7 दिसंबर 2014

श्रीकृष्ण जन्मभूमी तेरी कहानी !

त्रेतायुग में श्रीराम के बंधू शत्रुघ्न ने लवणासुर नामक राक्षस का वध कर मथुरा की स्थापना की थी। 
द्वापारयुग में यहां श्रीकृष्ण के जन्म लेने के कारण इस नगर की महिमा और अधिक बढ़ गई।यहां के मल्लपुरा क्षेत्र के कटरा केशवदेव स्थित कंस मामा के कारागार में लगभग पांच हजार दो सौ वर्ष पूर्व भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में रात्रि के ठीक १२ बजे श्रीकृष्ण ने देवकी के गर्भ से जन्म लिया था। यह स्थान उनके जन्म लेने कारण अत्यंत पवित्र माना जाता है. 
पुरातात्विक एंव ऐतिहासिक साक्ष है की श्रीकृष्ण के जन्मस्थान को विभिन्न नामो से जाना जाता था। पुरातत्वविद और तात्कालिक मथुरा के कल्लेक्टर एफ.एस.ग्रौजा के अनुसार केवल कटरा केशवदेव और आस पास के परिसर को ही मथुरा के रूप में जाना जाता जाता था। ऐतिहासिक साहीत्य का अध्यन करने के पश्चात ब्रिटीश पुरातत्वविद कैनिंगहैम इस निष्कर्ष पर पहुचे की वहां एक मधु नाम का राजा हुआ जिसके नाम पर उस जगह का नाम मधुपुर पड़ा , जिसे हम आज महोली के नाम से जानते है। राजा की हार के पश्चात् कारागार के आस पास की जगह को जिसे हम आज “भूतेश्वर” के नाम से जानते है, को ही मथुरा कहा जाता था। एक अन्य इतिहासकार डॉ वासुदेव शरण अगरवाल ने कटरा केशवदेव को ही श्रीकृष्ण जन्मभूमि कहा है। इन विभिन्न अध्ययनो एवं प्रमाणो के आधार पर मथुरा के राजनितिक संग्रहालय के दुसरे क्यूरेटर श्री.कृष्णदत्त वाजपेयी ने स्वीकार किया की कटरा केशवदेव ही श्रीकृष्ण की जन्मभूमि है।
पुरातात्विक प्रमाण एवं हमलों का इतिहास
* प्रथम मन्दिर
पुरातात्विक विश्लेषणों, पुरातात्विक पत्थरों के टुकडो के अध्ययन एवं विदेशी यात्रियों की लेखनियो से यह स्पष्ट होता है कि, इस स्थान पर समय समय पर कई बार भव्य मंदिर बनाये गए। प्रमाण बताते है की कंस की जेल के स्थान पर पहला मंदिर, जहाँ श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था, उसें श्रीकृष्ण के पडपोते “ब्रजनाभ ” ने बनवाया था।
ईसवी सन पूर्व ८०/५७ कालखंड के महाक्षत्रप सौदास के समय के एक शिलालेख से ज्ञात होता है जो कि ब्राह्मी लिपि में पत्थरों पर लिखे गए के “महाभाषा षोडश” के अनुसार वासु नाम के एक व्यक्ति ने श्रीकृष्ण के जन्मस्थान पर बलि वेदी का निर्माण करवाया। 
* द्वितीय मन्दिर
दूसरा मन्दिर विक्रमादित्य के काल में सन् ८०० के लगभग बनवाया गया था। संस्कृति और कला की दृष्टि से उस समय मथुरा नगरी बड़े उत्कर्ष पर थी। वैष्णव धर्म के साथ बौद्ध और जैन पंथ भी उन्नति पर थे। श्रीकृष्ण जन्मस्थान के संमीप ही जैनियों और बौद्धों के विहार और मन्दिर बने थे। यह मन्दिर सन १०१७-१८ में महमूद ग़ज़नवी के कोप का भाजन बना। इस भव्य सांस्कृतिक नगरी की सुरक्षा की कोई उचित व्यवस्था न होने के कारण महमूद ने इसे ख़ूब लूटा। भगवान केशवदेव का मन्दिर भी तोड़ डाला गया।
मीर मुंशी अल उताबी, जो की गजनी का सिपहसालार था ने तारीख-ए-यमिनी में लिखा है की,
