24 दिसंबर 2014

"भारतरत्न" पर स्वातंत्र्यवीर सावरकरजी का अंतिम भाषण !

२६ दिसंबर १९६० ब्रिटिश सरकार द्वारा सावरकरजी को सुनाई दो आजीवन कारावास का अंतिम दिन अस्वास्थ्य के कारन हिन्दू महासभा द्वारा आयोजित "मृत्युंजय दिन" के कार्यक्रम में भाषण नहीं किया। 
१५ जनवरी १९६१ स पा महाविद्यालय पुणे के भव्य प्रांगण में २ लक्ष जनसमुदाय के समक्ष पेट में वेदना को सहकर भाषण दिया। इस भाषण में उन्होंने सरकार उन्हें भारतरत्न क्यों नहीं देती ? सावरकर प्रेमियों की इस शिकायत का उत्तर देते हुए कहां कि,
"इसके पश्चात मुझे किसी भी सन्मान की आवश्यकता नहीं। हिन्दुस्थान के २०/२५ विद्यापीठों ने प्रदान की MLD जैसी पदवियाँ मेरे पास धूल खा रही है। Phd  की पदवियों का भी वैसा ही है। ५० वर्ष पूर्व मुंबई सरकार ने वापस ली मेरी BA की पदवी परसो ही मुझे वापस मिली है। 
मुझे राष्ट्रपति नहीं बनाते ! इसपर असंतोष व्यक्त करनेवालो को मुझे पूछना है कि,मेरे जन्म दिन पर सावरकर सदन के सामने लोग दर्शन के लिए खड़े रहते है। क्या यह कम सन्मान है ? राष्ट्रपति पद से क्या कम सन्मान है ?
भगूर की मेरी जायदाद वापस नहीं करते ! इसपर असंतोष व्यक्त करनेवालो को उत्तर देते हुए  कहा कि,यह देश स्वतंत्र होते ही ३/४ भूमि मुझे मिली। इससे अधिक भगूर की भूमि बड़ी है क्या ? वह मुझे राष्ट्रपति बनाएंगे ही नहीं। फिर भी बनाया तो,देश की सीमा पूर्णतः सुरक्षित दो ही वर्ष में,रशियन नेता क्रुश्चेव ने यूनो में खड़े रहकर बूट मारने के लिए उठाया उस ही प्रकार मैं भी अपना जूता उठाकर दिखाऊंगा। चीन का पंचशील तत्व हमें स्वीकार नहीं। तोप,विमान,रनगाडा,अणु बॉम्ब,और क्षेपणास्त्र हमारे पंचशील !
अंततः मुझे यही कहना है कि,हमारा देश समर्थ और सभी देशो के साथ लोहा लेने के योग्य बनाने के लिए, "महाराष्ट्र को हिन्दुस्थान का खड्गहस्त बनना चाहिए !" क्योकि,महाराष्ट्र के हाथ में शक्ती आई तो वह संपूर्ण हिन्दुस्थान की रक्षा के लिए प्रयोग करेगा ! अन्य प्रांतो की भांति अपने पैरो तक देखने की महाराष्ट्र को आदत नहीं !
सावरकरजी के स्वीय सचिव स्वर्गीय शांताराम उपाख्य बालाराव सावरकर ने लिखकर भेजे पत्र के अनुसार,"आज तक लोकमान्य,स्वातंत्र्यवीर ऐसी महान पदवी किसी को मिली है ?" ऐसा सावरकरजी का महान विचार था। 

सत्ता के लिए सावरकर प्रतिमा को पूजनेवाले और सावरकरजी की हिन्दू महासभा का उत्थान रोकने के लिए प्रयत्नशील सुन्नती हिंदुओ से "सावरकरजी को भारतरत्न" पुरस्कार संभव नहीं। यह मांग हम वर्षो से सावरकरजी के लिए कर रहे थे। १५ फरवरी १९९५ महामहिम राष्ट्रपति महोदय (श्री शंकर दयाल शर्मा) को हमने हिन्दू महासभा के द्वारा एक पंजीकृत पत्र के द्वारा "स्वातंत्र्यवीर सावरकरजी को भारतरत्न" देने की मांग की थी। २० फरवरी १९९५ को यह पत्र उन्हें मिला और एक पत्र प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजा था वह २६ फरवरी को "राष्ट्रपति भवन" पहुंचा। इन पत्रों का उत्तर मुझे ३० मार्च १९९५ को सचिव श्री सिध्दार्थ वामन मालवदे द्वारा भेजा गया।

इस पत्र के पश्चात उसका पीछा करना मेरा दायित्व था। वह हमने निभाया। अंततः भारत सरकार ने प्रकट किया कि,"भारतरत्न-पद्मविभूषण" जैसे पुरस्कार के लिए चयन करने के लिए कोई मार्गदर्शक तत्व नहीं है।" अटर्नी जनरल मिलान के बैनर्जी ने,सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष स्पष्टीकरण दिया। इस विषयपर इंदौर-केरल से दो याचिका भी लगी थी। ( UNI १५ नव्हम्बर १९९५)

१५ दिसंबर १९९५ को सर्वोच्च न्यायालय ने प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में समिती बनाकर महामहिम से चर्चा विनिमय कर पुरस्कार की घोषणा करने के लिए कहा था। मात्र न्या कुलदीप सिंग ने इन पुरस्कारों के लिए चयनित लोगो के ऊपर उंगली उठाई थी। (PTI १५ दिसंबर १९९५)

हिन्दू महासभा से जनसंघ निर्माण और सावरकर नेतृत्व को कुचलने श्यामाप्रसाद मुखर्जी का अपहरण कर सावरकर विरोध के पश्चात भी मुखर्जी को नेहरू के इशारेपर कश्मीर ले जाकर छोड़नेवाले,अल्पसंख्य आयोग के निर्माता,श्रीराम जन्मस्थान मंदिर परिसर को समतल करने का आदेश देनेवाले, कारगिल युध्द में पाकिस्तानी सैनिको को वापस जाने के लिए सैफ पैसेज देनेवाले "भारतरत्न ?" 

इस ही लिए अखिल भारत हिन्दू महासभा संस्थापक महामना पंडित मदनमोहन मालवीयजी का विकल्प चुनकर हिन्दू महासभा का विरोध कुचलने का षड्यंत्र गांधी-नेहरू-पटेल के इशारेपर जन्मे जनसंघी-भाजप-मोदी और समर्थको ने किया है।  

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें