कांग्रेस -गांधी नेहरु परिवार की विरासत और रियासते उनकी गुलाम बनी हुई है। वास्तव में नेहरु ने धन कैसे जोड़ा ? यह एक संशोधनीय विषय है।कांग्रेस नेता नेहरु का विदेश प्रेम और ब्रिटेन से प्रामाणिकता, नेहरू परिवार ने निभाई ,इसलिए ब्रिटिश एजंट तक कहा गया।
सन १९२२-२३ कांग्रेस के कथित मालिक (स्वामी) मोतीलाल नेहरू ने १ कोट ६८ लक्ष का प्रचंड भ्रष्टाचार किया था। उसका खुलासा इसलिए करना आवश्यक है क्यों की हिन्दू महासभा को इसमें फसाया गया और कथित रूप से दलित समाज को धर्मान्तरण के लिए प्रयास किये गए।
              चिरोल की लन्दन केस में लोकमान्य तिलक जी को आर्थिक सहाय्यता हेतु राष्ट्रिय स्तर पर दान इकठ्ठा किया जा रहा था।तिलक जी को लन्दन से आते ही शनवार बाड़ा,पुणे में सार्वजनिक सन्मान के साथ ३.२५ लक्ष रुपये महाराष्ट्र से दे दिए गए थे।राष्ट्रिय कोष का नाम "तिलक स्वराज्य फंड" था।जो दिनों दिन बढ़ रहा था।मोतीलाल नेहरू ने तिलक जी की उपेक्षा कर यह पार्टी फंड है कहकर देने से मना किया।बताएं ,गद्दार कौन ?
                रु.१,३०,१९,४१५ आणा १५ का यह फंड योग्य रूप से व्यय करने के लिए एक अनुदान उपसमिति लोकमान्य तिलक जी के निधनोत्तर ३१ जुलाई १९२१ में गठित हुई थी।परन्तु ,६ नवम्बर १९२१ को उसे भंग कर कांग्रेस वर्किंग कमिटी ने कोलकाता तथा नागपुर कार्यकारिणी में खिलाफत आन्दोलन को आर्थिक सहायता हेतु प्रस्ताव पारित कर तिलक स्वराज्य फंड वितरण का सर्वाधिकार अपने पास रख लिया। कॉंग्रेस समिती ने कोई कारण बताये बिना धन का वितरण राष्ट्रद्रोहियो को किया।
             मौलवी बदरुल हसन रु.४०,०००००
             टी.प्रकाश                 रु.   ७,०००००
              च.राजगोपालाचारी  रु.    १,०००००
             बरजाज                   रु.२०,०००००
             बै.मो.क.गाँधी          रु.१,००,०००००
                          कुल       रु.१,६८,०००००