” शहर के बीचो बिच एक भव्य मंदिर मौजूद है जिसे देखने पर लगता है की इसका निर्माण फरिश्तो ने कराया होगा। इस मंदिर का वर्णन शब्दों एंव चित्रों में करना नामुमकिन है। सुल्तान खुद कहते है की अगर कोई इस भव्य मंदिर को बनाना चाहे तो कम से कम १० करोड़ दीनार और २०० साल लगेंगे। “
हालाँकि गजनी ने इस भव्य मंदिर को अपने गुस्से की आग में आकर ध्वस्त कर दिया। स्थानीय निवासियों का कत्लेआम किया, युवतियों को उठाकर साथ ले गया। और जवाहरलाल नेहरु अपनी  पुस्तक “भारत की खोज” में गजनी को बहुत बड़ा वास्तु कला का प्रेमी बताता है, जिसने अव्यवस्थित मथुरा को तोडकर उसका कलात्मक निर्माण कराया। ये है नेहरु और कांग्रेसियों का सुनहरा इतिहास। 
* तृतीय मन्दिर
संस्कृत के एक शिला लेख से ज्ञात होता है कि महाराजा विजयपाल देव जब मथुरा के शासक थे, तब सन ११५० में जज्ज नामक किसी व्यक्ति ने श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर एक नया मन्दिर बनवाया था। यह विशाल एवं भव्य बताया जाता हैं। कटरा केशवदेव के पत्थरों पर संस्कृत भाषा में लिखे गए प्रमाणो से स्पष्ट होता है की मुस्लिम शासको की नजरो में यह मंदिर तबाही का लक्ष्य बन गया था। सिकंदर लोदी के शासन के दौरान श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर एक बार पुनः तोडा गया।
* चतुर्थ मन्दिर
मुग़ल बादशाह जहाँगीर के शासनकाल में श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर पुन: एक नया विशाल मन्दिर का निर्माण कराया गया। ओरछा के शासक राजा वीरसिंह जूदेव बुन्देला ने इस मंदिर की ऊँचाई २५० फीट बनाई थी। यह मंदिर आगरा से भी दिखाई देता था,ऐसा बताया जाता है। 
मुस्लिम शासको की बुरी नजर से मंदिर की रक्षा करने के लिए इसके आस पास एक ऊँची दिवार बनाने का भी आदेश दिया था। उसके अवशेष हम आज भी मंदिर के आस पास घुमकर देख सकते है।
* औरंगजेब द्वारा विशाल मंदिर का विनाश
फ्रांस एवं इटली से आये तत्कालीन विदेशी यात्रियों ने इस मंदिर की व्याख्या अपनी लेखनियो से  सुरुचिपूर्ण और वास्तुशास्त्र के एक अतुल्य एंव अदभुत कीर्तिमान के रूप में की। वो आगे लिखते है की,“इस मंदिर की बाहरी त्वचा सोने से ढकी हुई थी और यह इतना ऊँचा था की ३६ मिल दूर आगरा से भी दिखाई देता था। इस मंदिर की हिन्दू समाज में ख्याति देखकर औरंगजेब नाराज हो गया जिसके कारण उसने सन १६६९ में इस मंदिर को ध्वस्त करवाया। वह इस मंदिर से इतना चिढा हुआ था की उसने मंदिर से प्राप्त अवशेषों से अपने लिए एक विशाल कुर्सी बनाने का आदेश दिया। उसने श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर ईदगाह बनाने का भी आदेश दिया है. “ उपरोक्त कथन विदेशियों ने लिखे है। अगर ये सब किसी हिन्दू ने लिखा होता तो उसे भी किवंदती कहकर रानी पद्मावती की तरह नकार दिया जाता। विदेशी और मुसलमानों के लेखो का उदाहरण,'औरंगजेब को उसके इस दुष्कर्म की सजा मिली। मंदिर विध्वंस के पश्चात वह कभी सुखी नहीं रह सका और अपने दक्षिण के अभियान से जिन्दा वापस नहीं लौट सका। केवल उसके बेटे ही उसके विरुद्ध नहीं खड़े हुए बल्कि वे ईदगाह की भी रक्षा नहीं कर सके। और आख़िरकार आगरा और मथुरा पर मराठा साम्राज्य का अधिकार हो गया।
इसके बाद का इतिहास - मराठो ने कटरा केशवदेव को ईदगाह समेत अधिकार मुक्त घोषित कर दिया। स्थानीय लोग बाहरी हिंदूओ से अपेक्षा और आक्रांताओ से हाथ मिलाते रहने की हिंदुघाती परंपरा का वहन करते रहे, यह है हिन्दुओ का सच ! मथुरा पर कब्ज़ा हुआ तो स्थानीय निवासियो ने मस्जिद तोड़ने की बात तो दूर, मंदिर भी नहीं बनवाया।
सन १८०२ में लोर्ड लेक ने मराठो पर जीत हासिल की और मथुरा एवं आगरा इस्ट इंडिया कंपनी के अधीन चले गए। इस्ट इंडिया कम्पनी ने भी इसे अधिकार मुक्त ही माना। सन १८१५ में इस्ट इंडिया कम्पनी ने कटरा केशवदेव के १३.३७ एकड़ के हिस्से की नीलामी की घोषणा की। जिसे काशी नरेश पत्निमल ने खरीद लिया। इस खरीदी हुई जमीन पर राजा पत्निमल एक भव्य श्रीकृष्ण मंदिर बनाना चाहते थे। किन्तु मुसलमानों ने इसका यह कह कर विरोध किया की नीलामी केवल कटरा केशवदेव के लिए थी ईदगाह के लिए नहीं। 
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       सर्वविदित है की किस तरह मंदिर को तोड़ कर उसपर अवैध निर्माण किया गया.उसपर कोई भी विवाद और दावे करना सामाजिक रूप से कितना गलत है फिर भी हिन्दूओ की इस सहिष्‍णुता किसी की भावना आहत करना और साम्प्रदायिकता फैलाने की नही रही है |
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ब्रिटिश शासन काल से लेकर अभी तक कुल ६ बार मुस्लिम अभियोग हारे और न्यायालयीन पुष्टी के साथ पूरा कटरा केशवदेव १३.३७ एकड़ भूमी हिन्दुओं की है. 
* सन १८७८ में मुसलमानों ने पहली बार एक अभियोग दाखल किया। 
मुसलमानों ने दावा किया की कटरा केशवदेव ईदगाह की सम्पति है और ईदगाह का निर्माण औरंगजेब ने कराया था इसलिए इस पर मुसलमानों का अधिकार है। इसके लिए मथुरा से प्रमाण मांगे गए। 
तत्कालिक मथुरा कलेक्टर मिस्टर टेलर ने मुसलमानों के दावे को ख़ारिज करते हुए कहा की यह क्षेत्र मराठो के समय से स्वतंत्र है। जो कि, इस्ट इंडिया कम्पनी ने भी स्वीकार किया। जिसे सन १८१५ में काशी नरेश पत्निमल ने नीलामी में खरीद लिया। उन्होंने अपने आदेश में आगे जोड़ते हुए कहा की राजा पत्निमल ही कटरा केशवदेव, ईदगाह और आस पास के अन्य निर्माणों के मालिक है।
* दूसरी बार यह अभियोग मथुरा के न्यायधीश एंथोनी की अदालत में अहमद शाह बनाम गोपी आईपीसी धारा ४४७/३५२ के रूप में दाखिल हुआ। 
अहमद शाह ने आरोप लगाया की ईदगाह का चौकीदार गोपी कटरा केशवदेव के पश्चिमी हिस्से में एक सड़क का निर्माण करा रहा है। जबकि यह हिस्सा ईदगाह की संपत्ति है। अमहद शाह ने चौकीदार गोपी को सड़क बनाने से रोक दिया। 
इस अभियोग का निर्णय सुनाते हुए न्यायधीश ने कहा की," सड़क एंव विवादित जमीन पत्निमल परिवार की संपत्ति है। तथा अहमद शाह द्वारा लगाये गए आरोप झूठे है।"
* तीसरा अभियोग सन १९२० में आगरा जिला न्यायलय में दाखिल किया गया।
इस मुक़दमे में मथुरा के न्यायधीश हूपर के निर्णय को चुनौती दी गयी थी। (अपील संख्या २३६ (१९२१) एंव २७६(१९२०)) । इस मुक़दमे का निर्णय सुनाते हुए पुनः न्यायलय ने आदेश दिया की," विवादित जमीन इस्ट इंडिया कंपनी द्वारा राजा पत्निमल को बेचीं गयी थी जिसका भुगतान भी वो ११४० रूपये के रूप में कर चुके है। इसलिए विवादित जमीन पर ईदगाह का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि ईदगाह खुद राजा पत्निमल की संपत्ति है।"
