19 अक्तूबर 2012

श्रीराम जन्मभूमि मंदिर रामकोट की वास्तविकता,निर्मोही आखाड़े से जुडी !

                                                                ll श्रीराम समर्थ ll   
                                      श्रीराम जन्मस्थान मंदिर,रामकोट,अयोध्या जि.अयोध्या {फ़ैजाबाद} उ.प्र.
        २३ मार्च १५२८ पूर्व से व्यवस्थापन-श्री पञ्च रामानंदीय निर्मोही अखाडा, रामघाट, अयोध्या                 
त्रेतायुग में पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध पर खगोलिक महाप्लावन (inudation)आया था। महाविनाश में स्रुष्टिपर मनु और कुछ ऋषी बचे थे। महाभारत में कहा गया है,"प्लावन से पूर्व इस वेद में कहे धर्म का नाम "सात्वत धर्म" था।" इसी धर्म का प्रचार मनु के वंश श्राध्ददेव के पुत्र इक्ष्वाकु ने किया। रामायण में श्रीराम को इक्ष्वाकु वंशी निरुपित किया गया है। श्रीराम का जन्म  उत्तर कौशल प्रमुख शाखा की ३९वी पीढ़ी में महाराज दशरथ के पुत्र के रूप में हुवा। चैत्र मासके शुक्ल पक्ष की नवमी को कर्क लग्न पुनर्वसु नक्षत्र,मध्यान्ह में सूर्य के मेष राशी में स्थित होने पर हुवा।कालिदास ने रघुवंश के १६वे सर्ग में, जानकी हरण के कवी कुमार दास ने अयोध्या का सुन्दर वर्णन किया है।                                                                                                                                 *जैन ग्रंथो में अयोध्या का वर्णन "तिलक मंजिरी"में धनपाल ने बढ़ कर किया है।अयोध्या नरेश ऋषभ राय और बाहुबली दो भाईयो में सत्ता संघर्ष हुवा। परन्तु,बाहुबली ने जैन मत का स्वीकार किया। काल पश्चात ऋषभ राय ने भी जैन मत का स्वीकार किया। चार तिर्थंकरो की जन्म भूमि अयोध्या ही रही है और विशेषता यह की एक वंश था,इक्ष्वाकु !

 *इक्ष्वाकु कुल की लिच्छवी शाखा में महात्मा बुध्द का जन्म हुवा। महात्मा बुध्द का सम्पूर्ण जीवन कौशल में बिता,जन्म कपिलवस्तु में,मुख्य निवास सरावती,धम्म प्रसार सारनाथ और महानिर्वाण कुशीनगर में हुवा जो कौशल प्रदेश में हुवा। भगवान बुध्द राजधानी अयोध्या आने का प्रमाण दन्त धावन कुंड है,किन्तु नगरी की दशा उस समय उन्नत नहीं थी।

                                                                                                                                                         *श्रीराम पुत्रों के वंश में गुरु श्री नानकदेव कालूराम बेदी जी और गुरुश्री गोबिंदसिंह तेगबहादुर सोढ़ी जी का अविर्भाव हुवा,कुश वंश के कालकेतु ने लव के वंश कालराय के लाहोर पर कब्ज़ा किया तब निष्कासित कालराय सनौढ़ के राजाश्रय में गए। आगे उनके दामाद बने। कालराय के सोढ़ीराय वंश ने कालकेतु के वंश को सत्ताच्युत कर दिया। एक शाखा नेपाल जाकर शासक राणा बनी। दूसरी शाखा राजस्थान जाकर शासक महाराणा बनी। तीसरी शाखा वाराणसी जाकर चतुर्वेदी बनी। जो,बेदी बने ! बेदियों की ख्याति सुनकर सोढ़ीयो ने सन्मान से आमंत्रित किया उनके ज्ञान, वाणी,बल,तेज के प्रभावसे और पूर्व कालीन भूलों के कारन उन्हें राजसत्ता सौपकर बनवास चले गए।गुरुश्री नानकदेवजी के पुत्र बाबा श्रीचंद और महाराणा प्रताप की हल्दीघाटी में हुई भेट एक वंश के दो शाखाओ मिलन था।                              
 *अलेक्झांडर पंजाब के रास्ते आया परन्तु १२ गणराज्यो ने आपसी भेद भुलाकर संयुक्त हमला कर लौटने को विवश किया.उसके पराजय को ध्यान में रखकर रोमन-कुषाण मिनेंडर ने वैष्णवो की एकात्मता पर प्रहार करने बुध्द मतावलंबी बनाने का स्वांग किया। मगध सम्राट बृहद्रथ ने उसपर विश्वास किया और  मानवरक्त प्राशी रोमन सेना का आतंक आरम्भ हुवा। स्थानीय बुध्द प्रत्याक्रमण नहीं सहायता करेंगे इस विश्वास के साथ मिनैडर ने वैष्णव मंदिर ध्वस्त करना आरम्भ कर दिया। बदरीनाथजी की मूर्ति नारदकुंड में फेंक दी।अयोध्या-मथुरा के जन्मस्थान घेरकर ध्वस्त किये।समस्त घटनाओ के लिए बृहद्रथ को दोषी मानकर उसके सेनापति पुष्यमित्रने उसकी हत्या की और रोमनों को मार भगाकर मंदिर-स्तूप खड़े किये.२बार अश्वमेध यज्ञ किया। मिराशी संशोधन मंडल को मंदिर शिलालेख में,"द्विरश्वमेध् याजिना:सेनापते: पुष्यमित्र्स्य षष्ठेन पुत्रेन केतनं कारितं ll "मिला। उपरोक्त हार के कारण सभी हिन्दू अपने भेद नष्ट करके संगठीत होकर तीन महीने के संघर्ष के पश्चात शुंग वंशीय राजा द्युमत्सेन ने मिनेंडर को परास्त किया और मार गिराया। फिर भी कुषाणों के आक्रमण बारंबार होते रहे,इसलिए श्रीराम जन्मस्थान पर मंदिर बनाने में बाधा आती रही।आक्रान्ता मिनैडर पर "मिलिंदपन्ह"ग्रन्थ लिखनेवाले आचार्योने उसकी अस्थियोपर कब्ज़ा करने में प्राण गवाकर भी रोमनोंसे आधा हिस्सा लेकर स्तूप बनाए।
 *ईसापूर्व सौ वर्ष महाराजा विक्रमादित्य के बड़े भाई भर्तृहरि ने राज्य छोड़कर संन्यास लिया,गुरु गोरखनाथ महाराज के शिष्य बने। सम्राट विक्रमादित्य जब राम दर्शन करने आये तब देखा की,सर्व ध्वस्त है.तब उन्होंने महाराज कुश द्वारा बनाये हवेली के जोते (पहिये) को ढूंडकर उसपर विशाल श्रीराम जन्मस्थान हवेली और अन्य ३६० मंदिरों की निर्मिती की थी। इसके स्तम्भों का उल्लेख 'वंशीय प्रबंध' तथा 'लोमस रामायण' में मिलता है। प्रभु श्रीराम की श्यामवर्ण मूर्ति थी। इस प्रतिमा की प्राणप्रतिष्ठा राम नवमी को उत्सव के साथ की गई।
इस्लाम के उद्भव के कारण अनेक आक्रमण बृहत्तर भारत ने झेले। सन १०२६ सोरटी सोमनाथ मंदिर पर महमूद गझनवी ने आक्रमण कर ध्वस्त किया तो,उसके भांजे सालार मसूद ने १०३२ में 'सतरखा' (साकेत) जीता और अयोध्या पर आक्रमण किया। श्रीराम जन्मस्थान हवेली (मंदिर) ध्वस्त करने के कारण अनेक राजाओं ने मिलकर उसे भागने पर विवश किया। राजा सुहेलदेव पासी ने उसका पीछा किया और सिंधौली-सीतापुर में सय्यद सालार मसूद के "पांच सिपहसालार" मार गिराए। वहीं उनको दफनाकर पासी राजा सुहेलदेव मसूद के पीछे पड़ा। मात्र अब उन कब्र को मजार कहकर " पंचवीर " कहा जा रहा है।

मसूद के जीवनीकार अब्दुर्रहमान चिश्ती ने लिखा है, सुहेलदेव ने अनेक राजाओं को पत्र लिखा था। य़ह मातृभूमी हमारे पूर्वजों की है और यह बालक मसूद हमसे छिनना चाहता है।जितनी तेजी से हो सके आओ,अन्यथा हम अपना देश खो देंगे। यह पत्र सालार के हाथ लगा था और भागने की तयार था।पासी राजा के नेतृत्व में लडने १७ राजा सेना लेकर आए।इनमें राय रईब,राय अर्जुन,राम भिखन,राय कनक,राय कल्याण,राय भकरू,राय सबरू,राय वीरबल,जय जयपाल,राय श्रीपाल,राय हरपाल,राय प्रभू,राय देव नारायण और राय नरसिंह आदी पहूंचे।बहराइच से ७ कोस दूर प्रयागपुर के निकट घाघरा के तटपर महासमर हुवा।चारों ओर से घेरकर, रसद तोडकर कई दिनों के युध्द पश्चात् १४ जून १०३३ को सालार मसूद मारा गया।चूनचूनकर मुसलमान लुटेरों को मारा गया।सालार मसूद को जहां दफनाया उस बहराइच की कब्र को अब मजार कहकर मुसलमान धार्मिक प्रतिष्ठा दे रहे है।
   *इस्लामी आक्रंताओको मार भगानेवाले गढ़वाल नरेश गोविन्दचन्द्र शैव (१११४-११५४) ने शरणार्थी,घुसपैठियों पर "तुरष्कदंड" (निवासी कर) लगाया था। इन्होंने बुध्द मतावलंबी कुमारदेवी से विवाह कर भिक्षुओ को ६ गाव इनाम दिए,बर्मा के पेगोंग में महाबोधि प्रतिकृति मंदिर बनवाया.अपने सामंत कन्नोज नरेश नयचंद को ८४ कसोटी के गढ़वाली पत्थर भेजकर अयोध्या में श्रीराम जन्मस्थान पर विशाल मंदिर का निर्माण किया.जिसके प्रमाण भी १८जुन १९९२ को उत्खनन में प्राप्त ३९अवशेषोमें से एक २० पंक्ति शिलालेख से ज्ञात होता है.
                                   
*महर्षि बाल्मीकि जी ने प्रभु राम का अवतार महिमामंडन नहीं किया परन्तु चरित्र उनके लिखित काव्य से ही ज्ञात होता है,स्वामी रामानुज (१४शताब्दि मध्य)ने महाविष्णु पूजा की परंपरा रखी.उन्ही के शिष्य

{Ref. 5. Ramananda (Fifteenth century):
Born at Prayag, he was the first great Bhakti saint of North India. He opened the door of Bhakti to all without any distinction of birth, caste, creed or sex. He was a worshipper of Rama and believed in two great principles, namely as perfect love for god and human brotherhood.
Ref.Link http://www.historydiscussion.net/religion/15-famous-saints-of-the-medieval-india/714 }
जगतगुरु श्री रामानंदजी ने एक ऐसे समय में जन्म लिया था जब सनातन धर्म और भारतवर्ष विदेशी आक्रान्ताओं से पददलित था और अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा था| स्वामी रामानंदजी ने सनातन धर्म की रक्षा के लिए उत्तरी भारत में भक्तियुग का आरम्भ कर रामभक्ति का द्वार सबके लिए सुलभ कर दिया| उन्होंने "अनंतानंद, भावानंद, पीपा, सेन, धन्ना, नाभा दास, नरहर्यानंद, सुखानंद, कबीर, रैदास, सुरसरी, और पदमावती" जैसे बारह लोगों को अपना प्रमुख शिष्य बनाया, जिन्हे द्वादश महाभागवत के नाम से जाना जाता है|
"रामानंद"जी  ने राम नाम का महात्म्य स्थापित किया.शास्त्र-शस्त्र युक्त साधू-सन्यासियों के अखाड़ो की निर्मिती का इतिहास १५वी शताब्दी से है.जगद्गुरौ श्री रामानंदाचार्यजी की ७००वी जयंती पर श्रीरामानंद शोध संस्थान के ३० व पुष्प स्मृति ग्रन्थ स्मरणिका के रूप में प्रस्तुत है,पृ.५४३ के १२ वे क्रम में पु.श्री.अनुभवानंदजी का तथा पृ.६९५ पर पु.श्री.बालानन्दजी का उल्लेख है.इसी क्रम में श्री पञ्च रामानंदीय निर्वाणी अखाडा संक्षिप्त इतिहास एवं संविधान के नियम पृ.३ धारा१ में पाँचसौ वर्ष पूर्व अनुभवानंद-बालानन्दजीने श्री रामानंदीय वैष्णव सम्प्रदायों के विरक्त साधुओ की तीन अणि १)निर्वाणी २)निर्मोहि३)दिगंबर अखाड़ो का निर्माण किया वर्णन है।इन तीनो आखाड़ो को सेवा का विकेन्द्रीकरण जगद्गुरु श्री रामानंद जी ने किया था।
श्री हनुमान गढ़ी -श्री पंच रामानंदीय निर्वाणी आखाड़ा-रामघाट-अयोध्या
श्रीराम जन्मस्थान मंदिर -श्री पंच रामानंदीय निर्मोही आखाड़ा-रामघाट-अयोध्या 
श्री कनक भवन सरकार -श्री पंच रामानंदीय दिगंबर आखाड़ा-रामघाट-अयोध्या
‘आखाडा’ शब्द का अर्थ, निर्मिती एवं व्याप्ती
१ अ. अर्थ : ‘आखाडा’ यह शब्द ‘अखंड’ इस शब्द का अपभ्रष्ट रूप है। अखंड (आखाडा) अर्थात सलग एवं एकसंध ऐसा संगठन।
१ आ. निर्मिती : ‘बौद्ध और मुस्लिम पंथ का भारत में विदेशी नेतृत्व के साथ उदय होने के कारण हिंदु धर्म का अस्तित्व संकट में आया। इसलिए आखाडाओ ने बल-ज्ञानोपासना के साथ विदेशी साम्राज्यवादी आक्रमणो का प्रत्युत्तर देने के लिए शस्त्रधारी दल निर्माण किये थे। संदर्भ - ( मराठी साप्ताहिक ‘लोकप्रभा’, २९.९.१९९१)
१ इ. व्याप्ती : उत्तर भारत से लेकर नासिक-त्र्यम्बक के गोदावरी नदी तट तक वास्तव्य करनेवाले सर्व पंथीय साधू औसतन १३ संघो में विचरते है। यही १३ संघ १३ ‘आखाडे’ है।