            प्रश्न अब खड़ा होता है,फरवरी १९२२ बार्डोली कांग्रेस वर्किंग कमिटी ने अछूतोध्दार के लिए २ लक्ष रु.घोषित किये।जून में हुई लखनऊ कमिटी में," २ लक्ष कम है !" कहकर बढाकर ५ लक्ष किया।अछूतोध्दार समिति के निमंत्रक हिन्दू महासभा नेता स्वामी श्रध्दानंद जी को नियुक्त किया गया।तिलक स्वराज्य फंड का संचयन बढ़ ही रहा था। अछूतोध्दार की मांगे बढ़ न जाये इसलिए,मई १९२३ कार्य समिति में, "अछूतोध्दार, कांग्रेस का काम नहीं है,अछुतता का पालन हिन्दू करते है इसलिए इस कार्य की जिम्मेदारी हिन्दू महासभा की है !" इस प्रस्ताव के साथ यह भी प्रस्ताव किया गया कि,"इस जिम्मेदारी को स्वीकार करने की विनती हिन्दू महासभा को भी की जाये ! " अछूतोध्दार का यह कार्य हिन्दू महासभा पर सौप कर कांग्रेस जिम्मेदारी से मुक्त हुई।
         अछूतोध्दार में मुख्य कार्य शुध्दिकरण का था। जो, मुसलमानों को रास नहीं आया क्यों की,धर्मान्तरण बंद हो गया था। स्वामी जी पर दबाव डालकर उन्हें पदमुक्त कर वहा कांग्रेसी नेता  गंगाधरराव देशपांडे को नियुक्त किया गया। अब ५ लक्ष खर्च करने की भी आवश्यकता नहीं रही ! अछूतोध्दार के लिए पांच संस्थाओ को रु.४३,३८१ ; अलग अलग प्रांतीय कांग्रेस कमिटियो को रु.४१,५०,६६१ दिए गए। उसमे से रु.२४ लक्ष गाँधी ने १८% कथित रूप से अछूत जनसँख्या के गुजरात को दिए। ६९% कथित अछूत जनसँख्या के महाराष्ट्र को १ . ६% सहायता मिली तो,१८% जनसँख्या के कर्णाटक को ०.९३% दिए। अगले कुछ वर्ष में कांग्रेस ने तिलक स्वराज फंड का धन कहा, कैसे खर्च किया ? अभी तक किसी को पता नहीं। उसपर डॉ.आम्बेडकर जी ने उद्विग्नता से कहा की, " It is enough to say that never was there such an organized look of public mony."
        हिन्दू घाती कांग्रेस अछूतोध्दार के प्रति कितनी बेईमान थी यह स्पष्ट होता है तथा लोकमान्य तिलक जी के नाम जमा धन,नेताजी सुभाष को विट्ठलभाई पटेल ने दिया धन नेहरु ने किस प्रकार लुटा वह भी स्पष्ट होता है।
            आजकल होड़ लगी है ,पहले सावरकर हमारे कहनेवाली भाजप गांधी-पटेल-सुभाष हमारे ! कह रही है। वही , सावरकर को उठा के फेंक दिया ? राहुल गांधी संसद में भाजप को पूछ रहे है। पुणे में १९३९-१९४१ ढमढेरे वकील के घर में संविधान पर मसौदा बनाया जा रहा था , आम्बेडकरजी पुणे नगर हिन्दू सभा के प्रार्थमिक सदस्य थे। आगे सावरकरजी के शिफारिस / ,समर्थन पर विधिज्ञ आम्बेडकर मसौदा समिती के अध्यक्ष बनाए गए। आगे चलकर उन्होंने कांग्रेस से अपमानित होकर मंत्री पद त्याग किया।
         संविधानिक समान नागरिकता के विरोधक १२५ वी आम्बेडकर जयंती पर भाजप-कांग्रेस उन्हें चुनावी लाभ के लिए भुनाने लगी है। मात्र जब हिन्दू महासभा आम्बेडकर महानिर्वाण पर चैत्यभूमी आनेवाले दर्शनार्थियों की आवाजाही के लिए विशेष ट्रेन छोड़ने के लिए रेल मंत्रालय से सतत प्रयत्नशील थी। राम नाईक,रामविलास पासवान तक ने अनुलक्षित किया। स्व प्रा राम कापसे (पूर्व राज्यपाल) ने प्रयास करने का वचन देकर पत्राचार माँगा। सहयोग शून्य ! ममता बैनर्जी को लिखा तो,तत्काल प्रतिउत्तर आया और "चैत्यभूमी दादर-मुंबई विशेष ट्रेन" आरम्भ हुई ! अब बताए कोई आम्बेडकर किसके ?

सावरकर विरोधी गद्दार !

30 मार्च 2016

हिंदू नव संवत्सर पर सावरकर संदेश !

हिन्दू नव वर्ष विक्रम संवत - चैत्र प्रतिपदा कहे या गुढी पाडवा सन १९४४ मार्च पुणे नगर हिन्दू महासभा ने वीर सावरकर जी की उपस्थिति में स.पा.महाविद्यालय के मैदान में समारोह संपन्न किया था।
" विक्रम संवत का द्वि सहस्त्राब्दी महोत्सव ! शककर्ता विक्रमादित्य और उनका स्मरण ! हमारे शालेय पुस्तकोंसे हमें केवल इतना पता था की,विक्रमादित्य कोई महान राजपुरुष होकर गए और उन्होंने विदेशी शकों को भगाया। परन्तु, आज की पुस्तको से इनका नाम ही गायब होता चला गया और अरबस्तान के इतिहास उदयाचल हुवा है।जिसके कारन हमारा और विक्रमादित्य का सम्बन्ध क्या है ? उसका स्मरण भी विस्मृत होता जा रहा है। द्वि सहस्त्राब्दी का यह समारोह अन्योंकी तुलनामे महत्वपूर्ण है ! अंग्रेज भी अपना इतिहास इतना बता नहीं पाते। इस कालखंड में खाल्डीयन,सुमेरियन, इजिप्शियन संस्कृति का नाश या विलय हुवा। इस घटना के स्मरण में  महोत्सव संपन्न करने हिन्दू इस संसार में जीवित है ! यही, बड़ी अभिमान की उपलब्धि है ! द्वितीय चन्द्रगुप्त भी एक विक्रमादित्य थे।