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संपूर्ण क्षेत्र पर हिन्दू अधिकारों की घोषणा
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* सन १९२८ में मुसलमानों ने ईदगाह की मरम्मत की कोशिश की। जिसके कारण यह विवाद पुनः न्यायालय में चला गया। 
पुनः न्यायधीश बिशन नारायण तनखा ने निर्णय सुनाते हुए कहा की," कटरा केशवदेव राजा पत्निमल के उत्तराधिकारियो की संपत्ति है। मुसलमानों का इस पर कोई अधिकार नहीं है इसलिए ईदगाह की मरम्मत को रोका जाता है।"
सन १९४४ में अखिल भारत हिंदू महासभा संस्थापक पंडित श्री मदन मोहन मालवीयजी की प्रेरणा से हिंदू महासभाई श्री.जुगल किशोर बिडलाजी ने श्री क्षेत्र १३,४०० रुपए में ७ फरवरी १९४४ को  खरीद लिया और हनुमान प्रसाद पोतदार, भिकामल अतरिया एवं मालवीयजी के साथ मिल कर मालवीयजी की मंदिर पुनरूद्धार की योजना बनाई। जो उनके जीवनकाल में पूरी न हो सकी, उनकी अन्तिम इच्छा के अनुसार बिड़लाजी ने २१ फ़रवरी १९५१ को एक ट्रस्ट बनाया।
* सन १९४६ में विवाद फिर न्यायालय में गया। इस बार भी न्यायालय ने कटरा केशवदेव पर राजा पत्निमल के वंशजो का अधिकार बताया जो अब श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट की संपत्ति है। क्योकि, इसे राजा पत्निमल के वंशजो ने इस ट्रस्ट तो बेच दिया था।
* अंतिम बार सन १९६० में पुनः न्यायलय ने आदेश देते हुआ कहा की:
“मथुरा नगर पालिका के बही खातो तथा दसरे प्रमाणो का अध्ययन करने से यह स्पष्ट होता है की कटरा केशवदेव जिसमे ईदगाह भी शामिल है का लैंड टैक्स श्रीकृष्ण जन्मभूमि संस्था द्वारा ही दिया जाता है। इससे यह साबित होता है की," विवादित जमीन पर केवल इसी ट्रस्ट का अधिकार है।"इस प्रकार एक बार नहीं पुरे छ: बार न्यायालयो ने श्रीकृष्ण जन्मभूमी मथुरा पर हिन्दुओ का अधिकार स्वीकार किया। अब इस देश के सत्ताधारी न्यायालय का निर्णय लागु करेंगे ?
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श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट की स्थापना १९५१ में हुई. परन्तु, उस समय मुसलमानों की ओर से १९४५ में किया हुआ एक अभियोग इलाहाबाद हाईकोर्ट में निर्णयाधीन था इसलिए ट्रस्ट द्वारा जन्मस्थान पर कोई निर्माणकार्य ७ जनवरी १९५३ से पूर्व विवाद निरस्त होने तक किया न जा सका।
उपेक्षित/विवादित अवस्था में पड़े रहने के कारण उसकी दशा अत्त्यंत दयनीय थी। कटरा के पूरब की ओर का हिस्सा सन १८८५ के आसपास तोड़कर बृन्दावन रेल लाइन निकाली गयी थी। अन्य तीन दिशाओ के परकोटा की भित्तीयां और उसके अगल बगल सटी कोठरियाँ जगह-जगह गिर गयी थीं और उसका मलबा फैला पड़ा था। श्रीकृष्ण चबूतरा का खण्डहर भी विध्वंस किये हुए मंदिर की विशालता के द्योतक के रूप में खड़ा था। 