सभी साधूं-संन्यासी-नागाओ के आखाडे उत्तर भारत में होने का कारण ?
‘प्रयाग, हरद्वार (हरिद्वार), उज्जैन आणि नाशिक के श्री क्षेत्र में कुंभ स्नान के लिए इकठ्ठा होनेवाले सभी आखाडे उत्तर भारत से ही है। दक्षिण भारत में साधूंओ का एक भी आखाडा नही है। हिंदु धर्मपर हुए आक्रमण का सर्वाधिक उपसर्ग उत्तर भारत में हुवा। इस तुलना में दक्षिण भारत शांत रहा।इस ही परिणाम स्वरुप दक्षिण में ज्ञानमार्गी विद्वत्ता,तो उत्तर में बलोपासना मार्गी भक्ती दिखाई पड़ती है।’ - (साप्ताहिक ‘लोकप्रभा’, २९.९.१९९१)
श्री पंच रामानंदीय निर्मोही आखाड़ा में महाराष्ट्र से श्री समर्थ रामदास-सज्जनगढ़ नागा तथा संत शिरोमणि ज्ञानेश्वर महाराज के पिता श्री विट्ठल पंत कुलकर्णी और बांदा दुबे परिवार से आचार्य श्री तुलसी दास महाराज गोस्वामीजी,गुरु श्री गोबिंद सिंह जी के सेनापती रहे बंदा बैरागी ( माधोदास ) ,संत रविदास (रैदास ), कबीरदास ने अनुयय किया,दीक्षा ली थी।

सन १५०५ में गुरुश्री नानकदेवजी अपने मुस्लिम शिष्य मरदाना के साथ तथा आगे नवम गुरुश्री तेगबहादुरजी सोढ़ी महाराज भी मंदिर दर्शन करने अयोध्या आये थे।
                                                            
*सन १५२५ महाराणा सांगा(संग्रामसिंह)को हराकर बाबर दिल्ली तख़्तशिन हुवा,१५२८ दल-बल के साथ अयोध्या में सेखा-घागरा संगम पर डेरा डाला.फकीर फजल अब्बास कलंदर और मूसा आशिकान से दुवा मांगने गया था तब उन्होंने श्रीराम जन्मस्थान पर मस्जिद बनाने पर दुवा करने की शर्त रखी थी.मीर बांकीने दल-बल के साथ कूच किया १७ दिन चले युध्द में हिन्दुओ की हार हुई।१,७२,००० हिंदू मंदिर बचाते मारे गए तब, निर्मोही आखाडे के पुजारी महंत श्री श्यामानंद ने मुर्तीयां शरयु नदी के लक्ष्मण घाट के निचे छुपा दी थी। महताबसिंह भीटी मारे गए.मंदिर प्रविष्ट हो रहे बांकी को निर्मोही अखाड़े के मंदिर पुजारी श्री.श्यामानंदजी ने रोका तो उनका शिरच्छेद कर गर्भगृह में देखा तो वह मुर्तिया नहीं थी तब तोप से मंदिर ध्वस्त किया। (कालांतर में मुर्तिया सरयू के लक्ष्मण घाट में तमिल यात्री को स्नान करते समय मिली जो स्वर्गद्वार मंदिर में प्रतिष्ठित है।)

 आचार्य गोस्वामी तुलसीदास महाराज का विश्व को परिचय श्रीराम चरित मानस के रचयिता के रूप में है।
  यमुना के दक्षिण तट पर बांदा जिला के राजापुर में इनका आविर्भाव श्रीमान आत्माराम दुबे के कुल में मूल नक्षत्र पर सन १५३१ में हुवा।मा-बाप के त्यागने पर बैरागियो में रहकर राम कथा पान करते थे।शुकर क्षेत्र में रामानन्दीय निर्मोही आखाड़े के महंत श्री नरहरीजी का सान्निध्य प्राप्त कर उनकी दीक्षा लेकर बारह वर्ष अध्ययन किया।श्री रामभोला आत्माराम दुबे के पांडित्य को देखकर श्रीमान दीनबंधु पाठक जी ने अपनी कन्या रत्नावली का उनके साथ ब्याह करवा दिया।उनके पुत्र का नाम तारक !
परिवार त्यागकर श्रीराम का चिंतन करते हुए काशी पहुंचे तुलसीदास महाराज ने वहा रामानंदीय दीक्षा ली और आदेश पर अयोध्या पूरी पहुंचे।रामकोट में निर्मोही आखाडे में विश्राम कर रहे थे।रात स्वप्न में प्रभु श्रीराम जी ने आकर बाल्मीकि रामायण जो संस्कृत में था को प्राकृत बोली भाषा में करने की आज्ञा दी।सन १५७४ की श्रीराम नवमी को इस कार्य का आरम्भ हुवा।अयोध्या में रहने की इच्छा रहते हुए भी श्रीराम जन्मस्थान को लेकर बारंबार हो रहे सांप्रदायिक विवाद के चलते वह काशी में अस्सी घाट पर आये।यहाँ श्रीराम भक्त हनुमान अश्वत्थ वृक्ष पर रचना सुनने आते थे,वही महाराज को दर्शन भी दिए।
देहली में मुग़ल बादशाह अकबर का कार्यकाल समाप्ति पर जहाँगीर की दस्तक के साथ श्री राम चरित मानस पूर्ण हुवा। राजा टोडरमल, महाराजा जयसिंग जयपुर और अब्दुलरहीम खान उनकी राम भक्ति से अधिक प्रभावित थे।उत्तर भारत में मानस के विस्तार में गति प्राप्त हुई।
    मानस के अतिरिक्त तुसलीदास जी ने रामलला नहछु,वैराग्य संदीपनी,छंदावली रामायण,जानकी मंगल,पार्वती मंगल,श्रीराम सगुणावली,दोहावली, गीतरामायण, कडरवा-रामायण,कृष्ण गीतावली,विनय पत्रिका,हनुमान चालीसा,ऐसे अनेक व्रज-अवधी भाषा में अनेक ग्रन्थ लिखे।जो विश्व में ख्याति प्राप्त है।
 उनके 'दोहा शतक'के अंतिम चरण में श्रीराम जन्मस्थान मंदिर विध्वंस का वर्णन है.
संत गोस्वामी तुलसी दास जी द्वारा रामजन्मभूमि विध्वंश का वर्णन .....
.
संत गोस्वामी तुलसीदास जी ने "दोहा शतक" 1590 मे लिखा था। इसके आठ दोहे , 85 से 92, में मंदिर के तोड़े जाने का स्पष्ट वर्णन है। इसे रायबरेली के तालुकदार राय बहादुर बाबू सिंह जी 1944 में प्रकाशित किया।यह राम जंत्रालय प्रेस से छपा।यह एक ही बार छपा और इसकी एक कौपी जौनपुर के शांदिखुर्द गांव में उपलब्ध है।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय में जब बहस शुरू हुयी तो श्री रामभद्राचार्य जी को Indian Evidence Act के अंतर्गत एक expert witness के तौर पर बुलाया गया और इस सवाल का उत्तर पूछा गया। उन्होंने कहा कि यह सही है कि श्री रामचरित मानस में इस घटना का वर्णन नहीं है लेकिन तुलसीदास जी ने इसका वर्णन अपनी अन्य कृति 'तुलसी दोहा शतक' में किया है जो कि श्री रामचरित मानस से कम प्रचलित है।
अतः यह कहना गलत है कि तुलसी दास जी ने जो कि बाबर के समकालीन भी थे, राम मंदिर तोड़े जाने की घटना का वर्णन नहीं किया है और जहाँ तक राम चरित मानस कि बात है उसमे तो कहीं भी मुग़लों की भी चर्चा नहीं है इसका मतलब ये निकाला जाना गलत होगा कि तुलसीदास के समय में मुगल नहीं रहे।
गोस्वामी जी ने 'तुलसी दोहा शतक' में इस बात का साफ उल्लेख किया है कि किस तरह से राम मंदिर को तोड़ा गया .....
मंत्र उपनिषद ब्रह्माण्हू बहु पुराण इतिहास।
जवन जराए रोष भरी करी तुलसी परिहास।।
सिखा सूत्र से हीन करी, बल ते हिन्दू लोग।
भमरी भगाए देश ते, तुलसी कठिन कुयोग।।
सम्बत सर वसु बाण नभ, ग्रीष्म ऋतू अनुमानि।
तुलसी अवधहि जड़ जवन, अनरथ किये अनमानि।।
रामजनम महीन मंदिरहिं, तोरी मसीत बनाए।
जवहि बहु हिंदुन हते, तुलसी किन्ही हाय।।
दल्यो मीरबाकी अवध मंदिर राम समाज।
तुलसी ह्रदय हति, त्राहि त्राहि रघुराज।।
रामजनम मंदिर जहँ, लसत अवध के बीच।
तुलसी रची मसीत तहँ, मीरबांकी खाल नीच।।
रामायण घरी घंट जहन, श्रुति पुराण उपखान।
तुलसी जवन अजान तहँ, कइयों कुरान अजान।।
.
दोहा अर्थ सहित नीचे पढ़ें।
(1) राम जनम महि मंदरहिं, तोरि मसीत बनाय ।
जवहिं बहुत हिन्दू हते, तुलसी किन्ही हाय ॥
जन्मभूमि का मन्दिर नष्ट करके, उन्होंने एक मस्जिद बनाई । साथ ही तेज गति उन्होंने बहुत से हिंदुओं की हत्या की । इसे सोचकर तुलसीदास शोकाकुल हुये ।
(2) दल्यो मीरबाकी अवध मन्दिर रामसमाज ।
तुलसी रोवत ह्रदय हति हति त्राहि त्राहि रघुराज ॥
मीरबकी ने मन्दिर तथा रामसमाज (राम दरबार की मूर्तियों) को नष्ट किया । राम से रक्षा की याचना करते हुए विदिर्ण ह्रदय तुलसी रोये ।
(3) राम जनम मन्दिर जहाँ तसत अवध के बीच ।
तुलसी रची मसीत तहँ मीरबाकी खाल नीच ॥
तुलसीदास जी कहते हैं कि अयोध्या के मध्य जहाँ राममन्दिर था वहाँ नीच मीरबकी ने मस्जिद बनाई ।
(4) रामायन घरि घट जँह, श्रुति पुरान उपखान ।
तुलसी जवन अजान तँह, कइयों कुरान अज़ान ॥
श्री तुलसीदास जी कहते है कि जहाँ रामायण, श्रुति, वेद, पुराण से सम्बंधित प्रवचन होते थे, घण्टे, घड़ियाल बजते थे, वहाँ अज्ञानी यवनों की कुरआन और अज़ान होने लगे।
(5) मन्त्र उपनिषद ब्राह्मनहुँ बहु पुरान इतिहास ।
जवन जराये रोष भरि करि तुलसी परिहास ॥
श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि क्रोध से ओतप्रोत यवनों ने बहुत सारे मन्त्र (संहिता), उपनिषद, ब्राह्मणग्रन्थों (जो वेद के अंग होते हैं) तथा पुराण और इतिहास सम्बन्धी ग्रन्थों का उपहास करते हुये उन्हें जला दिया ।
(6) सिखा सूत्र से हीन करि बल ते हिन्दू लोग ।
भमरि भगाये देश ते तुलसी कठिन कुजोग ॥
श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि ताकत से हिंदुओं की शिखा (चोटी) और यग्योपवित से रहित करके उनको गृहविहीन कर अपने पैतृक देश से भगा दिया ।
(7) बाबर बर्बर आइके कर लीन्हे करवाल ।
हने पचारि पचारि जन जन तुलसी काल कराल ॥
श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि हाँथ में तलवार लिये हुये बर्बर बाबर आया और लोगों को ललकार ललकार कर हत्या की । यह समय अत्यन्त भीषण था ।
(8) सम्बत सर वसु बान नभ ग्रीष्म ऋतु अनुमानि ।
तुलसी अवधहिं जड़ जवन अनरथ किये अनखानि ॥
(इस दोहा में ज्योतिषीय काल गणना में अंक दायें से बाईं ओर लिखे जाते थे, सर (शर) = 5, वसु = 8, बान (बाण) = 5, नभ = 1 अर्थात विक्रम सम्वत 1585 और विक्रम सम्वत में से 57 वर्ष घटा देने से ईस्वी सन 1528 आता है ।)
श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि सम्वत् 1585 विक्रमी (सन 1528 ई) अनुमानतः ग्रीष्मकाल में जड़ यवनों अवध में वर्णनातीत अनर्थ किये । (वर्णन न करने योग्य) ।
अब यह स्पष्ट हो गया कि गोस्वामी तुलसीदास जी की इस रचना में #रामजन्मभूमि विध्वंस का विस्तृत रूप से वर्णन किया किया है।
(साभार धन्यवाद माननीय श्री Arun Lavania)

                                                                
  सन्दर्भ-१)ऑस्ट्रेलियन मिशनरी जोसेफ टायफेंथालेर ने १७६६-१७७१ अयोध्या यात्रासे लौटकर १७८५ में लिखी हिस्ट्री अन जोग्राफी इंडिया के पृ.२३५-२५४ पर लिखे सन्दर्भ के अनुसार,"बाबरने राम जन्मभूमि स्थित मंदिर ध्वस्त कर मस्जिद बनवाने का प्रयास किया.उसमे मंदिर के मलबे से निकले ८४ कसोटी के स्तंभों का प्रयोग किया. मुसलमानों से लड़कर हिन्दू वह पूजा अर्चना करते है,परिसर में बने राम चबूतरा पर परिक्रमा की जाती है."
२)१६०८-१६११ भारत भ्रमण आये विल्यम फिंच की अर्ली ट्रेवल्स इन इंडिया के पृ.१७६ पर रामफोर्ट-रानिचंड का उल्लेख है.
३)गैझेटियर ऑफ़ दी टेरीटरिज अंडर गव्हर्मेंट ऑफ़ इस्ट इंडिया कं.लेखक एडवर्ड थोर्नटन पृ.क्र.७३९-४० पर १८५४ में लिखते है,"बाबर ने मस्जिद के लिए मंदिर गिराकर उसी के मलबे से १४स्तम्भ चुनकर लगवाए."
४)इनसाय्क्लोपीडिया ऑफ़ इंडिया १८५७ एडवर्ड बाल्फोअर,"राम जन्मस्थान,स्वर गडवार,माता का ठाकुर ३ मंदिर गिराकर मस्जिद कड़ी की गयी."
५)हिस्टोरिकल स्केच ऑफ़ फ़ैजाबाद ले. कार्नेजी १८७०,"राम मंदिर में काले से वजनदार स्तम्भ थे,उनपर सुन्दर नक्काशिकामकिया गया था,मंदिर गिराने के पश्चात मस्जिद में लगाया गया."
६)गैझिटियरऑफ़ दी डाविन्सअवध -१८७७,बाबर ने १५२८ में मंदिर गिरक मस्जिद बनवाई
 ७)पर्शियन ग्रन्थ हदीका इ शहादा ले.मिर्जा जान १८५६ लखनोऊ पृ.७,"मथुरा,वाराणसी, अयोध्या में हिन्दू आस्था जुडी है,जिन्हें बाबर के आदेश से ध्वस्त कर मस्जिदे बनाई गयी."
८)ब्रिटिश नियुक्त जन्मभूमि व्यवस्थापक मौलवी अब्दुल करीम की ग़ुमइश्ते हालात इ अयोध्या में मान्य किया है की,मंदिरों को गिराकर मस्जिद बनायीं गयी थी.
९)अकबरनामा आइन ए अवध अब्दुल फाजल १५९८,अन्य                                                                      मंदिर गिराने के पश्चात मस्जिद बनाते समय २ वर्ष युध्द जारी था हंसबर नरेश रणविजयसिंह,महारानी जयराजकुमारी उनके राजगुरु पं.देवीदीन पाण्डेय के बलिदान के बीच स्वामी महेशानंद सधुसेनालेकर लडे. मस्जिद बनाने जितनी दिवार दिनभर बन जाती रात में टूट जाती थी तब बाबर ने हिन्दू संतो की राय मांगी, और साधुओ के भजन पूजन का स्थान बनवाया,मीनार तोड़ दिए,वजू के लिए जलाशय नहीं बनवाया,द्वार पर सीता पाकस्थान लिखवाया,छत में चन्दन की लकड़ी लगवाई.                                                                           *अकबर के कार्यकाल १५५६-१६०६ स्वामी बलरामाचार्या जी ने २० बार लड़कर मंदिर कब्ज़ा बनाये रखा.(आईने अकबरी)अकबर ने बीरबल और टोडरमल की राय से चबूतरा बनाकर उसपर छोटा राम मंदिर बनवाया. औरंगजेब कार्यकाल १६५८-१७०७ हिन्दुओने ३० बार लड़कर कब्ज़ा रखा,सन १६८० सैयद हसन अली के नेतृत्व में ५० सहस्त्र सेना भेजी,प्रयाग कुम्भ पर्व पर गुरुश्री गोबिंद सिंह ब्रह्मकुण्ड ठहरे थे निर्मोही बाबा वैष्णव दास जी ने उनसे मिलकर व्यथा बताई तब पं.कृपाराम के नेतृत्व में ५ सहस्त्र चिमटाधारी साधुसेनाने हसन अली को मार डाला और आक्रमण लौटाया.(आलमगीरनामा पृ.६२३)१६८४ में रमजान की तरिख२४ को शाही फौज ने फिर हमला किया कुंवर गोपालसिंह,ठा.जगदम्बासिंह ,ठा.गजराजसिंह ने खूब लडाई लड़ी.दश सहस्त्र हिन्दू मारे गए उनकी लाशें कंदर्प कूप में डालकर चारो ओर दीवारे उठाई जो मंदिर के पूर्व द्वार 'गज शाहिदा 'नाम से थी.      लखनऊ नबाब सआदत अली खा कार्यकाल १७७०-१८१४ में अमेटी नरेश गुरुदत्तसिंह ओर पिपरा के राजकुमारसिंह ने ५ बार हमले कर मंदिर निर्मोही को सौपा.                                                                 *नसीरुद्दीन हैदर के १८३६ तक के कार्यकाल में मकरही नरेश ने ३ बार हमला कर मंदिर सुरक्षित रखा.               *वाजिद अली शाह के १८४७-५७ कार्यकाल में दो बार निर्मोही अखाड़े के महंत बाबा उध्दवदास ओर बाबा रामचरणदास जी ने गोंडा नरेश देविबक्षसिंहकी  सहायतासे मंदिर पर कब्ज़ा लिया.                                          *१८५७ स्वाधीनता संग्राम की पृष्ठ भूमि पर १८५५ हरिद्वार कुम्भ पर्व में स्वामी पूर्णानंद (दस्सा बाबा), ओमानंद, अन्ध्स्वामी विरजानंद,मूलशंकर (दयानंद सरस्वती) ने बहादुर शाह के नेतृत्व में ३१ मई १८५५ लाल किले पर स्वर्णपन्ना ध्वज लहराया,और संग्राम का शंखनाद किया था,परिणाम स्वरुप अयोध्या नरेश मानसिंह के कहने पर वाजिद अली ने श्रीराम जन्मस्थान पर फिर से चबूतरा खड़ा करने की आज्ञा दी,चबूतरे पर ३ फिट खस की तत्तियोका छोटासा मंदिर बना,मूर्ति की पूजा होने लगी.आमिर अली ने वाजिद अली और निर्मोही अखाड़े के बाबा रामचरणदास के बीच मध्यस्थता कर श्रीराम जन्मस्थान पर मस्जिद नहीं होने का निर्णय घोषित किया,ब्रिटिश एकात्मता नहीं चाहते थे उन्होंने बाबा और आमिर को फांसी दी और वाजिद अली को बंदी बनाकर लन्दन भेज दिया. मंदिर का व्यवस्थापन अब्दुल करीम को सौपा.परन्तु उसने भी मंदिर ही मान्य किया है. ब्रिटिश साम्राज्यवादियोने स्वाधीनता संग्राम को कुचलने के पश्चात दोनों भिन्न मार्गी-विरोधी धर्मोके बीच अलगाववादी बिज बोए.                                                                                                  
*राजनितिक उद्देशसे मो.अजगर को उकसाकर जन्मस्थान की दिवार में द्वार बनाकर नमाज के लिए मंदिर के पीछे मैदान में जाने का रास्ता बनाने प्रस्ताव रखा गया.१३ दिस.१८७७ को यह विवाद ब्रिटिश आयुक्त के पास गया. निर्मोही अखाडा के महंत श्री खेमदासजीने विरोध किया परन्तु,ब्रिटिश कूटनीति के अनुसार मुस्लिम पक्ष जीत गया.                                                                                                                                             *ब्रिटिश प्रथम पुरातत्वविद कनिंगहम द्वारा १८८१-८२ में श्रीराम मंदिर में शिलालेख लगाने से मामला उलझा.निर्मोही अखाड़े की आपत्ति को अनदेखा किया गया,१९जन.१८८५ को फ़ैजाबाद कनिष्ठ न्यायलय में निर्मोही अखाडा महंत श्री रघुबरदास जी ने चबूतरे पर छत डालने की अनुमति मांगी.याचिका निरस्त हुई तब जिला न्यायलय में दीवानी वाद क्र.१७/१८८५ प्रस्तुत किया;न्या.कर्नल एम्.इ.ए.चामियार ने राम जन्मस्थान दौरे की नौटंकी की और पूर्व निर्णय स्थिर रखा.फिर १८ मार्च १८८६ को कमिश्नर ऑफ़ डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में अभ्यर्थना(अपील)की.न्या.डब्ल्यू.यंग ने इतिहास में झांके बीना "विवादित स्थल-मस्जिद द जन्मस्थान" कहकर दावा निरस्त किया.                                                                                                                 *१९१२ साधू और जागृत हिन्दू समाज के संयुक्त आन्दोलन में दंगा भड़का और विवादित वास्तु ढह गयी,उसकी लीपापोती ब्रिटिशोने १९२१ पश्चात् करवाई.इस्लामी ग्रंथ कुराण की धर्माज्ञा ७/१४३ नुसार केवल नरपशु बलि ग्राह्य है,मादी पशु नहीं।ब्रिटिश सरकार का राजनितिक प्रोत्साहन और हिन्दू दैवत होने के कारन उकसाने हेतु गो हत्या होती रही है,२७ मार्च१९३४ गो हत्या के पश्चात्  दंगे में ३ मुस्लिम हालाक (मृत) हुए,विवादित स्थान ढहा.फ़ैजाबाद डिप्टी कमिश्नर निकल्सनने फिर लीपापोती की और हत्या के आरोपियों को छोड़ दिया.          
*अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए गांधीजी का लाभ उठानेवाले नेहरू पिता-पुत्र ने सामंती अधिकार चलाया,२७ जुलाई १९३७ के नवजीवन में गांधीजी ने रामगोपाल शरद को लिखा है,"मुग़ल शासको ने अनेक हिन्दू धार्मिक स्थानों पर कब्ज़ा किया,लुटा या नष्ट कर मस्जिद का रूप दे दिया,मंदिर-मस्जिद में भेद नहीं परन्तु हिन्दू-मुस्लिम पूजा परंपरा भिन्न है,जहा ऐसे कांड हुए है वे धार्मिक गुलामी के चिन्ह है.दोनों पक्शोको मेलजोल कर आपसी कब्जे के मंदिर-मस्जिद वापस लौटा देने चाहिए,इससे भेदभाव ख़त्म होगा और एकता बढ़ेगी."गाँधी आदेश का प्रभाव यह हुवा की,दिल्ली की फतेहपुरी मस्जिद की ब्रिटिशो द्वारा हो रही नीलामी हिन्दू ने लेकर इबादत के लिए वापस दी.परन्तु क्या अब राष्ट्रभक्त मुस्लिम है ?                                                                      *1935 सांप्रदायिक निर्णय,संविधान में हिन्दू महासभा के प्रिवी कौन्सिल तक लड़ने के बाद भी कांग्रेस की तटस्थता के कारन समाविष्ट हुवा.वक्फ बोर्ड का गठन हुवा और १९३६ में वक्फ का विधान बना.परन्तु ,श्रीराम जन्म मंदिर,परिसर वक्फ की संपत्ति नहीं बनी.१६ सप्त.१९३८ फ़ैजाबाद जिला वक्फ आयुक्त ने वास्तु सरकारी व्यवस्थापक सै.महम्मद झाकी शिया के कथनानुसार ,'इस विवादित वास्तु में मुस्लमान नमाज पढ़ने के इच्छुक नहीं,इस्लाम की मान्यता के अनुसार मंदिर को पाक नहीं मानते.'लिखा है।विवाद समाप्त था।
लाहोर के शहिदगंज साहिब गुरुद्वारा को अकाली नेता मास्टर तारासिंह और वायव्य सरहद प्रान्त हिन्दू महासभा अध्यक्ष राय बहादुर बद्रीदास ने प्रिवी कौन्सिल लन्दन में लड़कर ३ न्यायाधिश पीठ के सिख,मुस्लिम,ब्रिटिश न्यायमूर्तियो में से एक दिन मोहमद ने ९० वर्ष चले विवाद के बाद दिनांक २ मई १९४० हिन्दुओ को सौपा.      
*१४ जुलाई १९४१ फ़ैजाबाद नझूल विभाग ने श्रीराम जन्मभूमि मंदिर-परिसर,रामकोट अयोध्या ६७.७७ को प्लाट क्र.५८३ से पंजीकृत किया वर्णन-तीन गुम्बद मंदिर कब्ज़ा-श्री पञ्च रामानंदीय निर्मोही अखाडा महन्त् श्री राम रघुनाथ दास पुजारी श्री राम सकल दास,रामसुभग दास ऐसा वर्णन है।सन १९४४ के उ.प्र.गैझेट में,'शिया या सुन्नी मुस्लमान या वक्फ बोर्ड ने "मस्जिद द जन्मस्थान"रख रखाव में कोई रूचि नहीं दिखाई.'लिखा है.इस बीच अखंड हिन्दुस्थान विभाजन की ओर बढ़ रहा था,अल्प संख्यको की जनसँख्या के अनुपात में भौगोलिक,संपत्तिक,सामरिक, राजनयिक बटवारा हुवा.१४ अगस्त १९४७ को विभाजन हुवा.हिन्दू विवादित धार्मिक स्थल जैसे थे कहकर ब्रिटिश राजनीती की परंपरा को परिपाठी बनाया गया। १९ मार्च १९४९ को श्रीराम जन्मस्थान का फ़ैजाबाद (अयोध्या) में श्री पंच रामानंद निर्मोही आखाड़ा पंजीकृत न्यास बना और उसके १५ पंच ट्रस्टी !
  श्रीराम जन्मभूमि ले.राधेशाम शुक्ल १९८५ मधु प्रकाशन,५९०,रामकोट अयोध्या से निम्नलेख साभार   मंदिर तो था परन्तु, मुक्त नहीं था इसलिए अयोध्या वासी प्रक्षुब्ध थे,फ़ैजाबाद मंडल हिन्दू महासभा प्रायोजित सार्वजानिक सभा श्री हनुमान गढ़ी,अयोध्या महान्त्श्री रामदास जी की अध्यक्षता में हुई,'श्रीराम मंदिर पर श्रीराम भक्तो का अधिकार प्राप्त करने का संकल्प किया गया.'क्यों की,अल्प संख्या में जो मुस्लमान चप्पल पहनकर या उकसाने आते थे,कभी बल प्रयोग भी करके रोका गया.इसकी शिकायत स्थानीय पुलिस ठाणे में करने के कारन डेप्युटी कमिश्नर फ़ैजाबाद रामकेरसिंह ने फ़ैजाबाद जिला हिं.म.स.मंत्री ठा.श्री.गोपालसिंह विशारादजी,राम चबूतरा मंदिर पुजारी बाबा गोविन्द दास, हिं.म.स.अयोध्या नगर संयुक्तमंत्री बाबा सत्यनारायण दास,बाबा यदुनंदन दास,बाबा राम टहल दास को बंदी बनाया.गोपालसिंह जी ने अनशन करते ही नगरी में हड़ताल हुई,दुसरे दिन बाबु प्रियदत्तरामजी रामकेरसिंह से मिले तब तीसरे दिन सभी मुक्त हुए."जन्मभूमि प्रांगन में जूते-चप्पल पहनकर अहाते में प्रवेश पाबन्दी का फलक अनावरण हुवा."उत्साह वर्धन हुवा.                                                                                                                                                [शरणार्थी हिन्दुओ की उपेक्षा,जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान की घुसपैठ के बाद भी ५५ करोड़ देने का गाँधी हठ उनकी हत्या का कारन बना.हिन्दू महासभा पूर्व महामंत्री पं.नथूरामजी ने ३ गोलिया दागी.]हिन्दू महासभा और हिन्दू महासभा की कोख से जन्मे कांग्रेस के पिछलग्गू हिन्दू देशभर में बंदी बनाये गए.अयोध्या में भी इसका असर दिखाई दिया.२२ मई १९४८ को गोपालसिंह,लक्ष्मण शास्त्री अन्य मुक्त हुए.तब तक जन जागृति बंद रही.
+
   *अक्तू.१९४९ अयोध्या में राजबाड़े के सामने उ.प्र.वि.स.अध्यक्ष गोविन्द सहाय की जनसभा में अयोध्या नगर हिं.म.स.मंत्री परमहंस श्री.रामचंद्रदास महंत दिगंबर अखाडा;प्रचारक बाबा अभिरामदास;जिला मंत्री ठा.गोपालसिंह ;जिला संयुक्त मंत्री पं.लक्ष्मण शास्त्री;महाराजा इंटर कोलेज प्रा.पं.भगीरथप्रसाद त्रिपाठी एवं नगरजन उपस्थित थे.बाबा अभिरामदास,परमहंस रामचंद्रदासजी ने सभा में उठकर श्रीराम जन्मस्थान पर बोलने का आग्रह किया,सहाय जनसभा छोड़कर भाग गए.हिन्दू महासभाईयो ने मंच का कब्जा किया और हनुमान गढ़ी के महान्त्श्री रामदासजी की अध्यक्षता में ,"प्राचीन कालसे रामजन्म भूमि हमारी है,हमारे मर्यादा पुरुषोत्तम की चिरंतर जन्मभूमि है,उसपर लुटेरे आक्रंताओ ने अमानवीय बल पर कब्ज़ा किया है,आज हिन्दुस्थान स्वतंत्र है.इसलिए यह जन्मभूमि हमें अविलम्ब वापस की जाये."प्रस्ताव प्रशासनिक अधिकारी, विधानसभा सदस्यों को भेजा गया.                                                                                                                हिन्दू महासभा अंतर्गत कार्यरत श्रीरामायण महासभा के प्रधान महंतश्री रामचंद्रदास ,सं.मंत्री गोपालसिंह, संघटक श्री.अभिरामदास की सार्वजानिक सभा हनुमान गढ़ी पर संपन्न हुई.इस सभा में तय हुवा प.पू.श्री.वेदांती राम पदार्थदास जी की अध्यक्षता में का.कृ.९ को रामचरित मानस के १०८ नव्हान्न पाठ;समापन उ.प्र.हिं.म.स. अध्यक्ष महन्त् श्री दिग्विजयनाथ जी की उपस्थिति में,स्वामी करपात्रीजी महाराज,कांग्रेसी बाबा राघवदास,बड़ा स्थान महंत श्री.बिन्दुगाद्याचार्यजी,रघुवीर प्रसादाचार्यजी के भाषण प्रवचन हुए.वही मार्गशीर्ष शु.२ श्रीराम जानकी विवाह तिथि पर मानस के ११०८ नव्हान्न पाठ का संकल्प हुवा। निर्मोही अखाडा के महन्त् श्री बलदेवदास ,जन्मस्थान पुजारी तथा हिन्दू महासभा नगर कार्याध्यक्ष श्री.हरिहरदास ,पार्षद स्वर्गीय श्री परमहंस रामचंद्रदास,तपस्वियों की छावनी के अधिरिसंत दास,बाबा वृन्दावन दास,हिन्दू महासभा फ़ैजाबाद जिला अध्यक्ष ठा.गोपालसिंह विशारद जी ने सम्पूर्ण मंदिर परिसर साफ़,समतल किया.११०८ से अधिक पाठकर्ता जन्मस्थान से हनुमान गढ़ी तक कतार में, इन में मुसलमान भी पाठ कर्ता थे.                           * जहूर अहमद को यह आयोजन रास नहीं आया उसने,मंडल कलेक्टर श्री.कृष्ण कुमार करुणाकर नायर से 'बाबरी पर कब्जे' शिकायत की.चार लोग बंदी बनाये गए;छुट गए.जहूर ने जुम्मे की नमाज की अनुमति मांगी, दिस.१९४९ प्रथम सप्ताह ८५ नमाजी पहुंचे भी परन्तु,सैकड़ो की भीड़ देखकर वापस गए.पूजा-अर्चन में विघ्न बंद हुए.नव्हान्न पाठ से परिसर अतृप्त आत्माओसे मुक्त हुवा और परिसर पर फैली कलि छाया का नाश हुवा.मन्त्र शक्ति का सामर्थ्य था.                                                                                                                      *२४ दिस.१९४९ अखिल भारत हिन्दू महासभा अधिवेशन डा.ना.भा.खरे की अध्यक्षता में स्वा.वीर सावरकरजी की उपस्थिती में कोलकाता में होने जा रहा था,उसके पूर्व संतो का सहोत्साह अखंड भजन-कीर्तन श्रीराम जन्म मंदिर में हो रहा था.दी.२३-२४दिस.१९४९ की भोर में ४ बजे गर्भगृह में विलक्षण घटना घटी,बाबर के नाम से लांछित वास्तु में यकायक प्रकाश झगमगाया शंख,घंटा,नगाड़े बजने लगे.श्रीराम नाम का स्वर ऊँचा हुवा,शिशिर  ह्रूतु में श्रीराम विग्रह प्रकट हुए.घटना की आँखों देखि हवालदार अबुल बरकत खा मूर्छित हुवा.यह वार्ता विद्युत् गति से फ़ैल गयी.प्रातः होते होते देश जान गया,जो मिले साधन से सभी अयोध्या की ओर निकल पड़े. कोलकाता १९४९ हिन्दू महासभा अधिवेशन की प्रतिबध्दता उ.प्र.हिं.म.स.अध्यक्ष महंत श्री.दिग्विजयनाथ जी ने पूर्ण की.६ संत श्री अभिरामदास,वृन्दावनदास,रामसुभगदास,रामसकलदास,रामबिलासदास,सुदर्शन दास महाराजजी पर मुर्तिया स्थापित करने का निराधार आरोप लगा था;अभियोग भी चला,सभी आरोपमुक्त हुए.      स्थानीय पुलिस ने तत्काल नगर दंडाधिकारी,डेप्युटी कमिश्नर,पुलिस कप्तान को सूचित कर जन्मस्थान की ओर  दौड़ लगायी.प्रचंड जनसमुदाय इकठ्ठा हुवा था.पुलिस कुछ नहीं कर सकी.डे.कमिश्नर नायर को मुर्तिया हटाने का आदेश मिला.तब उन्होंने स्पष्ट किया की,ऐसा करने से दंगा भड़केगा और परिस्थिति नियंत्रण से बाहर हो जाएगी. D.I.G. U.P. सरदारसिंह हवाई जहाज से फ़ैजाबाद ,मोटर से अयोध्या पहुंचे सरकार को स्थित से अवगत कराया.सरकार स्वयं निर्णय लेने में असमर्थ थी,जिलाधिकारी नायर को उचित कार्यवाही का सन्देश दिया.नेहरू के आदेश से मंदिर के कपाट बंद क़र गर्भगृह को ताला ठोक दिया.अन्दर बाबा अभिरामदास, गुदड़ बाबा रह गए,उन्होंने अन्दर ही अनशन आरम्भ किया.नगर में अनशन और हड़ताल पड़ी,नगर संतो ने ,'जब तक श्रीराम लला को भोग नहीं लगता तब तक भोग-भोजन नहीं.'ऐसा निर्णय किया.परिस्थिति की गंभीरता को देखकर नायरजीने जिम्मेदारी के साथ "विवादग्रस्त वास्तु"घोषित क़र धारा १४५ के अंतर्गत दी.२९दिस.१९४९ को परिसर कुर्की के साथ २०० गज परिसर में गैर हिन्दू प्रतिबन्ध लगाया,पूजा-भोग की व्यवस्था के लिए चार पुजारी नियुक्त क़र, दर्शनार्थियों के लिए लोहे के शिकंजे के बाहर से व्यवस्था लगा दी और ५जन.१९५० प्रियदत्त रामजी को भंडारी नियुक्त किया.२ वर्ष पश्चात् निर्मोही पुजारी श्री.भाष्कर दास जी को रिसीवर ने व्यवस्थापक नियुक्त किया.यथास्थिति बनाये रखने पुलिस थाना लगाया गया.                                                * फ़ैजाबाद जिला हिन्दू महासभा अध्यक्ष ठा.श्री.गोपालसिंह विशारदजी ने दीवानी न्यायलय में १६ जन.१९५० को आदेश ७ सं.१ जाप्ता दीवानी अंतर्गत स्वत्व ज्ञापक तथा सतत प्रतिबंधात्मक वाद्पत्र ३/१९५० प्रस्तुत किया. उसमे उ.प्र.प्रशासन,डेप.कमिश्नर-नायर,मार्कंडेय सिंह ,एडी.सिटी मजिस्ट्रेट-फ़ैजाबाद,पो,कप्तान-कृपालसिंह- फ़ैजाबाद,बड़ा बाजार-अयोध्या के जहूर अहमद,हाजी फेकू, टेढ़ी बाजार के महमद फायत,रायगंज के महमद समी चूड़ीवाला,कटरा के महम्मद आच्छन्न मिया को प्रतिवादी बनाया.प्रतिवादियो ने निवृत्त न्यायाधीश सर इक़बाल को आमंत्रित किया ३ दिन चले युक्तिवाद का यतार्थ यही था की याचिका स्वीकार न हो,हिन्दू महासभा अधिवक्ता चौधरी केदारनाथजी ने याचिका स्वीकार करने तर्क दिए.मा.न्यायालय ने प्रतिवादियो को तत्काल निषेधाज्ञा लागु क़र" मेरे अंतिम निर्णय तक मूर्ति आदि व्यवस्था जैसी है वैसी ही सुरक्षित रहे और पूजा,उत्सव, दर्शन जैसे हो रहे है वैसे होते रहेंगे."२६ अप्रेल १९५५ H.C.रघुवर दयाल-ओ.एच.मुथम ने अभ्यर्थना नकारी.       *सुल्तानपुर विधायक मुहम्मद नाझिम ने कुराण ग्रन्थ का हवाला देकर समझाया, "...जिस काम को करके एक मुसलमान गाजी का लकब पा सकता है,उसी काम को करके एक हिन्दू गुंडा कैसे हो सकता है?.." नहीं माने.   *टांडा निवासी नूर उल हसन अंसारी ने D.S.P.अर्जुनसिंह के समक्ष साक्ष भी दी,"मस्जिद में मुर्तिया नहीं होती,उसके स्तम्भों में भी मुर्तिया है.मस्जिद में मीनार और वजू करने जलाशय होता है वह यहाँ नहीं, स्तंभों पर लगी मुर्तिया सिध्द करती है की,यह मस्जिद मंदिर तोड़कर बनायीं है."अन्य १७ राष्ट्रिय मुसलमानो ने कोर्ट में शपथ पत्र में कहा है,"हम दिनों इमान से हलफ करते है की,बाबरी मस्जिद वाकई में राम जन्मभूमि है.जिसे शाही हुकमत में शहं शाह बाबर बादशाह हिंद ने तोड़कर बाबरी मस्जिद बनवाई थी.इस पर से हिन्दुओ ने कभी अपना कब्ज़ा नहीं हटाया.बराबर लड़ते रहे और इबादत करते रहे.बाबर शाह बक्खत से लेकर आज तक इसके लिए ७७ बलवे हुए.सं १९३४ से इसमें हम लोगोका जाना इसलिए बंद हो गया की,बलवे में ३ मुसलमान क़त्ल क़र दिए गए और मुकदमे में सभी बरी हो गए.शरियत के मुतालिक भी हम उसमे नमाज  नहीं क़र सकते क्यों की इसमें बुत है.इसलिए हम सरकार से अर्ज करते है ...
 वली मुहमद पुत्र हस्नु मु.कटरा ; अब्दुल गनी पुत्र अल्लाबक्ष मु.बरगददिया ; अब्दुल शफुर पुत्र इदन मु.उर्दू बाजार ; अब्दुल रज्जाक पुत्र वजीर मु.राजसदन ; अब्दुल सत्तार समशेर खान मु.सय्यदबाड़ा ; शकूर पुत्र इदा मु.स्वर्गद्वार ; रमजान पुत्र जुम्मन मु.कटरा ; होसला पुत्र धिराऊ मु.मातगैंड ;महमद गनी पुत्र शरफुद्दीन मु.राजा का अस्तम्बल ; अब्दुल खलील पुत्र अब्दुरस्समद मु.टेडीबाजार ; मोहमद हुसेन पुत्र बसाऊ मु.मीरापुर डेराबीबी ; मोहमदजहां पुत्र हुसेन मु.कटरा ; लतीफ़ पुत्र अब्दुल अजीज मु.कटरा ; अजीमुल्ला पुत्र रज्जन मु.छोटी देवकाली ; मोहमद उमर पुत्र वजीर मु.नौगजी ; फिरोज पुत्र बरसाती मु.चौक फ़ैजाबाद ; नसीबदास पुत्र जहान मु.सुतहटी 
."इनके नाम ग्रन्थ में है.(साभार)                                                                                                                    *गाँधी हत्या के पश्चात् हिन्दू महासभा को मिली सफलता का राजनीतिक लाभ न मिले इसलिए नेहरू-पटेल के दबाव में गोलवलकर गुरूजी ने डा.मुखर्जी के कंधे पर बन्दुक रखकर सावरकरजी का हिन्दू महासभा पक्ष और  कमजोर किया भारतीय जनसंघ बनाया.                                                                                               श्रीराम जन्मभूमि मंदिर-परिसर पर स्वामित्व का दावा निर्मोही अखाडा महंत रघुनाथदास जी के चेले धरमदास द्वारा १७ दिस.१९५९ को किया गया."वाद्पत्र के प्यारा १४मे यह रिलीफ मांगी गयी थी की प्रतिवादी सं.१से श्रीराम जन्मभूमि की व्यवस्था-चार्ज निर्मोही अखाड़े के हक़ में डिक्री की जाये."
१९६२ में सुन्नी वक्फ बोर्ड ने ,'हिन्दू महासभा-निर्मोही अखाडा द्वारा रखी मुर्तिया हटाने की याचिका लगायी.' हिन्दू महासभा अयोध्या पूर्व नगर अध्यक्ष तथा दिगंबर अखाडा महंत श्री परमहंस रामचन्द्र दास जी ने O.P.W.No.१ कोर्ट में दी साक्ष पृ.५५-६५ पर तथा अतिरिक्त O.P.W.No.२ बाबु देवकी नंदन अग्रवाल की साक्ष पृ.१४२ पर अंकित है,दोनों ने कुर्की पूर्व तथा पश्चात् १२ वर्ष विद्यमान निर्मोही आखाड़ा सर्व राहकार,सरपंच महंत श्री.भाष्कर दास महाराज का श्रीराम जन्मभूमि पर सेवाधिकार माना है। 