प्रथम जिसने अलेक्झांडर को पराजित कर ग्रीक साम्राज्य ध्वस्त किया वह थे सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य|
इसा पूर्व ५७ वर्ष नव संवत्सर कालगणना आरम्भ करने वाला द्वितीय विक्रमादित्य जो गुप्त वंश के थे। मंदसोर में हूणों का पराजय करने वाले यशोधर्मन तृतीय, विक्रमादित्य। बंगाल में शशांक भी विक्रमादित्य की उपाधि लगाया करते थे। दक्षिण में शालिवाहन भी विक्रमादित्य नाम से प्रसिध्द है।

अब विक्रम संवत के संस्थापक विक्रमादित्य कौनसे यह प्रश्न गौण है.....ऐसे अनेक नर रत्नोंकी उपज के कारन कौनसा उत्सव और कब करे यह प्रश्न है। क्योंकि, सम्पूर्ण वर्ष के सभी दिन इसमें बीत जायेंगे।परन्तु, परंपरा से चली यह संवत्सरी शक विदेशियोंको मार भगाने की ईसापूर्व ५७ की घटना का स्मरण मात्र है ! विदेशियोंको सीमा के अंतर्गत प्रवेश करने की हिम्मत करने से पूर्व उनकी सीमा में घुस कर पहले ही उसकी व्यवस्था क्यों नहीं की गयी ? इस बात पर मेरे मन में क्रोध उत्पन्न होता है ! फिर भी विदेशी शकोंको मार भगाने की विक्रमादित्य की घटना संस्मरनिय है , इसमें कोई संदेह नहीं ! ..........

क्षत्रियत्व त्यागे अहिंसावादी पंथोंकी प्रबलता जहा हुई वहि विदेशी आक्रमण हुवा और उसको खत्म भी गैर अहिंसावादी क्षत्रियो ने किया।अहिंसावादी पंथ विदेशी आक्रमण काल में फिर क्षत्रिय बना और इस आपत्ति के कारक अहिंसावादीयोंपर शस्त्र चलाया ! ऐसे समय उन्होंने चाइना,जापान,तिब्बत से अहिंसावादी, आक्रान्ता बुलाये तब क्षत्रियो ने उन्हें पराभूत कर " आर्यदेशे न यास्यामो कदाचित राष्ट्र हेतवे " ऐसी शर्त लिखवा ली ! जो, भविष्य पुराण में अंतर्भूत है|                    

हम यह समारोह क्यों संपन्न करते है?  मै आपके समक्ष दो मानचित्र रखता हु , ' आक्रांत सुल्तान महमूद और महमद घोरी से इसा १६५९ तक पेशावर से रामेश्वरम तक मुस्लिम सत्ता व्याप्त प्रदेश और १६५९ से १७९५ काल खंड में छत्रपति शिवाजी महाराज के कर्तुत्व से माधवराव पेशवा तक के कालखंड का कर्तुत्व यही था की मराठो ने अटक से कटक तक हिन्दवी स्वराज्य की पताका लहराई. विक्रमादित्य जैसे पराक्रमी सम्राट के उत्तराधिकारी के रूप में अभिमान पूर्वक कहने के लिए हमारे पास बहोत कुछ है यह आपको विश्वास हो जायेगा. ७०० वर्ष मुस्लिम आक्रमण के पश्चात् भी हम राष्ट्रीयता बचाकर रखने में सफल रहे। यह हमारे वीर पुरुषो वंश के अनुरूप है.मात्र यदि विक्रमादित्य विमान में बैठकर अवलोकन करेंगे तो ,' यही कहेंगे की हिन्दुओंका जीवन नारकीय बना है ! ' इस महोत्सव के माध्यम से हमने क्या पाठ पढ़ा और उससे कौनसा आचरण किया तो ब्रिटिशस्थान के साथ आनेवाला पाकिस्तान का संकट निरस्त हो जायेगा और आनेवाले कालखंड में इतिहास संशोधक संकटों की विवेचना करते रहेंगे !

जय हिन्दुराष्ट्र !

27 मार्च 2016

सुखनेवाली नदियों में कुंवो का निर्माण !


 देश में बारह मास प्रवाहित नदिया वर्षा काल में बाढ़ से उग्ररूप धारण करती है। तो,कही सुखा पड जाता है। वर्षा काल में ही बहने वाली नदिया ग्रीष्म में सुखी होती है। भौगोलिक स्थिति के कारण जल असमतोल निर्माण हुवा है।हिन्दू महासभा ने महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री श्री मनोहर जोशी को प्रस्ताव देकर ग्रीष्म में सुखनेवाली नदियों में कुंवो का निर्माण करने का सुझाव दिया था।
सन १९६५-७६ के बिच एक प्रस्ताव आया था गंगा-कावेरी प्रकल्प ! उसमे से अधिक चर्चा कॅप्टन दस्तूर के ' गारलैंड केनोल स्कीम' की हुई तथा दूसरी डॉ.के.एल.राव की 'नैशनल वाटर ग्रिड स्कीम' की थी। जिसे अधिक मान्यता मिली.गंगा से कावेरी तक २६४० कि.मी.जल प्रवाह से १६८० क्यूमेक्स जल १५० दिन तक बहेगा.यह अनुमान था।
       इस कार्य में समस्या जल को उठाने की थी ,इस योजना में १४०० क्यूमेक्स जल ५४९ मीटर ऊँचा उठाना पड़ेगा। जिसके लिए ५-७ मेट्रिक किलो वेट बिजली की आवश्यकता है होगी। नर्मदा का जल गुजरात-राजस्थान में फ़ैलाने के लिए २७५ मीटर तक उठाना पड़ेगा.गंगा-ब्रह्मपुत्र नदी प्रवाह एक करने के लिए १८००-३००० क्यूमेक्स जल १२-१५ मीटर तक उठाना पड़ेगा होगा। विद्युत् भार नियमन के कारण यह असंभवसा है.परन्तु,राजस्थान के थार में अब श्री गंगाजी बहेगी ऐसा संकेत मिले थे।

       महाराष्ट्र के एक अभियंता श्री.एम्.डी.पोल जी ने १९७६ में 'इरिगेशन पोजेक्ट फॉर इंडिया' दिया था। जिसमे विद्युत् प्रयोग के बदले गुरुत्वकर्षण से गंगा-ब्रह्मपुत्र का जल कन्याकुमारी तक जा सकेगा.उसमे भी सुधार कर उन्होंने ' नैशनल इंटिग्रेटेड वाटर रिसोर्सेस डेवलोपमेंट प्लान फॉर इंडिया' बनाया था।
       हिमालय का जल स्त्रोत रोककर विशिष्ट ऊँचाई पर संचयन कर दार्जिलिंग में लाकर दक्षिण हिन्दुस्थान में घुमाव किया जाने का प्रस्ताव है.जिसमे दार्जिलिंग से रांची ५७५-६५० कि.मी. Underground Pressure Tunnels से २०० से २५० मीटर निचे से गुरुत्वाकर्षण से होकर बहेगा।
          प्राचीन काल में सगर वंशीय भगीरथ ने गंगा भूमि पर प्रवाहित की.अलकनंदा-मन्दाकिनी समेत तिन स्त्रोत एक साथ जोड़कर उत्कृष्ट अभियंता का अविष्कार किया था।'गंगा सागर' यह उनकी ही देन है.उत्तर से दक्षिण की ओर प्रवाह से हरित क्रान्ति तो होगी ही ५७,२२७ मैगावेट की विद्युत् निर्मिती अपेक्षित है.मत्स्योद्योग में बढौतरी होगी तथा उत्तर हिन्दुस्थान में ६७% बाढ़ में कमी आएगी.कृष्णा खोरे प्रकल्प या कोंकण रेल ने ऐसे प्रकल्प को प्रोत्साहित किया है।
          हिमालय से मिलनेवाले जल पर चीन की भी वक्र दृष्टी है,ब्रह्मपुत्र (त्सांगपो) नदी चीन से बहकर अरुणाचल प्रदेश से ईशान्य से हिन्दुस्थान में बहती है उसके प्रवाहो में अणु ध्वम्म कर उसे रोकने का षड्यंत्र हो रहा है और इस ही कारन से अरुणाचल पर अपना कब्ज़ा बनाने का षड्यंत्र उजागर हुवा है.हिमालयीन स्त्रोत अथवा प्रवाह रोकने का भी प्रयास हो सकता है इसलिए उत्तर से दक्षिण गंगा कावेरी प्रवाह को जल्द से जल्द पूरा करने से लागत में भी कमी आएगी।
           टिहरी बाँध के निर्माण में स्थानीय लोगो को हानि पहुंचाकर जल स्त्रोत की अनियमितता हुई है.हिन्दू धार्मिक भावना को ठेस पहुंचाकर गंगा को सुखा-खनन आदि से गटर बहाकर प्रदूषित किया गया है.धर्माचार्योंकी अभ्यर्थना को सरकार अनुलक्षित कर उनके प्राण हर रही है।                                  
( सन्दर्भ- दिनांक १० अक्तूबर २००० दैनिक सामना में प्रकाशित श्री.सूर्यकांत पलसकरजी के लेख से अनुवादित )