26 दिसंबर 2014

१३ अप्रैल, १९१९ को घटित जालियाँवाला बाग नरसंहार और उधमसिंग

१३ अप्रेल १९१९ लाला कन्हैय्यालाल जी की अध्यक्षता में रौलेट एक्ट के विरोध में बैसाखी समारोह में जनसभा की अफवाह ब्रिटिश एजेंट हंसराज ने फैलाई. इस आवाहन पर बीस सहस्त्र जन जलियांवाला बाग़ में इकठ्ठा हुए.मात्र लाला कन्हैय्यालाल को इसकी भनक नहीं थी.जनसभा के आरम्भ होते ही हंसराज रुमाल हिलाकर बाग से बाहर हौल बाजार की ओर निकल पड़ा. (अ.भा.हिन्दू महासभा पूर्व राष्ट्रिय अध्यक्ष स्व.श्री.न.चिं.केलकर लो.तिलक चरित्र खंड-३ से)

जलियांवाला बाग़ दुर्घटना से बचे कटड़ा दुलो,अमृतसर निवासी आर्य समाजी-हिन्दू महासभाई स्व.श्री.ज्ञानी पिंडीदासजी ने लिखा वर्णन, " १३ अप्रेल १९१९ बैसाखी दोपहर हंसराज सुनार कांग्रेसी बाद में सरकारी साक्ष बना था ने घोषणा की थी की, 'सायं.४ बजे जलियांवाला बाग़ में एडवोकेट कन्हैय्यालाल की अध्यक्षता में भरी पब्लिक जलसा में बड़े बड़े नेता भाग लेंगे ! ' इंस्पेक्टर अब्दुल्ला जीप से मार्शल लो की घोषणा करते गया.आदेश की अवहेलना करने पर गोली चलने की सूचना भी दे गया था. कुछ सज्जन जाने के लिए उतावले थे,आचार्य देव प्रकाश रोक रहे थे.मैंने कहा बाग तक जाकर भीड़ देखकर वापस लौटेंगे और हम १०-१२ लोग चल पड़े. वहा पहुंचे ज्ञानीजी अपने साथी चौधरी हंसराज दत्त को लेकर लौट ही रहे थे. डा.गुरबक्श राय भाषण दे रे थे और कुर्सी पर लाला कन्हैय्या लाल की फोटो पड़ी थी. जनरल डायर ५० जवानों के साथ पहुंचा और गोलिया चलायी.डायर के दानवी कृत्य से बारह- चौदह सौ व्यक्ति शहीद हुए.ढाई तिन सहस्त्र लोग विकलांग घायल हुए।" ( मा.जनज्ञान अप्रेल २००८ से ) 


२६ दिसंबर १८९९ को जन्मे,उधम कंबोज भी १३ अप्रैल, १९१९ को घटित जालियाँवाला बाग नरसंहार के प्रत्यक्षदर्शी थे। इस घटना से वीर उधम तिलमिला गए और उन्होंने जलियाँवाला बाग की मिट्टी हाथ में लेकर माइकल ओ डायर को सबक सिखाने की प्रतिज्ञा ले ली। अपने मिशन को अंजाम देने के लिए उधम ने हंसराज की गद्दारी का प्रतिशोध लेने क्रां.उधम कम्भोज ने दाढ़ी बढाई पगड़ी पहनी,सिंह सजाया और उधमसिंह ने डायर को लन्दन जाकर गोलिया दागी। विभिन्न नामों से अफ्रीका, नैरोबी, ब्राजील और अमेरिका की यात्रा की। सन् १९३४ में उधम सिंह लंदन पहुंचे और वहां ९ ,एल्डर स्ट्रीट,कमर्शियल रोड पर रहे। एक कार खरीदी और साथ में अपना मिशन पूरा करने के लिए छह गोलियों वाली एक रिवाल्वर भी खरीद ली। भारत का यह वीर क्रांतिकारी माइकल ओ डायर को ठिकाने लगाने के लिए उचित समय की प्रतीक्षा करने लगा। जालियांवाला बाग हत्याकांड के २१ वर्ष पश्चात १३ मार्च १९४० को रायल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लंदन के काक्सटन हाल में एक बैठक थी जहां माइकल ओ डायर भी वक्ताओं में से एक था। उधमसिंह उस दिन समयपूर्व ही बैठक स्थल पर पहुंच गए। अपनी रिवॉल्वर उन्होंने एक मोटी किताब में छिपा ली थी। इसके लिए उन्होंने किताब के पृष्ठों को रिवॉल्वर के आकार में उस तरह से काट लिया था, जिससे डायर की जान लेने वाला हथियार आसानी से छिपाया जा सके।बैठक के बाद दीवार के पीछे से मोर्चा संभालते हुए उधमसिंह ने माइकल ओ डायर पर गोलियां दाग दीं। दो गोलियां माइकल ओ डायर को लगीं जिससे उसकी तत्काल मौत हो गई। उधमसिंह ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर दुनिया को संदेश दिया कि अत्याचारियों को भारतीय वीर कभी बख्शा नहीं करते। उधम सिंह ने वहां से भागने की कोशिश नहीं की और अपनी गिरफ्तारी दे दी। उन पर मुकदमा चला। अदालत में जब उनसे पूछा गया कि वह डायर के अन्य साथियों को भी मार सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा क्यों नहीं किया ? उधम सिंह ने जवाब दिया कि वहां पर कई महिलाएं भी थीं और भारतीय संस्कृति में महिलाओं पर हमला करना पाप है !
४ जून १९४० को उधमसिंह कंबोज को हत्या का दोषी ठहराया और ३१ जुलाई १९४० को उन्हें पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई।

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