30 मार्च 2016

हिंदू नव संवत्सर पर सावरकर संदेश !

हिन्दू नव वर्ष विक्रम संवत - चैत्र प्रतिपदा कहे या गुढी पाडवा सन १९४४ मार्च पुणे नगर हिन्दू महासभा ने वीर सावरकर जी की उपस्थिति में स.पा.महाविद्यालय के मैदान में समारोह संपन्न किया था।
" विक्रम संवत का द्वि सहस्त्राब्दी महोत्सव ! शककर्ता विक्रमादित्य और उनका स्मरण ! हमारे शालेय पुस्तकोंसे हमें केवल इतना पता था की,विक्रमादित्य कोई महान राजपुरुष होकर गए और उन्होंने विदेशी शकों को भगाया। परन्तु, आज की पुस्तको से इनका नाम ही गायब होता चला गया और अरबस्तान के इतिहास उदयाचल हुवा है।जिसके कारन हमारा और विक्रमादित्य का सम्बन्ध क्या है ? उसका स्मरण भी विस्मृत होता जा रहा है। द्वि सहस्त्राब्दी का यह समारोह अन्योंकी तुलनामे महत्वपूर्ण है ! अंग्रेज भी अपना इतिहास इतना बता नहीं पाते। इस कालखंड में खाल्डीयन,सुमेरियन, इजिप्शियन संस्कृति का नाश या विलय हुवा। इस घटना के स्मरण में  महोत्सव संपन्न करने हिन्दू इस संसार में जीवित है ! यही, बड़ी अभिमान की उपलब्धि है ! द्वितीय चन्द्रगुप्त भी एक विक्रमादित्य थे।

प्रथम जिसने अलेक्झांडर को पराजित कर ग्रीक साम्राज्य ध्वस्त किया वह थे सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य|
इसा पूर्व ५७ वर्ष नव संवत्सर कालगणना आरम्भ करने वाला द्वितीय विक्रमादित्य जो गुप्त वंश के थे। मंदसोर में हूणों का पराजय करने वाले यशोधर्मन तृतीय, विक्रमादित्य। बंगाल में शशांक भी विक्रमादित्य की उपाधि लगाया करते थे। दक्षिण में शालिवाहन भी विक्रमादित्य नाम से प्रसिध्द है।

अब विक्रम संवत के संस्थापक विक्रमादित्य कौनसे यह प्रश्न गौण है.....ऐसे अनेक नर रत्नोंकी उपज के कारन कौनसा उत्सव और कब करे यह प्रश्न है। क्योंकि, सम्पूर्ण वर्ष के सभी दिन इसमें बीत जायेंगे।परन्तु, परंपरा से चली यह संवत्सरी शक विदेशियोंको मार भगाने की ईसापूर्व ५७ की घटना का स्मरण मात्र है ! विदेशियोंको सीमा के अंतर्गत प्रवेश करने की हिम्मत करने से पूर्व उनकी सीमा में घुस कर पहले ही उसकी व्यवस्था क्यों नहीं की गयी ? इस बात पर मेरे मन में क्रोध उत्पन्न होता है ! फिर भी विदेशी शकोंको मार भगाने की विक्रमादित्य की घटना संस्मरनिय है , इसमें कोई संदेह नहीं ! ..........

क्षत्रियत्व त्यागे अहिंसावादी पंथोंकी प्रबलता जहा हुई वहि विदेशी आक्रमण हुवा और उसको खत्म भी गैर अहिंसावादी क्षत्रियो ने किया।अहिंसावादी पंथ विदेशी आक्रमण काल में फिर क्षत्रिय बना और इस आपत्ति के कारक अहिंसावादीयोंपर शस्त्र चलाया ! ऐसे समय उन्होंने चाइना,जापान,तिब्बत से अहिंसावादी, आक्रान्ता बुलाये तब क्षत्रियो ने उन्हें पराभूत कर " आर्यदेशे न यास्यामो कदाचित राष्ट्र हेतवे " ऐसी शर्त लिखवा ली ! जो, भविष्य पुराण में अंतर्भूत है|                    

हम यह समारोह क्यों संपन्न करते है?  मै आपके समक्ष दो मानचित्र रखता हु , ' आक्रांत सुल्तान महमूद और महमद घोरी से इसा १६५९ तक पेशावर से रामेश्वरम तक मुस्लिम सत्ता व्याप्त प्रदेश और १६५९ से १७९५ काल खंड में छत्रपति शिवाजी महाराज के कर्तुत्व से माधवराव पेशवा तक के कालखंड का कर्तुत्व यही था की मराठो ने अटक से कटक तक हिन्दवी स्वराज्य की पताका लहराई. विक्रमादित्य जैसे पराक्रमी सम्राट के उत्तराधिकारी के रूप में अभिमान पूर्वक कहने के लिए हमारे पास बहोत कुछ है यह आपको विश्वास हो जायेगा. ७०० वर्ष मुस्लिम आक्रमण के पश्चात् भी हम राष्ट्रीयता बचाकर रखने में सफल रहे। यह हमारे वीर पुरुषो वंश के अनुरूप है.मात्र यदि विक्रमादित्य विमान में बैठकर अवलोकन करेंगे तो ,' यही कहेंगे की हिन्दुओंका जीवन नारकीय बना है ! ' इस महोत्सव के माध्यम से हमने क्या पाठ पढ़ा और उससे कौनसा आचरण किया तो ब्रिटिशस्थान के साथ आनेवाला पाकिस्तान का संकट निरस्त हो जायेगा और आनेवाले कालखंड में इतिहास संशोधक संकटों की विवेचना करते रहेंगे !

जय हिन्दुराष्ट्र !

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें