27 मार्च 2016

सुखनेवाली नदियों में कुंवो का निर्माण !


 देश में बारह मास प्रवाहित नदिया वर्षा काल में बाढ़ से उग्ररूप धारण करती है। तो,कही सुखा पड जाता है। वर्षा काल में ही बहने वाली नदिया ग्रीष्म में सुखी होती है। भौगोलिक स्थिति के कारण जल असमतोल निर्माण हुवा है।हिन्दू महासभा ने महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री श्री मनोहर जोशी को प्रस्ताव देकर ग्रीष्म में सुखनेवाली नदियों में कुंवो का निर्माण करने का सुझाव दिया था।
सन १९६५-७६ के बिच एक प्रस्ताव आया था गंगा-कावेरी प्रकल्प ! उसमे से अधिक चर्चा कॅप्टन दस्तूर के ' गारलैंड केनोल स्कीम' की हुई तथा दूसरी डॉ.के.एल.राव की 'नैशनल वाटर ग्रिड स्कीम' की थी। जिसे अधिक मान्यता मिली.गंगा से कावेरी तक २६४० कि.मी.जल प्रवाह से १६८० क्यूमेक्स जल १५० दिन तक बहेगा.यह अनुमान था।
       इस कार्य में समस्या जल को उठाने की थी ,इस योजना में १४०० क्यूमेक्स जल ५४९ मीटर ऊँचा उठाना पड़ेगा। जिसके लिए ५-७ मेट्रिक किलो वेट बिजली की आवश्यकता है होगी। नर्मदा का जल गुजरात-राजस्थान में फ़ैलाने के लिए २७५ मीटर तक उठाना पड़ेगा.गंगा-ब्रह्मपुत्र नदी प्रवाह एक करने के लिए १८००-३००० क्यूमेक्स जल १२-१५ मीटर तक उठाना पड़ेगा होगा। विद्युत् भार नियमन के कारण यह असंभवसा है.परन्तु,राजस्थान के थार में अब श्री गंगाजी बहेगी ऐसा संकेत मिले थे।

       महाराष्ट्र के एक अभियंता श्री.एम्.डी.पोल जी ने १९७६ में 'इरिगेशन पोजेक्ट फॉर इंडिया' दिया था। जिसमे विद्युत् प्रयोग के बदले गुरुत्वकर्षण से गंगा-ब्रह्मपुत्र का जल कन्याकुमारी तक जा सकेगा.उसमे भी सुधार कर उन्होंने ' नैशनल इंटिग्रेटेड वाटर रिसोर्सेस डेवलोपमेंट प्लान फॉर इंडिया' बनाया था।
       हिमालय का जल स्त्रोत रोककर विशिष्ट ऊँचाई पर संचयन कर दार्जिलिंग में लाकर दक्षिण हिन्दुस्थान में घुमाव किया जाने का प्रस्ताव है.जिसमे दार्जिलिंग से रांची ५७५-६५० कि.मी. Underground Pressure Tunnels से २०० से २५० मीटर निचे से गुरुत्वाकर्षण से होकर बहेगा।
          प्राचीन काल में सगर वंशीय भगीरथ ने गंगा भूमि पर प्रवाहित की.अलकनंदा-मन्दाकिनी समेत तिन स्त्रोत एक साथ जोड़कर उत्कृष्ट अभियंता का अविष्कार किया था।'गंगा सागर' यह उनकी ही देन है.उत्तर से दक्षिण की ओर प्रवाह से हरित क्रान्ति तो होगी ही ५७,२२७ मैगावेट की विद्युत् निर्मिती अपेक्षित है.मत्स्योद्योग में बढौतरी होगी तथा उत्तर हिन्दुस्थान में ६७% बाढ़ में कमी आएगी.कृष्णा खोरे प्रकल्प या कोंकण रेल ने ऐसे प्रकल्प को प्रोत्साहित किया है।
          हिमालय से मिलनेवाले जल पर चीन की भी वक्र दृष्टी है,ब्रह्मपुत्र (त्सांगपो) नदी चीन से बहकर अरुणाचल प्रदेश से ईशान्य से हिन्दुस्थान में बहती है उसके प्रवाहो में अणु ध्वम्म कर उसे रोकने का षड्यंत्र हो रहा है और इस ही कारन से अरुणाचल पर अपना कब्ज़ा बनाने का षड्यंत्र उजागर हुवा है.हिमालयीन स्त्रोत अथवा प्रवाह रोकने का भी प्रयास हो सकता है इसलिए उत्तर से दक्षिण गंगा कावेरी प्रवाह को जल्द से जल्द पूरा करने से लागत में भी कमी आएगी।
           टिहरी बाँध के निर्माण में स्थानीय लोगो को हानि पहुंचाकर जल स्त्रोत की अनियमितता हुई है.हिन्दू धार्मिक भावना को ठेस पहुंचाकर गंगा को सुखा-खनन आदि से गटर बहाकर प्रदूषित किया गया है.धर्माचार्योंकी अभ्यर्थना को सरकार अनुलक्षित कर उनके प्राण हर रही है।                                  
( सन्दर्भ- दिनांक १० अक्तूबर २००० दैनिक सामना में प्रकाशित श्री.सूर्यकांत पलसकरजी के लेख से अनुवादित )

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