 दर्शनार्थियों के लिए खुले मंदिर को नेहरू के आग्रह से ताला पड़ा,मुख्यमंत्री संपूर्णानंद को पदच्युत किया.ऐसे समय गुरू गोलवलकरजी ने सावरकरजी को प्रस्ताव रखा की,'राजनीतिक क्षेत्र हम संभालेंगे,हिन्दू महासभा राजनीती छोड़ दे.'सावरकरजी नहीं माने तब हिन्दू महासभा राष्ट्रिय अध्यक्ष श्री.नित्य नारायण बैनर्जी आयोजित १९६३ विज्ञानं भवन दिल्ली का विश्व हिन्दू धर्म सम्मलेन जिसकी अध्यक्षता महामहिम डा.राधाकृष्णन ने की.प.पु.श्री.शंकराचार्य द्वारका,पूरी,बद्रीनाथ, गोरक्ष पीठाधीश्वर,पञ्च पीठाधीश्वर आदि अन्य महानुभाव उपस्थित थे.संतो को भी हाई जैक क़र जनसंघ ने सावरकर सदन के निकट वि.हिं.प. की स्थापना १९६४ श्रीकृष्ण जन्म अष्टमी को की। उधर कोर्ट ने अभ्यर्थनाओं (अपिल) पर अध्ययन क़र १९६४ में मंदिर जैसे थे आदेश दिया परन्तु ताला नहीं खुला।
*हिन्दू महासभा की मांग पर सन१९६७-७७ के मध्य पुरातत्व संशोधक समूह ने प्रा.लाल के नेतृत्व में उत्खनन किया.इस समूह में मद्रास के मुहम्मद के.के.शामिल थे.वह कहते है, "वहा प्राप्त स्तम्भोको मैंने देखा है,J.N.U. के इतिहास तद्न्योने हमारे संशोधन के एक ही पहलु पर जोर देकर दुसरो को दबा दिया,उत्खनन में प्राप्त मंदिर के अवशेष भूतल में मंदिर के स्तंभों को आधार देने रची गयी २२ से २४ फीट ईटो की पंक्तिया,२ मुख के हनुमान, विष्णु,परशुराम की मूर्तियों के साथ शिव पार्वती की मुर्तिया प्राप्त हुई है,मुसलमानोने राम मंदिर निर्माण के लिए यह वास्तु हिन्दुओ को सौप देनी चाहिए."(संदर्भ-दैनिक सामना दि .४जुन२००३ ले.श्री.सूर्यकांत शानभाग)  
द्वितीय प्रमाण :-
                                                                                                                                             
