10 दिसंबर 2014

नेहरू-पटेल के इशारेपर गुरूजी के आदेश पर "भारतीय जनसंघ" की स्थापना

देवतास्वरूप भाई परमानंदजी ने लाहोर में १९२२ में स्थापित "हिन्दू स्वयंसेवक संघ" का १९२३ अखिल भारत हिन्दू महासभा वाराणसी अधिवेशन में विलय करने के कारन, रा.स्व.संघ की स्थापना में धर्मवीर मुंजे,भाई परमानंद,सावरकर बंधू,संत पाँचलेगावकर महाराज हिन्दू महासभा नेताओ की भावना गैर राजनितिक सहयोगी युवक संघठन की थी,उसके विस्तारपर अधिक ध्यान दिया.ताकी संघ शिक्षा पध्दती से निकलकर युवक हिन्दू महासभा की राजनीती में सक्रीय हो.इसलिए हिन्दू महासभा ने पक्ष संघठन विस्तार पर अधिक बल नहीं  दिया.संघ-सभा परस्पर पूरक थे.(शिवकुमार मिश्र)
हिन्दू महासभा का विस्तार संघ विस्तार पर निर्भर रहा,स्वा.वीर सावरकरजी ने संघ का विलय हिन्दू महासभा में कर "हिन्दू मिलिशिया"स्थापन करने का १९३९ में प्रस्ताव रखा और संघ संस्थापक डा.मुंजे जी ने भी उसे समर्थन दिया.(वा.कृ.दानी) तरुण हिन्दू सभा के गणेश दा.सावरकरजी,डा.हेडगेवारजी सहमत नहीं थे.                        २१ जुन १९४० हेडगेवारजी का असमय निधन और पिंगळेजी का सरसंघ चालक बनना तय था मात्र गुरु गोलवलकरजी ने पद कब्जाकर ३ जुलै संघ नेतृत्व परिवर्तन के बाद संघ-सभा में दूरिया बढ़ गयी.यदि १९४८ तक भी हेडगेवारजी जीवित रहते तो हिन्दू महासभा केंद्रीय सत्ता में होती और अखंड भारत का विभाजन न होता.१९४६ के असेम्ब्ली चुनाव में गुरूजी ने सावरकर विरोध में हिन्दू महासभा की दर्शिका पर चुनाव लड़ रहे संघ के प्रत्याशियों को अंतिम समय नामांकन वापस लेने का तथा नेहरू के खुले समर्थन की घोषणा कर विभाजन में अप्रत्यक्ष योगदान दिया। इन दुरियोपर अनेक विद्वानों ने मत लिखे है,
दी.३०-३१ दिस.१९३९ कोलकाता हिन्दू महासभा राष्ट्रिय अधिवेशन में सावरकरजी ३ बार अध्यक्ष चुने गए.डा.हेडगेवारजी राष्ट्रिय उपाध्यक्ष,एम्.एम्.घटाटेजी कार्य समिति सदस्य,हिन्दू महासभा भवन मंत्री रहे गुरु गोलवल करजी महामंत्री पद का चुनाव हार गए,उस हार का ठीकरा सावरकरजी पर फोड़कर हिन्दू महासभा त्याग दी,हेडगेवारजी ने उनकी नाराजगी दूर करने संघ सह कार्यवाह बनाया.हेडगेवारजी के देहावसान बाद सावरकर विरोध में नेहरू-गाँधी के पिछलग्गू बनकर हिन्दू महासभा-सावरकरजी के प्रति घृणा फैली.(अधि.भगवानशरण अवस्थी)                                                                                                                     १९४५-४६ असेम्बली चुनाव कांग्रेस को मु.लीग ,हिन्दू महासभा से पराजय की आशंका थी,नेहरूने अखंड हिन्दुस्थान का आश्वासन दिया और गुरूजी को विश्वास दिलाया.गुरूजी ने कांग्रेस का खुला समर्थन करते हुए  संघ समर्थक सभाई प्रत्याशियों को अंतिम क्षण नामांकन वापस लेने का आदेश दिया,परिणाम स्वरुप १६%मत मिले और देश बट गया..कांग्रेस ने हिन्दुओ की ओरसे विभाजन करार पर हस्ताक्षर किया.(चित्र भूषण-मोडल टाउन दिल्ली)                                                                                                                               विभाजनोत्तर निर्वासितो की दुर्दशा जम्मू कश्मीर में घुसपैठ के बाद भी ५५ करोड़ पाक को देने का हठ,अनशन  गाँधी हत्या हिन्दू महासभा के पूर्व महामंत्री,हिन्दुराष्ट्र दल संस्थापक पं.नाथूराम गोडसे जी ने की.हिन्दू नेताओ पर अभियोग चला,उद्योग मंत्री मुखर्जी को नेहरू ने कहा "मंत्री मंडल में आपकी उपस्थिति विवादास्पद रहेगी जब तक आप हिन्दू महासभा त्यागते नहीं या हिन्दू महासभा के द्वार गैर हिन्दुओ के लिए खोले नहीं जाते."' इस संदर्भा में मुखर्जीजी ने हिन्दू महासभा के समक्ष प्रस्ताव रखे जिसमे "हिन्दू" शब्द निकालने की भी बात थी.दी.१४ अगस्त १९४८ अखंड हिन्दुस्थान संकल्प दिवस पर हुई कार्य समिति ने इन प्रस्तावों का खंडन किया.६ सप्तम.को मुखर्जी ने श.रा.दाते जी को पत्र लिखा. २४ दिस.१९४९ कोलकाता अधिवेशन डा.ना.भा.ख़रेजी की अध्यक्षता में सम्पन्न होने जा रहा था,सावरकरजी की उपस्थिति के कारन उत्साह था,सावरकरजी के अनुयायी उ.प्र.हिन्दू महासभा अध्यक्ष महंत दिग्विजय नाथ जी को श्री राम जन्मस्थान मंदिर विवाद समाप्त करने का दायित्व सौपा गया था ,अधिवेशन आरम्भ होने से पूर्व श्री राम जन्मस्थान में घंटा नाद हुवा."अधिवेशन में राज्यों का स्वरुप जातिवादी नहीं होना चाहिए,सभी जाती-धर्म-पंथ के लोगो को सामान विधि एवम समान अवसर हो ऐसी भावना व्यक्त कर प्रस्ताव पारित हुवा."पार्लियामेंट्री कमेटी ने जिन्हें हिन्दू महासभा के कार्यक्रम मान्य हो उनके लिए हिन्दू महासभा के द्वार खोले गए.
        २४ दिसंबर १९४९ श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन में हिन्दू महासभा को मिली सफलता से जनाधार न बढे इस उद्देश्य के साथ नेहरू-पटेल के इशारेपर गुरूजी के आदेश पर उ भा संघ चालक बसंतराव ओक ने मुखर्जी की भेट लेकर गुरूजी से मिलवाया। "पीपल्स पार्टी" की घोषणा हुई और संघ समर्थकों ने प्रादेशिक स्तर पर गठित इकाइयों को मिलाकर कानपूर अधिवेशन में "भारतीय जनसंघ" की स्थापना करते समय हिन्दू महासभा में सेंधमारी कर हिन्दू राजनीती को पलीता लगाकर वर्षो तक कांग्रेस के इशारे का पालन किया।  

2 टिप्‍पणियां:

  1. अगर सिर्फ हिंदुमहासभा होती तो देश कब का हिंदुराष्ट्र बनता। लेकिन खुद्द के स्वार्थ के लिये हिंदुओ मे फूट दाली।
    स्वतंत्र भारत के सबसे पहले जयचंद हे ये लोग।

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