चबूतरा पूरब-पश्चिम लम्बाई में १७० फीट और उत्तर-दक्षिण चौड़ाई में ६६ फीट है। इसके तीनों ओर १६ फीट चौड़ा पुश्ता था जिसे सिकन्दर लोदी से पहले कुर्सी की सीध में राजा वीरसिंह देव ने बढ़ाकर परिक्रमा पथ का काम देने के लिये बनवाया था। यह पुश्ता भी खण्डहर हो चुका था। इससे क़रीब दस फीट नीची गुप्त कालीन मंदिर की कुर्सी है जिसके किनारों पर पानी से अंकित पत्थर लगे हुए हैं।
उत्तर की ओर एक बहुत बड़ा गढ्डा था जो पोखर के रूप में था। समस्त भूमि का दुरूपयोग होता था, बलात स्थापित मस्जिद के आस-पास घोसियों की बसावट थी जो कि आरम्भ से ही मस्जिद का विरोध करते रहे हैं। 
न्यायालय दीवानी, फ़ौजदारी, माल, कस्टोडियन व हाईकोर्ट सभी न्यायालयों में एवं नगरपालिका में उनके चलायें गये दांवो में अपने सत्व एवं अधिकारों की पुष्टि तथा रक्षा के लिए बहुत कुछ व्यय व परिश्रम करना पड़ा। सभी विवादो के न्यायालयीन निर्णय जन्मभूमि-ट्रस्ट के पक्ष में हुए।
मथुरा के प्रसिद्ध वेदपाठी ब्राह्मणों द्वारा हवन-पूजन के पश्चात श्री स्वामी अखंडानन्द जी महाराज ने सर्वप्रथम श्रमदान का श्रीगणेश किया और भूमि की स्वच्छता का पुनीत कार्य आरम्भ हुआ। 
दो वर्ष तक नगर के कुछ स्थानीय युवकों ने अत्यन्त प्रेम और उत्साह से श्रमदान द्वारा उत्तर ओर के ऊँचे-ऊँचे टीलों को खोदकर बड़े गड्डे को भर दिया और बहुत सी भूमि समतल कर दी। कुछ विद्यालयों के छात्रो ने भी सहयोग दिया।भूमि के कुछ भाग के स्वच्छ और समतल हो जाने पर भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन एवं पूजन-अर्चन के लिए एक सुन्दर मन्दिर का निर्माण किया गया।
मंदिर में भगवान के बल-विग्रह की स्थापना,जिसको श्री.जुगल किशोर बिड़ला जी ने भेंट किया था,आषाढ़ शुक्ल-द्वितीया संवत २०१४ दिनांक २९ जून १९५७ को हुई,और इसका उद्घाटन भाद्रपद कृष्ण अष्टमी संवत २०१५ दिनांक ६ सप्तंबर १९५८ को 'कल्याण' मासिक (गीता प्रेस) के यशस्वी संपादक संतप्रवर श्री.हनुमान प्रसाद पोद्दार के कर-कमलों द्वारा हुआ। 
उसके बाद यहां भव्य मंदिर का निर्माण हुआ। भागवत भवन यहां का प्रमुख आकर्षण है। यहां पांच मंदिर हैं जिनमें राधा-कृष्ण का मंदिर मुख्य है। मथुरा का अन्य आकर्षण असिकुंडा बाजार स्थित ठाकुर द्वारिकाधीश महाराज का मंदिर है। यहां वल्लभ कुल की पूजा-पद्धति से ठाकुरजी की अष्टयाम सेवा-पूजा होती है। देश के सबसे बड़े व अत्यंत मूल्यवान हिंडोले द्वारिकाधीश मंदिर के ही है जो कि, सोने व चांदी के है। यहां श्रावण माह में सजनेवाली लाल,गुलाबी,काली व लहरिया आदि घटाएं विश्व प्रसिद्ध हैं।
मथुरा में यमुना के प्राचीन घाटों की संख्या २५ है। उन्हीं सबके बीचों-बीच स्थित है- विश्राम घाट। यहां प्रात: व सायं यमुनाजी की आरती उतारी जाती है। यहां पर यमुना महारानी व उनके भाई यमराज का मंदिर भी मौजूद है। विश्राम के घाट के सामने ही यमुना पार महर्षि दुर्वासा का आश्रम है।इसके अतिरिक्त मथुरा में भूतेश्वर महादेव,धु्रव टीला,कंस किला,अम्बरीथ टीला,कंस वधस्थल, पिप्लेश्वर महादेव,बटुक भैरव,कंस का अखाड़ा,पोतरा कुंड,गोकर्ण महादेव,बल्लभद्र कुंड,महाविद्या देवी मंदिर आदि प्रमुख दर्शनीय स्थल है।



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