 *एक और कुर्की सन१९८२ में हुई,क्रिमिनल रिविजन चतुर्थ अतिरिक्त सत्र न्यायालय फ़ैजाबाद में श्री.धर्मदास चेला श्री.अभिराम् दास ने सं.६००/१८८२ दाखिल किया.न्याय.श्री.के.के.सिंह ने इस रिविजन को ३से१३ मई १९८३को दंड(जुरमाना)के साथ निरस्त(ख़ारिज)किया.इसी क्रम में LED 1986 Voll.4 Page No.37-३८ एक क्रिमिनल केस No.12/1982 दाखिल हुई थी.माँ.न्याया.श्री.परमेश्वर दयाल जी ने दी.४दिस.१९८५ को,जो श्री,सिया राघवशरण वि.धर्मदास आदि अन्य के नाम थी को विवेक के साथ,"यह केस श्री.सिया राघवशरण से जबरन दबाव देकर सुलहनामा धर्मदास ने बनवाया था,इसका कोई मूल्य इस केस में  नहीं ." U/S section 482 cr.pc को अनुमति दी तथा section 145 cr.pc जिसकी क्रिमिनल केस12/1982 जो सिटी मजिस्ट्रेट फ़ैजाबाद लंबित थी को निरस्त किया तब कारवाही को अनुमति मिली.                                                                       *२१ जुलाई १९८४ हिन्दू महासभा पूर्व सांसद महंत श्री.अवेद्यनाथजी की अध्यक्षता में हिन्दू महासभा घातियो ने सर्व दलीय "श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति" स्थापित की,कांग्रेस नेता दाऊ दयाल खन्ना-को महामंत्री बनाया, हिन्दू महासभाई महंत रामचंद्रदास-नृत्य गोपाल दास उपाध्यक्ष ;संघ प्रचारक दिनेश चन्द्र त्यागी-ओमकार भावे-महेश नारायण सिंह सहमंत्री बनाये गए.                                                                                        *मंदिर में लगे ताला खोलने की मांग करते हुए ७अक्तु.१९८४ शरयु किनारे जनसभा हुई,३१अक्तु.१९८५ उडुपी में ताला खोलने ८ मार्च १९८६ महाशिवरात्रि की अंतिम अवधी दी,परन्तु याचिका नहीं लगायी.मंडल से कमंडल बढ़ रही आंधी को रोकने कांग्रेस अधिवक्ता उमेशचन्द्र पाण्डे ने २५ जन.१९८६ को आवेदन दिया,२८ को नकारा तब ३१ जन.को जिला न्यायालय में हिन्दू महासभा-निर्मोही अखाडा को दिए न्याय के आधार पर ताला खोलने की मांग की.१ फरवरी १९८६ न्यायमूर्ति कुष्ण मोहन पाण्डेजी ने श्रीराम जन्म मंदिर में लगा ताला खोलने का आदेश दिया.३ फरवरी को मोहम्मद हाशिम कुरैशी-जफरयाब जिलानी(जिन्हें १९८३ तक विवाद की जानकारी नहीं थी) ने उ.न्या.में अभ्यर्थना की,निरस्त हुई. दि.१२ मई १९८६ उ.प्र.सुन्नी वक्फ बोर्ड ने याचिका लगायी.              
                                                                                             
