9 अप्रैल 2016

कन्हैय्या,बटवारे के पश्चात यह हिन्दुराष्ट्र है !

Press Note-


JNU फेम कन्हैय्या कॉन्स्ट्रटूशन क्लब में प्रेस वार्ता को सम्बोधित कर रहा था। {ABP News 9 April 2016} ये वामपंथी मनुवाद-ब्राह्मणवाद की बात करते है और राष्ट्रवाद का अर्थ उससे जोड़कर बताते है। मेरे विचार को वह ठीक नहीं लगा। इसलिए यहाँ लिख रहा हूँ।
१९२५ में संघ और वामपंथी दोनों का आगमन हुआ है। एक संगठन है और एक दल ! मात्र १९४६ के असेम्ब्ली चुनाव में नेहरु ने वामपंथियों का समर्थन नहीं माँगा। गुरूजी गोलवलकर का समर्थन माँगा था। इतना ही बताना ठीक होगा।
कन्हैय्या ,संघ पर आरोप लगा रहा है ,"संघ हिन्दुराष्ट्र स्थापित करना चाहता है और हिन्दुराष्ट्र का बेस ब्राह्मणवाद-मनुवाद है !"
कन्हैय्या को देश के सामाजिकता का ध्यान नहीं है। केवल अफु गोली खिलाकर जिसप्रकार सामाजिक-राष्ट्रिय भेद का विष वामपंथी खिलाते है उसका वह वमन है और कुछ नहीं। मनुवाद क्या है ? मनु प्रभु श्रीराम के पूर्वज थे और शासन व्यवस्था का सञ्चालन करने के लिए बनाया संविधान मनुस्मृती थी। ब्राह्मण का इसपर कोई अधिकार नहीं। ब्राह्मण देश का अतिअल्पसंख्य हिन्दू समाज है। इसलिए कन्हैय्या का आरोप गलत है।
कन्हैय्या ने,"हिन्दुराष्ट्र स्थापना की बात कही है !" वह अविश्वसनीय है। यदि ऐसा होता तो,१९४६ के चुनाव में मुस्लिम लीग और हिन्दू महासभा के बिच मतों का बटवारा होता और कांग्रेस तीसरे नंबर पर होती। विभाजन हुआ वह गुरूजी और नेहरु के सत्ता सहयोग के कारन। हिन्दू महासभा सत्ता में आती तो,अखण्ड हिन्दुराष्ट्र बना देखा होता। संघ हिन्दुराष्ट्र बनाने के इच्छुक होती तो,नेहरु-पटेल के इशारे पर "जनसंघ" का निर्माण हिन्दू महासभा तोड़कर क्यों किया होता ?

रही बात मुद्दे कि ,"अल्पसंख्या के आधारपर बटवारे के पश्चात यह हिन्दुराष्ट्र है ! क्योकि,यहाँ संविधानिक समान नागरिकता लागु नहीं है !"
राष्ट्रिय प्रवक्ता हिन्दू महासभा Pramod Pandit Joshi

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