2 अगस्त 2016

बौध्द मतावलंबी हिन्दू श्रीराम जन्मस्थान पर किस आधारपर अपना दावा कर रहे है ?

महाभारत में कहा गया है,"प्लावन से पूर्व इस वेद में कहे धर्म का नाम "सात्वत धर्म" था।" इसी धर्म का प्रचार मनु के वंश श्राध्ददेव के पुत्र इक्ष्वाकु ने किया। रामायण में श्रीराम को इक्ष्वाकु वंशी निरुपित किया गया है। श्रीराम का जन्म  उत्तर कौशल प्रमुख शाखा की ३९वी पीढ़ी में महाराज दशरथ के पुत्र के रूप में हुवा। चैत्र मासके शुक्ल पक्ष की नवमी को कर्क लग्न पुनर्वसु नक्षत्र,मध्यान्ह में सूर्य के मेष राशी में स्थित होने पर हुवा।कालिदास ने रघुवंश के १६ वे सर्ग में, जानकी हरण के कवी कुमार दास ने अयोध्या का सुन्दर वर्णन किया है।                                                                                                                                 
*जैन ग्रंथो में अयोध्या का वर्णन "तिलक मंजिरी"में धनपाल ने बढ़ कर किया है।अयोध्या नरेश ऋषभ राय और बाहुबली दो भाईयो में सत्ता संघर्ष हुवा। परन्तु,बाहुबली ने जैन मत का स्वीकार किया। काल पश्चात ऋषभ राय ने भी जैन मत का स्वीकार किया। चार तिर्थंकरो की जन्म भूमि अयोध्या ही रही है और विशेष यह की इनका एक ही वंश था,इक्ष्वाकु ! सूर्य वंशी आर्य क्षत्रिय !
 इक्ष्वाकु कुल की लिच्छवी शाखा में महात्मा बुध्द का जन्म हुवा। महात्मा बुध्द का सम्पूर्ण जीवन कौशल में बिता,जन्म कपिलवस्तु में,मुख्य निवास सरावती,धम्म प्रसार सारनाथ और महानिर्वाण कुशीनगर में हुवा जो कौशल प्रदेश में हुवा। भगवान बुध्द राजधानी अयोध्या आने का प्रमाण "दन्त धावन कुंड" है,किन्तु नगरी की दशा उस समय उन्नत नहीं थी।

 अलेक्झांडर पंजाब के रास्ते आया परन्तु १२ गणराज्यो ने आपसी भेद भुलाकर संयुक्त हमला कर लौटने को विवश किया.उसके पराजय को ध्यान में रखकर, "रोमन-कुषाण मिनेंडर ने वैष्णवो की एकात्मता पर प्रहार करने बुध्द मतावलंबी बनने का स्वांग किया। मगध सम्राट बृहद्रथ ने उसपर विश्वास किया और  मानवरक्त प्राशी रोमन सेना का आतंक आरम्भ हुवा। स्थानीय बुध्द प्रत्याक्रमण नहीं, सहायता करेंगे इस आत्मविश्वास के साथ मिनैडर ने वैष्णव मंदिर ध्वस्त करना आरम्भ कर दिया। बदरीनाथजी की मूर्ति नारदकुंड में फेंक दी।अयोध्या-मथुरा के जन्मस्थान घेरकर ध्वस्त किये।समस्त घटनाओ के लिए बृहद्रथ को दोषी मानकर उसके सेनापति पुष्यमित्रने बृहद्रथ की हत्या की और रोमनों को मार भगाकर मंदिर-स्तूप खड़े किये. दो बार अश्वमेध यज्ञ किया। मिराशी संशोधन मंडल को मंदिर शिलालेख में,"द्विरश्वमेध् याजिना:सेनापते: पुष्यमित्र्स्य षष्ठेन पुत्रेन केतनं कारितं ll "मिला है। उपरोक्त हार के कारण सभी हिन्दू अपने भेद नष्ट करके संगठीत होकर तीन महीने के संघर्ष के पश्चात शुंग वंशीय राजा द्युमत्सेन ने मिनेंडर को परास्त किया और मार गिराया। फिर भी कुषाणों के आक्रमण बारंबार होते रहे,इसलिए श्रीराम जन्मस्थान पर मंदिर बनाने में बाधा आती रही।आक्रान्ता मिनैडर पर "मिलिंदपन्ह"ग्रन्थ लिखनेवाले आचार्योने उसकी अस्थियोपर कब्ज़ा करने में प्राण गवाकर भी रोमनोंसे आधा हिस्सा लेकर स्तूप बनाए थे। इस्लामी शासनकाल में वहा बौध्द मतावलंबियो का कब्ज़ा ही नहीं था। 
 गढ़वाल नरेश गोविन्दचन्द्र शैव (१११४-११५४) ने शरणार्थी,घुसपैठियों पर "तुरष्कदंड" (निवासी कर) लगाया था। इन्होंने बुध्द मतावलंबी कुमारदेवी से विवाह कर भिक्षुओ को ६ गाव इनाम दिए,बर्मा के पेगोंग में महाबोधि प्रतिकृति मंदिर बनवाया.अपने सामंत कन्नोज नरेश नयचंद को ८४ कसोटी के गढ़वाली पत्थर भेजकर अयोध्या में श्रीराम जन्मस्थान पर विशाल मंदिर का निर्माण किया.जिसके प्रमाण भी १८ जुन १९९२ को उत्खनन में प्राप्त ३९ अवशेषोमें से एक २० पंक्ति शिलालेख से ज्ञात होता है.

मंदिर के सन्दर्भ-१)ऑस्ट्रेलियन मिशनरी जोसेफ टायफेंथालेर ने १७६६-१७७१ अयोध्या यात्रासे लौटकर १७८५ में लिखी हिस्ट्री अन जोग्राफी इंडिया के पृ.२३५-२५४ पर लिखे सन्दर्भ के अनुसार,"बाबरने राम जन्मभूमि स्थित मंदिर ध्वस्त कर मस्जिद बनवाने का प्रयास किया.उसमे मंदिर के मलबे से निकले ८४ कसोटी के स्तंभों का प्रयोग किया. मुसलमानों से लड़कर हिन्दू वह पूजा अर्चना करते है,परिसर में बने राम चबूतरा पर परिक्रमा की जाती है."
२)१६०८-१६११ भारत भ्रमण आये विल्यम फिंच की अर्ली ट्रेवल्स इन इंडिया के पृ.१७६ पर रामफोर्ट-रानिचंड का उल्लेख है.
३)गैझेटियर ऑफ़ दी टेरीटरिज अंडर गव्हर्मेंट ऑफ़ इस्ट इंडिया कं.लेखक एडवर्ड थोर्नटन पृ.क्र.७३९-४० पर १८५४ में लिखते है,"बाबर ने मस्जिद के लिए मंदिर गिराकर उसी के मलबे से १४स्तम्भ चुनकर लगवाए."
४)इनसाय्क्लोपीडिया ऑफ़ इंडिया १८५७ एडवर्ड बाल्फोअर,"राम जन्मस्थान,स्वर गडवार,माता का ठाकुर ३ मंदिर गिराकर मस्जिद कड़ी की गयी."
५)हिस्टोरिकल स्केच ऑफ़ फ़ैजाबाद ले. कार्नेजी १८७०,"राम मंदिर में काले से वजनदार स्तम्भ थे,उनपर सुन्दर नक्काशिकामकिया गया था,मंदिर गिराने के पश्चात मस्जिद में लगाया गया."
६)गैझिटियर ऑफ़ दी डाविन्स अवध -१८७७,बाबर ने १५२८ में मंदिर गिरक मस्जिद बनवाई
 ७)पर्शियन ग्रन्थ हदीका इ शहादा ले.मिर्जा जान १८५६ लखनोऊ पृ.७,"मथुरा,वाराणसी, अयोध्या में हिन्दू आस्था जुडी है,जिन्हें बाबर के आदेश से ध्वस्त कर मस्जिदे बनाई गयी."
८)ब्रिटिश नियुक्त जन्मभूमि व्यवस्थापक मौलवी अब्दुल करीम की ग़ुमइश्ते हालात इ अयोध्या में मान्य किया है की,मंदिरों को गिराकर मस्जिद बनायीं गयी थी.
९)अकबरनामा आइन ए अवध अब्दुल फाजल १५९८,अन्य                                                                    
मंदिर गिराने के पश्चात मस्जिद बनाते समय २ वर्ष युध्द जारी था हंसबर नरेश रणविजयसिंह,महारानी जयराजकुमारी उनके राजगुरु पं.देवीदीन पाण्डेय के बलिदान के बीच स्वामी महेशानंद साधु सेना लेकर लडे. मस्जिद बनाने जितनी दिवार दिनभर बन जाती रात में टूट जाती थी तब बाबर ने हिन्दू संतो की राय मांगी, और साधुओ के भजन पूजन का स्थान बनवाया,मीनार तोड़ दिए,वजू के लिए जलाशय नहीं बनवाया,द्वार पर सीता पाकस्थान लिखवाया,छत में चन्दन की लकड़ी लगवाई।
  १९४९ अयोध्या हिन्दू महासभा आंदोलन :- हिन्दू महासभा अंतर्गत कार्यरत श्रीरामायण महासभा के प्रधान महंतश्री रामचंद्रदास ,सं.मंत्री गोपालसिंह, संघटक श्री.अभिरामदास की सार्वजानिक सभा हनुमान गढ़ी पर संपन्न हुई.इस सभा में तय हुवा प.पू.श्री.वेदांती राम पदार्थदास जी की अध्यक्षता में का.कृ.९ को रामचरित मानस के १०८ नव्हान्न पाठ;समापन उ.प्र.हिं.म.स. अध्यक्ष महन्त् श्री दिग्विजयनाथ जी की उपस्थिति में,स्वामी करपात्रीजी महाराज,कांग्रेसी बाबा राघवदास,बड़ा स्थान महंत श्री.बिन्दुगाद्याचार्यजी,रघुवीर प्रसादाचार्यजी के भाषण प्रवचन हुए.वही मार्गशीर्ष शु.२ श्रीराम जानकी विवाह तिथि पर मानस के ११०८ नव्हान्न पाठ का संकल्प हुवा। निर्मोही अखाडा के महन्त् श्री बलदेवदास ,जन्मस्थान पुजारी तथा हिन्दू महासभा नगर कार्याध्यक्ष श्री.हरिहरदास ,पार्षद स्वर्गीय श्री परमहंस रामचंद्रदास,तपस्वियों की छावनी के अधिरिसंत दास,बाबा वृन्दावन दास,हिन्दू महासभा फ़ैजाबाद जिला अध्यक्ष ठा.गोपालसिंह विशारद जी ने सम्पूर्ण मंदिर परिसर साफ़,समतल किया.इसपर कब्रे उखाड़ फेंकने के आरोप हुए और न्यायालय में निर्दोष ! ११०८ से अधिक पाठकर्ता जन्मस्थान से हनुमान गढ़ी तक कतार में, इन में मुसलमान भी पाठ कर्ता थे.   पक्षकार हिन्दू महासभा ३/१९५० 

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