 *राजनीतिक लाभ के लिए भा.ज.प.ने सर्व दलीय यज्ञ समिति का लाभ उठाकर पक्षीय "न्यास" स्थापन किया,८जुन १९८६ को मंदिर मुक्ति आन्दोलन को "बाबरी कलंक" आन्दोलन बनाया.समस्त सुट जुलाई १९८९ तीन न्यायमूर्ति पीठ उच्च न्यायालय लखनऊ आ गए.खंड पीठ ने वि.हिं.प.को विवाद वापस लेने का आदेश दिया.१४अगस्त १९८९ को मा,न्यायलय ने मंदिर यथास्थिति बहाल क़र पूजा-अर्चना-दर्शन की व्यवस्था की,और कारसेवको को गोलियोसे भुनने वाले मुलायम-भाजप का राजनीतिक षड्यंत्र ध्वस्त किया.२७ अक्तू.१९८९ H.C.आदेश से श्रीराम शिला अयोध्या पहुंची. १० नवं.१९८९ केन्द्रीय गृहमंत्री बूटासिंह उ.प्र.मुख्यमंत्री एन.डी.तिवारी के हाथो मंदिर जीर्णोध्दार के लिए श्रीराम जन्मस्थान पर शिलान्यास संपन्न हुवा.भाजप ने भी शिलापूजन किया.                                                                                                                                *श्रीराम जन्मभूमि स्वामी पक्षकार श्रीनिर्मोही अखाडा, आंदोलक पक्षकार हिन्दू महासभा को शामिल किये बिना सारी घटना हो रही थी जो केवल राजनीतिक स्वार्थ से प्रेरित थी.१९अक्तु.१९९० माँ.प्रधानमंत्री ने महामहिम जी से अध्यादेश निकलकर ४३ एकड़ अविवादित भूमि अधिग्रहण का प्रस्ताव रखा.जो भाजप अधिकृत न होने से स्वीकार नहीं कर सकी,२१ अक्तू.को अध्यादेश वापस हुवा.                                                   *उ.प्र.में सत्ता का सोपान हिंदुत्व की भावना में बहे "बाबरी"विरोधी श्रीराम भक्तो के राजनीतिक बलिदान से बना. रथयात्रा से जुटाए सैकड़ो करोड़ का काला-श्वेत धन N.D.A.को सत्तासीन बनाने का बनाने में प्रयोग हुवा, जिसका हिसाब नहीं.हिन्दू महासभा के वार्तापत्र में १९९१ दीपावली विशेषांक प्रकाशित कर बाबरी नहीं मंदिर होने के प्रमाण देकर भाजप का अप प्रचार रोकने का प्रयास किया था.                                        
*भाजप ने उ.प्र.में सत्ता पाते ही २:७७ भूमि विवादित कर १० अक्तू.१९९१ को विकास के नाम कब्ज़ा ली, owner श्री निर्मोही अखाड़े ने २५ अक्तू.१९९१ H.C. में याचिका लगाकर विरोध किया. मा. न्याय. ने अधिग्रहण अस्थायी कहकर उचित कहा.दि.२-३ जुलाई १९९२ पुरातत्व विभाग ने जन्मस्थान पर मंदिर होने के प्रमाण दिए,"प्राप्त अवशेषों के आधारपर ११ वी सदी में एक आकर्षक मंदिर था,उसका विध्वंस कर १६ वी सदी में मस्जिद सदृश्य वास्तु खडी की गयी.प्राप्त पूजा पात्र १३-१५ वी शताब्दी के है."तब भी भाजप बाबरी कहकर उसकी रक्षा में लगी थी.वर्षो की परंपरा के अनुसार हिन्दू महासभा उ.प्र. अध्यक्ष महंत श्री.रामदास ब्रह्मचारी जी ने गोरखपुर में प्रेस वार्ता कर मंदिर सफाई-रंग सफेदी के लिए दि.१८अक्तु.१९९२ को सैकड़ो कार्यकर्ताओ के साथ अयोध्या प्रयाण किया.हिन्दू छात्र सभा नेत्री मीनाकुमारी के नेतृत्व में युवक-युवतिया आये थे,भाजप प्रशासन ने बाबरी की रक्षा में उन्हें बंदी बनाया.दूसरी ओर श्री.सिंघल दिल्ली में पत्रकार परिषद् लेकर केंद्र को चेतावनी दे रहे थे,'जन्मभूमि की समस्या का हल निकलने के लिए २४ अक्तू.तक का अवधी दिया था वह समाप्त हो रहा है और आगे अवधी नहीं बढाई जाएगी.'धन-सत्ता अभिलाषी सत्य छिपाने में लगे थे.                                                         *हिन्दू महासभा पूर्व राष्ट्रिय अध्यक्ष-सांसद स्वर्गीय श्री.बिशनचन्द सेठ जी ने १९९२ दीपावली को बृन्दावन से "राम जन्मभूमि का संक्षिप्त इतिहास " प्रकाशित कर पृ.४ पर लिखा है,"श्रीराम जन्मभूमि ,जिसे मुसलमान और  तथा कथित हिन्दू नेता बाबरी कहने का दू:स्साहस करते है.उनसे यह प्रश्न किया जा सकता है की,जिस स्थानपर  मस्जिद का कोई प्रमाण चिन्ह न हो उसे मस्जिद की संज्ञा कैसे दी जा सकती है? साथ ही मस्जिदों में परिक्रमा मार्ग नहीं होते.परन्तु,रामजन्म भूमि में परिक्रमा मार्ग आज भी पूर्ववत सुरक्षित है.मुसलमान धर्मानुसार जिस मस्जिद में निर्धारित समय तक नमाज न पढ़ी जाये उसे मस्जिद की संज्ञा में नहीं माना जाता. फिर भी खुर्सी की मोह के कारन अनेक नेता इस प्रश्न को निरर्थक उलझा रहे है.जब की शिया समुदाय अनेको मुसलमान नेता पुनह:पुन: यह घोषणा करते है की,रामजन्म भूमि को अनेक कारणों से मस्जिद मानना इस्लाम के विपरीत है  और उसे सस्नमान हिन्दुओ को सौपकर हमें शांति से भाईचारे के साथ इस देश में रहना चाहिए."                                                                                                                                          *भाजप का बाबरी कलंक विरोधी वातावरण बनाकर हिन्दू विरोधी-राष्ट्रद्रोही संघठित करने का षड़यंत्र जारी था, ६दिस.१९९२ कारसेवा पूर्व ३०नोव्हे.को वाजपेयीजी प्रधानमंत्री जी से २० मिनट मिले,गृहमंत्री चव्हान उपस्थित थे.४दिस.को स्व.अर्जुनसिंह लखनौ आये मु.कल्याणसिंह को मिलकर वापस दिल्ली लौटकर केन्द्रीय गृह सचिव को I.S.I. एजंट कारसेवको में घुलमिल जाने की सूचना दी.दि.५ दिस.अयोध्या से लौटकर देर रात तक अडवानी,वाजपेयी,जोशी,कल्याणसिंह के बीच मंत्रणा हुई और वाजपेयी दिल्ली लौटे.star newsT.V.की रेकोर्डिंग के अनुसार वाजपेयीजी ने "मंदिर समतलीकरण"के लिए संकेत दिए थे.कलंक धोने की प्रक्रिया देखने कथित हिन्दू नेता प्रेक्षा मंच पर आसनस्थ थे प्रोत्साहन भाषण हो रहे थे,देश टी.व्ही.देखने हड़ताल पर था,भयभीत था. मुख्यमंत्री कल्याणसिंह ने कारसेवको पर गोलिया न चलाने का लिखित आदेश दिया था.(स्व.देबेन्द्रबहादुर राय) *श्रीराम जन्मभूमि स्थित तीन गुम्बद मंदिर का घेरा तोड़कर कारसेवक छिन्नी,हथोडा,कुदाल,फावड़ा,लोहे की छड लेकर आगे बढ़ते गए,कुछ मंदिर के अन्तर्भाग कुछ मानवी सीढ़ी बनाकर शीर्ष गुम्बद पहुंचे.दोपहर २:१५ को एक गुम्बद ,४:३० को दूसरा ,४:४५ को तीसरा गुम्बद गिरा और देश में हिन्दू घाती बुतशिकनो ने शौर्य दिन मनाया.मिठाईया बांटी.देशभर में राष्ट्रद्रोहीयो को उत्पात के लिए उकसाया गया.प्रधानमंत्रीजी ने आपात बैठक बुलाकर धारा३५६  के अंतर्गत उ.प्र.शासन भंग किया.निर्मोही अखाड़े ने,'जीनकी धर्म पर आस्था नहीं उन्होंने मंदिर ध्वस्त किया.'ऐसी शिकायत की,मूलवाद पत्र पेरा.४अ में अंतर्भूत है.सर्वोच्च न्यायालय ने १० दिस.९२ को दर्शन पूजन का १९५० का न्यायालयीन आदेश स्थिर रखकर यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया.७जन.१९९३ केंद्र ने सम्पूर्ण मंदिर परिसर अध्यादेश द्वारा अधिग्रहित किया.उसपर भी निर्मोही अखाड़े ने आपत्ति उठाई.                                                                              
*अखिल भारत हिन्दू महासभा की२४जुन २००० खुरशेद बाग़,कार्यालय लखनौ में हुई राष्ट्रिय कार्यसमिति ने उ.प्र.राज्यपाल महोदयजी को ज्ञापन देकर जन्मस्थान विवाद पर"फास्ट ट्रेक कोर्ट"द्वारा सुनवाई की मांग की. १० दिस.२००० की राष्ट्रिय कार्यसमिति दिल्ली,में राष्ट्रिय उपाध्यक्ष रहे,अधिवक्ता श्री. हरिशंकर जैन ने सन्सदमें विधेयक लाकर श्रीराम जन्मस्थान हिन्दुओं को सौपने का प्रस्ताव रखा.तो,६-७ जुलाई २००२ की दिल्ली,कार्यसमिति में प्रमोद पंडित जोशी ने, "सैकड़ो वर्षो की परंपरा से निर्मोही अखाड़े के स्वामित्व में रही श्रीराम जन्मभूमि अविलम्ब निर्मोही अखाड़े को मंदिर पुनर्निर्माण के लिए सौपने का प्रस्ताव" रखा.महामंत्री श्री.सतीश मदानजी ने अनुमोदन दिया और कार्यसमिति ने सम्मत किया.                                                      *२३ फरवरी २००४ फास्ट ट्रैक कोर्ट की सुनवाई आरम्भ हुई,हिन्दू महासभा के अधिवक्ता श्री.वेद प्रकाश शर्मा,निष्कासित जैन T.V.प्रतिक्रिया देने लगे तो भाजपने छः माह कार्यकाल पूर्व सरकार भंग कर चुनाव लाद दिए.रामनाम पर धन-सत्ता के लिए गुमराह करनेवालों को प्रभु ने क्षमा नहीं की,के.के.के.नायर और डी.बी.रायजी को प्रयोग में लाकर फेंक देनेवाले गद्दार सत्ताच्युत हुए. अडवानी ने पाकिस्तान जाकर मस्जिद ढहाने की क्षमा मांगी और जन्मस्थान पर आत्मघाती हमला हुवा.              
*हिं.म.स.राष्ट्रिय कार्यकारिणी ५-६ जून २००४ उपाध्यक्ष स्व.श्री.बैद्य बटुक प्रसाद त्रिपाठी (हिन्दुराष्ट्र सेना-पूर्व सेनापति) ने ,"श्रीराम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण के लिए श्री निर्मोही अखाडा और हिन्दू महासभा द्वारा १९५०से जो वाद न्यायालय में चल रहा है अनुसार,अन्य किसी भी संस्था/ट्रस्ट को इस अभियान में हस्तक्षेप करने से रोका जाये.बारबार नित्य नए ट्रस्ट बनाकर जन्मभूमि हड़पने का षड़यंत्र भिन्न संस्थाओ,नेता,आचार्यो द्वारा किए जा रहे है उनपर केंद्र सरकार,मा.न्यायालय रोक लगाये."प्रस्ताव रखा और राष्ट्रिय अध्यक्ष प्रा.श्री.दिनेशचन्द्र त्यागी जी ने कार्यसमिति के अनुमोदन से समर्थन किया.                                   
*दि.१७जुन२००५ को महामहिम जी को हिन्दू महासभा ने सहस्त्रो हस्ताक्षरों के साथ मंदिर ध्वन्सियो को बंदी बनाने की मांग की है जो अभी लंबित है.                                                                                                             *जमात इ उलेमा इ हिंद देवबंद अधिवेशन में केन्द्रीय गृहमंत्री ने ६दिस.९२ की घटना को,"धार्मिक उन्माद"की संज्ञा दी,जो मंदिर विध्वंस की जाँच नहीं कर रहा उस लिबरहान आयोग जिसका कोई औचित्य नहीं फिर भी 'केवल उलेमाओ की मांग पर' करोडो का हिन्दू धन व्यय कर बना रिपोर्ट तत्काल प्रधानमंत्रीजी को प्रस्तुत किया गया,हिन्दू महासभा ने दिल्ली में विरोध प्रदर्शन किया ३९ कार्यकर्त्ता धरे गए.दुसरी ओर जन्मभूमि विवाद से जुडी फ़ाइल गायब होने की वार्ता आयीं.हिन्दू महासभा की ओर से प्रमोद पंडित जोशी ने १४जुन२००९ को की मांग के बाद १० जुलाई को सरकार ओर से ए.के.सिंह द्वारा हजरत गंज लखनोऊ थाने में F.I.R.लिखी गयी है।                                                                                                                         *अखिल हिन्दू सभा वार्ता (पाक्षिक)दि.१५-३१ जुलाई २००९ से साभार                                                                     उ.प्र.मुख्यमंत्री ने,"अयोध्या प्रकरण की पत्रावलियां ग़ुम होने की जाँच C.B.I.से कराने की संस्तुति की.आशंका प्रकट की है की,यह पत्रावलियां १९९१-२००० के बीच भाजप शासन काल में ग़ुम हुई होगी,जो गंभीर बात है. H.C. ने U.P.सरकार से १९४९ के ७ अभिलेख मांगे थे,गृह विभाग का अनुमान है की,इन अभिलेखों से सम्बंधित २३ पत्रावलियां तत्कालीन O.S.D.सुभाष भान साध के पास थी.साध की वर्ष २००० में लिबरहान साक्ष देने जाते समय ट्रेन दुर्घटना में मृत्यु हो गयी थी."
  **श्रीराम जन्मभूमि विवाद की सुनवाई कर रही उ.न्या.खंडपीठ लखनोऊ की विशेष पीठ के न्यायमूर्ति श्री.डी.वी.शर्माजी ने १९४९ के ७ अभिलेख प्रस्तुत कराने के आदेश सरकार के अपर महाधिवक्ता को दिया और अगली सुनवाई १४ जुलाई २००९ को नियत की. अभिलेखों के न मिलने पर खोज के लिए मुख्य सचिव ने सामान्य प्रशासन के प्रमुख सचिव की अध्यक्षता में समिति का गठन किया.समिति ने पूर्व तिथि ४ जुलाई को पीठ के समक्ष शपथ पत्र जो गृह सचिव जाविद अहमद की आख्या पर आधारित है,प्रस्तुत किया गया.कहा है,"रेकोर्ड में २३ पत्रावलियां उपलब्ध नहीं है,वर्ष १९९२ में साम्प्रदायिकता नियंत्रण प्रकोष्ठ की स्थापना से पूर्व तत्कालीन विशेष अधिकारी साध अनुभाग से समीक्षाधिकारी थे.वे मंदिर-मस्जिद सम्बंधित कार्य देखते थे.प्रकोष्ठ में विशेष कार्याधिकारी पद के सृजन के बाद साध ने प्रकोष्ठ का कार्यभार ग्रहण किया था और अपने साथ सम्बंधित  पत्रावली रजिस्टर भी ले गए थे.प्रकोष्ठ की पत्रावलियों व् रजिस्टर आदि के अवलोकन से यह स्पष्ट होता है कि, यह पत्रावलियां प्रकोष्ठ में उपलब्ध है जिसकी सूचि सम्प्रदायिक्तानियंत्रण प्रकोष्ठ द्वारा बनायीं गयी है.परन्तु,गृह- पुलिस अनुभाग १२ में रेकोर्ड कि जाँच कोई भी पत्रावली प्रकोष्ठ को स्थानांतरित हुई प्रतीत नहीं होता.गृह सचिव महेश गुप्ता इस बात का उत्तर नहीं दे सके कि सम्बंधित पत्रावलियां किस विभाग से गायब हुई और इसके लिए कौन उत्तरदायी है.यह विवेचना का विषय है.**                                                                   *२६ जुलाई २००९ को मा.न्यायालय ने १९४९ हिन्दू महासभा आन्दोलन से जुडी फाइल्स न मिलने कि स्थिति में पक्षकार निर्मोही अखाडा-हिन्दू महासभा अन्य का पक्ष सुनकर निर्णय लंबित रखा था,जो लिबरहान के रिपोर्ट में दब गया.श्रीराम जन्मभूमि विवाद पर न्यायालयीन निर्णय प्रस्तुत करने का राजनीतिक वातावरण और विरोध का वातावरण निर्माण हुवा.देशभर में उत्साह-भय-दंगे की स्थिति उत्पन्न हुई.दिन-महिना आगे बढ़ती निर्णय की उत्सुकता के कारन संवेदनशील स्थिति का नियंत्रण करने केंद्र-राज्य सरकार को तयारी करनी पड़ी. *अंतत ३०सप्त.२०१० को शर्मा,अग्रवाल,खान के तीन सदस्य पीठ ने २.७७ विवादित भूमि का १/३ निर्णय घोषित कर निर्मोही-वक्फ-रामसखा के बीच बटवारा किया.निर्णय घोषित होते ही हिन्दू महासभा के अधिवक्ता बनकर गुमराह कर रहे श्री जैन अन्दर ही थे और भाजप के अधिवक्ता प्रेस करने हिन्दू महासभाई बनकर देश की आँख में धुल झोक रहे थे.भाजप-जमात ए उलेमा के प्रतिनिधि निर्णय का स्वागत कर रहे थे. मंदिर-मस्जिद समझोते के प्रयास में लगे भाजप को जमात इ उलेमा इ हिंद ने समर्थनपत्र क्यों दिया और कांग्रेस का दामन क्यों छोड़ ? आश्चर्य यह है की,1961-62 में जहाँ हिन्दू महासभा ने मुर्तिया रखने का आरोप सुन्नी वक्फ ने लगाया वह स्थान रामसखा बने श्री.देवकी नंदन अग्रवाल को मिला ? १९८९ न्यायलायने निष्कृत किये मुस्लिम पक्ष को भी १/३ भू खंड? देवकी नंदन अग्रवालजी १९६२ केस में निर्मोही अखाड़े के पक्ष में दी साक्ष से भी बेईमान हुए.मा.श्री.राजेंद्रसिंह गो विशारद जी को भाजप ने साथी बनाकर,हिन्दू महासभाई बनकर भूमि हडपने-कब्जाने-बटवारे का राजनितिक षड्यंत्र किया जो उजागर था.इस निर्णय के विरुध्द भाजप समर्थक सर्वोच्च न्यायालय नहीं गए. दि.२१-१२-२०१० हिन्दू महासभा ने श्री.देवकी नंदन अग्रवाल और अन्य के विरुध्द सर्वोच्च न्यायालय में याचिका प्रस्तुत की. मा.सर्वोच्च न्यायालय ने ९ मई २०११ को १/३ दि.३०सप्त.१०  का निर्णय रोक कर दर्शन-पूजन की पूर्ववत आज्ञा देकर हिन्दू महासभा को मिली निस्वार्थ यशस्वी लडाई का १९५० से साथ दिया.यहाँ भी भाजप अधिवक्ता निर्मोही अखाड़े से निष्कासित श्री धर्मदास जी के साथ दिखाई दिए थे।    *दि.९ मई निर्णय पश्चात् जन्मभूमि स्वामित्व का विवाद शेष है.अब १९४९ की गायब फाइल्स की आवश्यकता है. इसलिए हिन्दू महासभाई प्रमोद पंडित जोशी ने मा.मुख्यमंत्री को दि.१०जुन२०११ को सी.बी.आई.जाँच के लिए निवेदन दिया. श्री पञ्च रामानंदीय निर्मोही अखाड़े के सरपंच कार्यवाहक सर्वराह्कार महंत श्री.भाष्कर दास महाराज जी का २०जुन २०११ को श्री हनुमान गढ़ी,नाका,अयोध्या (फ़ैजाबाद) दर्शन कर उनका आशीर्वाद और समर्थन माँगा और उन्होंने दिया था।
                                                                            23 Dic.2015 To,S.C.      
*श्रीराम भक्त सत्य का साथ दे, राजनीती का अखाडा नहीं है श्री राम जन्मभूमि;निर्मोही अखाड़े की है.  *इस्लाम का मै ज्ञाता नहीं हूँ,परन्तु इस्लाम स्थापना की सोशिअल इंजिनीअरिंग (कबीलों का एकत्रीकरण) को जानने के पश्चात् और सौ योजन ऊँचे मक्केश्वर शिवलिंग-३५५ कबाइलियो की मूर्तियों का एकत्रित काब्बा अर्थात एकेश्वर और उसकी परिक्रमा करने वाले क्या मूर्ति भंजन का आदेश दे सकते है ?

धर्मग्रन्थ के पारा-१ सुरे बकर आयत १ में "अलिफ,लाम,मीम"को परमात्मा से अधिक दयालु कहा है,जिसे हरुफे मुक्तआत कहते है। सिपारे या सूरत के आरम्भ में इनका उल्लेख है। अरबी रचना के अनुसार लाम का वाबनता है,अलिफ़ का अ ,मीम "अकार+उकार+मकार"=ॐ  का नादब्रह्म एकेश्वर का प्रतिक है.इस्लामिस्ट विद्वान सत्य का साथ दे. llहरी ॐ ll
किसी दाता को किसी भी प्रकार की सहायता करने की इच्छा हो तो SMS नाम पते समेत करे !

27 अगस्त 2012

श्री गंगाजी पर बांध,हिन्दू महासभा के साथ हुए ब्रिटिश समझौते का उल्लंघन !

        श्री गंगाजी पर बांध,हिन्दू महासभा के साथ हुए ब्रिटिश समझौते का उल्लंघन !
       
हिन्दुओ के लिए चातुर्मास एक पर्व होता है,मल मास के कारन भी पुण्यप्रद नदियों का स्नान एक परंपरा है. कुम्भ पर्व-मकर संक्रांति को भी स्नान की परंपरा रही है. मोक्षदायिनी गंगाजी का आविर्भाव हिन्दू दैवतो से जुड़ा है.गंगोत्री-गोमुख से गंगाजी का प्रवाह अवरूध्द हुवा है. गंगाजी का तीर्थ रूप जल विदेशो में बेचा जा रहा है.प्राकृतिक जल प्रवाह को रोका गया है.ब्रिटिश सरकार द्वारा हिन्दू महासभा के साथ किया समझौता भ्रष्टाचारीयोने नकारा.श्री शंकराचार्य श्री स्वरूपानंदजी, अविमुक्तेश्वरानंदजी महाराज के साथ सहस्त्रो साधू-संन्यासीयो ने दिल्ली के जंतर मंतर पर १८ जून १२ को सरकार के विरोध में धरना प्रदर्शन किया.स्वामी निगमानंद जैसे अनेक संत-महंत श्रीगंगाजी के लिए प्राण दे चुके है.उपवास किये है परन्तु केंद्र सरकार हिन्दुओ की मान्गोंको अनदेखा कर रही है.                                            
उत्तर-पूर्वोत्तर राज्योंकी दो प्रमुख नदिया गंगा और ब्रह्मपुत्र ! टिहरी बाँध ने और चीन ने हमारी आशाओ को फलित होने से पूर्व ही रौंद दिया है.ब्रह्मपुत्र का पानी रोकना और गंगाजी का प्रवाह हिमालय से मोड़ने का षड़यंत्र हो रहा है.
* अखिल भारत हिन्दू महासभा;गंगा महासभा; B.H.U. के संस्थापक महामना पं.मदन मोहन मालवीय जी के साथ १८-१९ दिसंबर १९१६ को ब्रिटिश सरकार का समझोता हुवा था.
    उपस्थित महानुभाव-महाराजा ग्वालियर,जयपुर,बीकानेर,पटियाला,अलवर,बनारस,दरभंगा,महाराजा कासिम बाजार मनिन्द्र नंदी प्रथम राष्ट्रिय अध्यक्ष अ.भा.हिन्दू महासभा
              उपस्थित ब्रिटिश अधिकारी-रोज,सचिव भारत सरकार,लोक निर्माण विभाग २)बार्लो मुख्य अभियंता संयुक्त उत्तर प्रान्त ३)स्टैंडले,अधीक्षण अभियंता,सिंचाई ४)कूपर कार्यकारी अभियंता,सिंचाई ५)आर.बर्न,मुख्य सचिव संयुक्त प्रान्त
अखिल भारत हिन्दू महासभा संस्थापक पं.मालवीय जी,राष्ट्रिय महामंत्री लाला सुखबीर सिंह आदि अन्य

* सन १९०९ में गंगा जी पर बाँध का प्रस्ताव हुवा था.परंतु ,१९१४ समझोते में हिन्दू तिर्थालूओंको स्नानार्थ निरंतर अविच्छिन्न पर्याप्त पानी मिलेगा.ऐसा १९१६ अनुच्छेद ३२- i में वचन दिया गया  था, "गंगा की अविरल अविच्छिन्न धारा कभी भी रोकी नहीं जाएगी l" ऐसा लिखा है।                   *२६ सप्तम्बर १९१७ को शासनादेश २७२८/ lll- ४९५ जारी हुवा.लाला सुखबीर सिंह महामंत्री अ.भा. हिन्दू महासभा को भेजे पत्र,उसके अनुच्छेद ३२ भाग ii में कहा गया है कि,
" इसके विपरीत कोई भी कदम हिन्दू समाज से पूर्व परामर्श के बिना नहीं उठाया जायेगा."

            आज स्थिति यह है कि,श्री गंगा जी की पवित्र धारा अवरूध्द-अशुध्द हुई है.मायनिंग का अवैध कारोबार राजाश्रयसे बेरोकटोक जारी है,शहरीकरण का निकास गंगा जी में छोड़ा जा रहा है.कारखानों का अशुध्द निकास गंगाजी में है.शव दहन और अस्थिया-राख के गंगार्पण को हिन्दू विरोधी निशाना बना रहे है.अनेक धर्माचार्य श्री गंगा शुध्दी के लिए व्रत-तप-उपवास कर रहे है परन्तु भीषण समस्या को सुनने केंद्र और राज्य सरकार को समय नहीं है. विदेशी साम्राज्यवाद के सत्ताधारी गुलामो को यह समझना चाहिए की, ब्रिटिश सरकार को हिन्दुओ की मांग को मानना पड़ा था.यह सरकार हिन्दू विरोधी तो है ही, अंततः जाना पड़ेगा हिन्दू संसद आएगी.                                                                                                                                                   राष्ट्रिय विकल्प :- देश में बारह मास प्रवाहित नदिया वर्षा काल में बाढ़ से उग्ररूप धारण करती है. तो,कही सुखा पड जाता है। वर्षा काल में ही बहने वाली नदिया ग्रीष्म में सुखी होती है.भौगोलिक स्थिति के कारण जल असमतोल निर्माण हुवा है.सन १९६५-७६ के बिच एक प्रस्ताव आया गंगा-कावेरी प्रकल्प ! उसमे से अधिक चर्चा कॅप्टन दस्तूर की ' गारलैंड केनोल स्कीम' की तथा दूसरी डॉ.के.एल.राव की 'नैशनल वाटर ग्रिड स्कीम' थी जिसे अधिक मान्यता मिली.गंगा से कावेरी तक २६४० कि.मी.जल प्रवाह से १६८० क्यूमेक्स जल १५० दिन तक बहेगा.यह अनुमान था।
       इस कार्य में समस्या जल को उठाने की है,इस योजना में १४०० क्यूमेक्स जल ५४९ मीटर ऊँचा उठाना पड़ेगा.जिसके लिए ५-७ मेट्रिक किलो वेट बिजली की आवश्यकता है.नर्मदा का जल गुजरात-राजस्थान में फ़ैलाने २७५ मीटर तक उठाना पड़ेगा.गंगा-ब्रह्मपुत्र नदी प्रवाह एक करने के लिए १८००-३००० क्यूमेक्स जल १२-१५ मीटर तक उठाना पड़ेगा.विद्युत् भार नियमन के कारण यह असंभवसा है.परन्तु,राजस्थान के थार में अब श्री गंगाजी बहेगी ऐसा संकेत है।

       महाराष्ट्र के एक अभियंता श्री.एम्.डी.पोल जी ने १९७६ में 'इरिगेशन पोजेक्ट फॉर इंडिया' दिया था। जिसमे विद्युत् प्रयोग के बदले गुरुत्वकर्षण से गंगा-ब्रह्मपुत्र का जल कन्याकुमारी तक जा सकेगा.उसमे भी सुधार कर उन्होंने ' नैशनल इंटिग्रेटेड वाटर रिसोर्सेस डेवलोपमेंट प्लान फॉर इंडिया' बनाया था।
       हिमालय का जल स्त्रोत रोककर विशिष्ट ऊँचाई पर संचयन कर दार्जिलिंग में लाकर दक्षिण हिन्दुस्थान में घुमाव किया जाने का प्रस्ताव है.जिसमे दार्जिलिंग से रांची ५७५-६५० कि.मी. Underground Pressure Tunnels से २०० से २५० मीटर निचे से गुरुत्वाकर्षण से होकर बहेगा.
          प्राचीन काल में सगर वंशीय भगीरथ ने गंगा भूमि पर प्रवाहित की.अलकनंदा-मन्दाकिनी समेत तिन स्त्रोत एक साथ जोड़कर उत्कृष्ट अभियंता का अविष्कार किया था।'गंगा सागर' यह उनकी ही देन है.उत्तर से दक्षिण की ओर प्रवाह से हरित क्रान्ति तो होगी ही ५७,२२७ मैगावेट की विद्युत् निर्मिती अपेक्षित है.मत्स्योद्योग में बढौतरी होगी तथा उत्तर हिन्दुस्थान में ६७% बाढ़ में कमी आएगी.कृष्णा खोरे प्रकल्प या कोंकण रेल ने ऐसे प्रकल्प को प्रोत्साहित किया है.
          हिमालय से मिलनेवाले जल पर चीन की भी वक्र दृष्टी है,ब्रह्मपुत्र (त्सांगपो) नदी चीन से बहकर अरुणाचल प्रदेश से ईशान्य से हिन्दुस्थान में बहती है उसके प्रवाहो में अणु ध्वम्म कर उसे रोकने का षड्यंत्र हो रहा है और इस ही कारन से अरुणाचल को अपना बनाने का षड्यंत्र उजागर हुवा है.हिमालयीन स्त्रोत अथवा प्रवाह रोकने का भी प्रयास हो सकता है इसलिए उत्तर से दक्षिण गंगा कावेरी प्रवाह को जल्द से जल्द पूरा करने से लागत में भी कमी आएगी.परन्तु सरकार बांध बनाकर कम खर्च में लागत में बचत या भ्रष्टाचार कर रही है यह जाँच का विषय बनेगा।फिर भी यह हिन्दुओ की भावना को ठेंस पंहुचा रही है।
           टिहरी बाँध के निर्माण में स्थानीय लोगो को हानि पहुंचाकर जल स्त्रोत की अनियमितता हुई है.हिन्दू धार्मिक भावना को ठेस पहुंचाकर गंगा को सुखा-खनन आदि से गटर बहाकर प्रदूषित किया गया है.धर्माचार्योंकी अभ्यर्थना को सरकार अनुलक्षित कर उनके प्राण हर रही है.कुम्भ पर्व में उत्तराखंड सरकार ने महंतोंके स्नान बहिष्कार के आवाहन को रोकने का षड्यंत्र किया था फिर भी  अंतिम स्नान पर कुछ आखाड़ो के संत-महंतों ने बहिष्कार किया और मुख्यमंत्री निशंक को भी सत्ताच्युत होना पड़ा.१९९७ से अभियंता श्री.वीरभद्र मिश्र-वाराणसी गंगा जी को स्वच्छ निर्मल करने के प्रयास में लगे है प्रस्ताव पारित है परन्तु राजनीती आड़े आ रही है . ब्रिटिश हिन्दुस्थान में किये समझौते खंडित हिन्दुस्थान में रद्दी खाते में फेंक दिए है.इसलिए सरकार का विरोध !                                    ( सन्दर्भ-गंगा महासभा जमशेदपुर,झारखण्ड पुस्तिका तथा दिनांक १० अक्तूबर २००० दैनिक सामना में प्रकाशित श्री.सूर्यकांत पलसकरजी के लेख से अनुवादित )

26 जुलाई 2012

आसाम खंडित हिन्दुस्थान में,हिन्दू महासभा की दूरदृष्टि !आज भी अनुकरणीय

       पूर्वोत्तर हिन्दुस्थान के आसाम में ख्रिश्चन मिशनरियो द्वारा हो रहे धर्मान्तरण पर अखिल भारत हिन्दू महासभा के राष्ट्रिय अध्यक्ष श्री.वि.दा.सावरकरजी ने चेतावनी पत्र लिखा था।उसी प्रकार 13 जुलाई 1941 को विस्तृत पत्र लिखकर आसाम के हिन्दुओ को पाकिस्तान के षड्यंत्र के अनुसार मुसलमानों की चल रही गतिविधी से अवगत कराकर सावधान रहने की सूचना दी थी।उस पत्र का सारांश,
        " हिन्दुस्थान तथा आसाम के हिन्दुओ का ध्यान मै एक अरिष्ट की ओर आकृष्ट करना चाहता हूँ।आसाम को मुस्लिम बहुल करके हिन्दुओ का जीना दुभर करने की योजना के लिए बंगाल और अन्य प्रान्तोंसे बुलाये मुसलमानों की वसाहत बढाकर क्षेत्र को मुस्लिम बहुल करने के लिए आसाम विधानसभा ने 'भू विकास निर्बंध' पारित किया है। अन्य प्रान्तों से आसाम में हो रही घुसपैठ को रोकने के लिए हिन्दू महासभा ने विरोध करने के पश्चात् भी कांग्रेस मंत्री मंडल ने आसाम के इस्लामीकरण को रोकने को नकारा है।हिन्दू मतदाताओ ने चुनकर भेजे मंत्रीओ ने नवागत मुसलमानों के साथ हिन्दुओ को बराबरी से अधिकार देने से भी मना किया है।हिन्दुओ पर संगठित आक्रमण होते समय उनके जीवित और वित्त की रक्षा के लिए कोई प्रबंध नहीं किया है। नामधारी मिश्र मंत्री मंडल बनाकर उसका नेतृत्व मुस्लिम लीग को सौपा है।इस प्रकार आसाम में मुस्लिम राज्य का मुस्लिम लीग का स्वप्न प्रत्यक्ष में उतारने को इस मंत्री मंडल ने सहयोग प्रदान किया है।
        आसाम के हिन्दू अखिल हिन्दुस्थान के समर्थन से संगठित हुए और मिलकर भू विकास योजना का विरोध किया तो यह संकट टल सकता है।अभी समय टला नहीं।"
        हिन्दुओ के आसाम को मुस्लिम न होने के लिए निम्न 3 बाते तत्काल होनी चाहिए।
      1)आसाम के हिन्दुओ को कांग्रेस की दास्यता से तत्काल मुक्त होना चाहिए।आसाम के नेताओ को यह ध्यान में रखना चाहिए की मुस्लिम बहुल बने आसाम का भस्मासुर कभी उनके मस्तक पर भी हाथ रख सकता है।हिन्दुओ को भावी अल्प संख्यकत्व के कारन आनेवाले संकट से रक्षा करनी है तो,तटस्थ हिन्दूओ को अभी इसी समय कांग्रेस के सिध्दान्तिक राष्ट्रीयत्व के शाप से मुक्त होना चाहिए।
       2)आसाम के हिन्दू ,महासभा के ध्वज के तले संगठित होना अत्यावश्यक है।क्यों की,भविष्यत् आसाम के गंभीर संकट को भापकर उसका विरोध हिन्दू महासभा ने आरम्भ कर अखिल हिन्दुस्थान का समर्थन प्राप्त करवाया है।आसाम में आज भी हिन्दू बहु संख्या में है इसलिए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मतदान नहीं कर हिन्दू हितदर्शी प्रत्याशी को ही मतदान करेंगे ऐसी प्रतिज्ञा करने से आसाम में प्रत्यक्ष हिन्दू मंत्री मंडल स्थापित होगा और पहाड़ी क्षेत्र में रहनेवाली हिन्दू जनजाति को भी निर्मनुष्य क्षेत्र में बसाकर प्रदेशव्याप्त करने में सहाय्यक बनेंगे।सरकारी भूमी आसाम की हिन्दू जाती-जनजाति के लिए ही आरक्षित रहेगी।
      3)आसाम हिन्दू सभा का सबल संगठन बनाकर सक्रीय हिन्दू नेताओ ने ऐसी योजना बनानी है की,आसाम और आसपास की पहाड़ी हिन्दू निवासियों तथा श्रमिक-किसान और बुध्दिजीवियों का आकर्षण बढे।आसाम का जो क्षेत्र विकास-वसाहत के नाम मुक्त रखा है वहा पैठ बनाकर स्थानीय निवासी बनने उन्हें मोह उत्पन्न हो ऐसी कार्यवाही करनी चाहिए।"
       राष्ट्रिय अध्यक्ष सावरकर जी के इस पत्र के पश्चात् आसाम हिन्दू सभा नेता तथा केन्द्रीय विधि समिति सदस्य अनंग दाम ने एक पत्रक द्वारा 1941 की जन गणना के अंकन प्रकट किये।" जन गणना के अनुसार आसाम में 1931 की हिन्दू जनसंख्या 52,04650 और मुस्लिम जनसँख्या 27,80514 थी वही 1941 में हिन्दू 45,40497 और मुसलमान बढ़कर 34,74141 हुए है। दूसरी ओर वन निवासी जन जातियों की संख्या 9,12390 से बढ़कर 18,32196 हुई। इसमें गड़बड़ी की आशंका के कारन हिन्दू सभा आसाम ने केंद्र और राज्य सरकार को पत्र लिखकर आसाम में फिर से जन गणना करने की मांग की। (संदर्भ 22 जुलाई 1941 अमृत बझार पत्रिका  कलामचा )
       द्वितीय विश्व महायुध्द के कारण युध्द सहयोग के लिए ब्रिटिश व्होईसराय ने 21जुलाई को अपने कार्यकारी मंडल का विस्तार करते हुए राष्ट्रिय रक्षा मंडल की घोषणा की।सावरकरजी ने हिन्दुओ के सैनिकी करण की धर्मवीर डॉक्टर मुंजे जी की प्रत्यक्ष कृति को साकार करने का यह सुअवसर समझा। 19नवंबर 1941 को कोलकाता के स्कॉटिश चर्च मिशन स्कुल में सैनिकी शिक्षा पर भाषण देकर आसाम का दौरा किया। अमिनगाव उतरकर नाव से पंडू गए।रायबहादुर दुर्गेश्वर शर्माजी ने उनका स्वागत कर पुष्प सज्जित मोटर से शोभायात्रा निकली।सत्तरेक मोटरों के साथ यही यात्रा 17 कि.मी. दूर गौहाटी गयी वहा श्री कामाख्या देवी के मंदिर में दर्शन और प्रबंधन से सन्मान पाकर आसाम हिन्दू महासभा अधिवेशन स्थल सावरकरजी पहुंचे।
        आसाम विधानसभा मंत्रिमंडल गोपीनाथ बारडोलाय के नेतृत्व में था।परन्तु,कांग्रेस के तुष्टिकरण निति के लिए मंत्री पद त्यागने के पश्चात् सादुल्ला खान के नेतृत्व में मुस्लिम लीगी मंत्री मंडल स्थापित हुवा और बहुसंख्यक हिन्दुओ से वन्य जन जातियों को विघटित कर अहोम,मिकी,खासी,छहरा आदी मतदार संघ बनाने का षड्यंत्र हो रहा था।निर्मनुष्य भूमि उपजाऊ करने की योजना को बंगाल से आ रहे मुसलमानों के लिए दिए जाने की शिकायत लेकर हिन्दू सावरकरजी के पास आये थे।जहा 5-25 मुस्लमान नहीं थे वहा तिन-चारसौ मुसलमान बसाये गए थे। इस अधिवेशन में सावरकरजी ने प्रदेश हिन्दू महासभा के मंच से धर्मान्तरितो का शुध्दिकरण,अछुतता निवारण,चुनाव और सैनिकीकरण का चार सूत्री कार्यक्रम दिया।
      गौहाटी से दिब्रुगढ प्रवास में 23 नवम्बर को सावरकरजी तिनसुकिया उतरे,यहा चाय बागान मालिको ने उनका सन्मान कर उपहार-जलपान कराया।मोटर से दिब्रुगढ पहुंचने पर 8 हाथी,घुड़सवार,वाद्यवृंद के साथ सशस्त्र सैनिको के बिच शोभायात्रा निकाली गयी।दोपहर 3 बजे जनसभा को संबोधित किया और दुसरे दिन शिवसागर पहुंचकर जनसभा संबोधित की।रंगपुर का शिवालय देखकर जोरहट में शोभायात्रा के पश्चात् जनसभा संबोधित करके परियानी से गौहाटी के लिए प्रस्थान किया।यहाँ बंगाली महासभा का सन्मान लेकर शिलोंग गए।स्वागत-शोभायात्रा के पश्चात् स्नान भोजन कर आसाम के शिक्षा मंत्री रोहिणीकुमार चौधरी आयोजित सन्मान अल्पभोज में उपस्थित रहे,यहाँ मुख्यमंत्री सादुल्ला खान अन्य मंत्री तथा यूरोपियन मण्डली उपस्थित थी।यहाँ निर्मनुष्य भूमि को उपजाऊ बनाने के बजाय मुसलमानों को बसाये जाने पर सावरकरजी ने चिंता व्यक्त की और नेहरू के इस विषय के अज्ञान जनक उत्तर पर तीखा प्रतिउत्तर दिया। संध्या में विशाल प्रांगण में 14-15 सहस्त्र हिन्दुओ की जनसभा को संबोधित किया।सव्वा घण्टे तक सावरकरजी ने हिन्दू जनता को कांग्रेस के मुस्लिम लीगी व्यवहार और षड्यंत्र से सावधान किया।' हिन्दू हित का रक्षण करनेवाली और हिन्दुराष्ट्र के स्वतंत्र,श्रेष्ठ तथा बलिष्ठ भविष्य के लिए लढ़नेवाली हिन्दू महासभा ही एकमात्र राजनीतिक संस्था है ! हिंदुत्व का अभिमान रखनेवाले हिन्दू कुल में जन्मे प्रत्येक हिन्दू स्त्री-पुरुष को हिन्दू महासभा का सदस्य बनना चाहिए।' शिलोंग में नव चैतन्य भर गया था। 26 नवम्बर को खासी वन जनजाती नेता से 1 घण्टे तक वार्ता की तत्पश्चात 3 मंत्रियो से गुप्तवार्ता, गुरूद्वारे में मत्था टेकाकर,हिन्दू मिशन संस्था में भाषण कर सावरकरजी वापसी के लिए निकले।
         1943 अप्रेल में बंगाल प्रान्त के प्रधान फझलुल हक्क को त्यागपत्र देना पड़ा उसके स्थान सुर्हावर्दी का शासन स्थापित हुवा।बंगाल में भयंकर अकाल का कारण बनाकर पूर्व बंगाल के बहुसंख्य मुसलमान योजना के अनुसार आसाम में स्थलांतर की आड़ लेकर पहुंचे।आसाम के मुसलमान मंत्रियो ने उन्हें निवासी भूमि प्रदान कर मुस्लिम जनसँख्या बढ़ाने का अवसर पाया। उसपर सावरकरजी ने पत्रक निकालकर आसाम के हिन्दू नेताओ को,' अकालग्रस्त शरणार्थी बनकर हो रही घुसपैठ को अनदेखा न करे,उन्हें रोकने का प्रबंध करे। अन्यथा वायव्य की तरह ईशान्य सीमा भी शत्रु के हाथ में होगी।' ऐसा आवाहन किया। (सन्दर्भ-अंग्रेजी साप्ताहिक मराठा-पुणे 1 अक्तूबर 1943)    
      अखिल भारत हिन्दू महासभा का तत्कालीन संदेश 2012 जुलाई में आसाम में उपजी हिंसा के पश्चात् भी अनदेखा किया गया तो बांगला बनने में देरी नहीं होगी।क्यों की,आसाम में कांग्रेस के साथ मुस्लिम लीग समकक्ष बांगलादेशी घुसपैठियों को आश्रय देकर मतदाता पहचान पत्र देनेवाला राजनितिक दल गठबंधन में है। अन्य प्रदेशो में भी घुसपैठ है और सरकारे उन्हें मतदाता बना चुकी है।परन्तु,आसाम सीमावर्ती क्षेत्र होने के कारण धर्मान्तरण हो या घुसपैठ, ईशान्य हिन्दुस्थान अशांत है।असामान्य चिंता का विषय है।
        सीमावर्ती तथा अन्य राज्यों के हिन्दू आनेवाले लोकसभा चुनाव के लिए " सर्व दलीय हिन्दू संसद " के लिए अपना प्रत्याशी चुनकर सार्वजनिक घोषणा करे। हिन्दू महासभा हिन्दुराष्ट्र के लिए समान नागरिकता लागु करने के लिए प्रतिबध्द है। वन्दे मातरम!

17 जून 2012

कश्यपनील स्वर्गभूमि-कश्मीर के धर्मांतरण की कहानी

कश्यप निर्मित सम्राट नील संवर्धित "कश-नील "सन ५९९ तक भिन्न हिन्दू राजघरानो के नेतृत्व मे रहा .आगे कर्कोटक वंश के प्रतापदित्याने संभाला.कर्कोटक वंश पश्चात् ८५५ अवंती वर्मा ने राजपाट सम्भाला. प्रानान्तिक रोग के बाद त्रिपुरेश पहाड़ी के ज्येष्ठेश्वर मंदिर मे अंतिम समय बिताया.९५८ क्षेम गुप्त पश्चात् व्यभिचारी रानी दिद्दा १००३ तक रही पश्चात् भांजा संग्राम राज ने तुर्क गझनी का महमूद से लोहा लेकर वापस भेजा.परन्तु बलात्कारित वंश पीछे छुटा,जिन्हें हर्ष के कार्यकाल मे सेना मे १% लेकर इस्लाम की घुसपैठ आरम्भ हुई.११०० मे उसकी मृत्यु पश्चात ११५० तक जयसिंह के कार्यकाल मे घुसपैठ बढ़ी,राजाश्रय मिला.१२५१ सहदेव ने इस्लामिस्टो को प्रशासन मे सहभागी किया,तिब्बती शरणार्थी राजकुमार रिन्चन उसके सहयोगी,धर्म प्रचारक शाहमीर को अधिकार के स्थान दिए.इसी कार्यकाल मे स्वातस्थान से प्रथम सूफी संत सैय्यद शाराफुद्दीन बुलबुल शाह और पर्शियन सरदार लंकर चाक्क शरणार्थी आये,चाक्क जमात कश्नील मे घुल मिल गयी.  ततार सेनापति दुल्चू के आक्रमण को शरणार्थी इस्लामिस्टोने दुल्चू की सहायता की,सहदेव के किश्तवाड़ पलायन बाद लुट,बलात्कार,धर्मान्तरण  हुवा.   जिस रिन्चन को सहदेव ने आश्रय दिया वह शाहमीर के षड़यंत्र का शिकार हुवा,उसने सेनापति रामचंद्र की हत्या कर गद्दी छीन ली और उसकी पुत्री कोटारानी से विवाह करने बौध मत का त्याग करने का मन बना ही लिया था शाहमीर और बुलबुल शाह  के दबाव मे इस्लाम का स्वीकार किया इस प्रकार कश्नील पर प्रथम इस्लामी शासक मलिक सदरुद्दीन बना,परन्तु सत्ता शाहमीर के पास थी, जिसके कारन कश्मीर बना.रिन्चन की मृत्यु १३२० बाद पुत्र हैदर और कोटारानी शाहमीर के कब्जे मे रहे.वीरांगना कोटारानी के बलिदान पश्चात् शाहमीर ने राजभाषा संस्कृत के जानकर पंडितो को साथ जोड़ा तो हमदानी बाप बेटे ने ७०० अनुयायी मिलकर धर्मान्तरण को गति दी. सिकंदर ने प्रधान मंत्री सुहा भट्ट को सैफुद्दीन बनाया और हिन्दू संस्कृति ध्वस्त की.उसके पुत्र जैनुल आबदीन ने राजभाषा फारसी बनायीं. असाध्य रोग को पंडित श्रीभट्ट ने ठीक किया तो संपत्ति नकारनेवाले वैद्यराज की मांग पर बंदी हिन्दू मुक्त किये लुटी सम्पत्ति लोटाई,धर्मान्तरण रोका। अमरनाथजी के दर्शन करने जाने लगा.

धर्मनिष्ठ श्री भट्ट ने सामाजिक विषमता नष्ट कर हिन्दू समाज को कश्मीरी पंडित बनाया.जैनुल पुत्र हैदर १४७४ कार्यकाल मे फिर वही आरम्भ हुवा.१ वर्ष मे २४,००० हिन्दू धर्मान्तरित किये.१४७५ बाद अत्याचार के विरोध मे चक्क शिया पंथी बने और सैय्यदो का विरोध करने हिन्दुओ का साथ दिया,धर्मंतारितो को शिया पंथ मे जोड़ा आगे युसूफ चाक्क ने १६ वि शताब्दी मे  कब्ज़ा किया तो उसके अत्याचार से मुक्ति पाने हिन्दुओने लाहोर सामंत मानसिंह से सहायता मांगी. युसूफ को हटाकर याकूब सत्तासीन हुवा उसके अत्याचार से हिन्दू ,सुन्नी त्रस्त हुए तब प्रतिनिधि मंडल शैख़ शरीफ और बाबा दावूद ख्की के नेतृत्व मे अकबर के पास आये,उसके मीर कासिम ने चाक्क सत्ता भंग की. विकास हुवा जहाँगीर ने मिरू पंडित को सेनापति बनाकर सत्ता संभाली,शाहजहाँ ने अली मर्दन को राज्यपाल तो पंडित महादेव को सलाहकार बनाया,परन्तु महादेव के विरोध मे ख्वाजा माफ़ ने षड्यंत्र किया. सन १६६६ शाहजह की मृत्यु बाद औरंगजेब ने अपने शासन कालमे १४ धर्मांध प्रशासक दिए, तिलक जनेऊ शिखा की रक्षा करने गुरु श्री तेग बहादुर सोढ़ी आगे आये और अपने शिष्य सतिदास,मतिदास,दयालदास के साथ चांदनी चौक मे बलिदान दिया.मुहमद शाह के कार्यकाल मे कश्मीर सूबेदार अब्दुल समद बना तब कुछ समय ठीक था ,अफ़ग़ान सरदार नादिर शाह का आक्रमण हुवा बाद मे अहमद शाह अब्दाली ने १७५२ मे अब्दुल्ला खान आया उसे अब्दुल हसन ,सुखजीवन मल्ला ने मार कर सत्ता संभाली मल्ला ने अब्दाली की सत्ता नकारी और एकात्मता स्थापित कर विकास किया.उसकी हत्या पश्चात् महामंत्री पंडित कैलाश धर कश्मीर छोड़ गए अफ़ग़ान सरदार लाल मुहम्मद खान ने कब्ज़ा कर लुट लिया,खुर्रम खान के सामने भाग खड़ा हुवा .खुर्रम ने कैलाश धर को सुबेदारी दी और काबुल गया तो मीर फकीरुल्ला को विरोध मे खड़ा किया गया,उसने बामबा जमात के धर्मंतारितो को हिन्दुओ के विरोध मे खड़ा किया .कट्टर पंथियों ने कैलाश धर की हत्या की.  सन १७७६ अफ्घान सरदार हाजी करिम्दाद खान ने कब्ज़ा किया जिजिया लगाया ,उसका पुत्र आज़ाद खान ने पंडित दिलाराम को महमंत्री नियुक्त किया उसे कट्टर पंथी यो ने सत्ताच्युत करवाया .सन १७७२ अफाघन मीर हाजर खान सत्ता मे आया उसने १७९३ दिलाराम की हत्या की.असंख्य हिन्दुओ की हत्या कर दल लेक मे डुबाया उसे काबुली सेना ने बंदी बनाया. १८०७ मे अत्ता मुहमद खान ने कश्मीर लिया बलात्कार की सीमा लांघी गयी,१८१३ अफ्घनी आझिम खान  ने सलाहकार सहजराम को नियुक्त किया.महाराजा रंजित सिघ के आक्रमण का आरोप हिन्दुओ पर मकर उन्हें निर्वासित कर दिया.