31 मार्च 2016

सावरकर विरोधी गद्दार और उनकी पोलखोल !

कांग्रेस -गांधी नेहरु परिवार की विरासत और रियासते उनकी गुलाम बनी हुई है। वास्तव में नेहरु ने धन कैसे जोड़ा ? यह एक संशोधनीय विषय है।कांग्रेस नेता नेहरु का विदेश प्रेम और ब्रिटेन से प्रामाणिकता, नेहरू परिवार ने निभाई ,इसलिए ब्रिटिश एजंट तक कहा गया।
सन १९२२-२३ कांग्रेस के कथित मालिक (स्वामी) मोतीलाल नेहरू ने १ कोट ६८ लक्ष का प्रचंड भ्रष्टाचार किया था। उसका खुलासा इसलिए करना आवश्यक है क्यों की हिन्दू महासभा को इसमें फसाया गया और कथित रूप से दलित समाज को धर्मान्तरण के लिए प्रयास किये गए।
              चिरोल की लन्दन केस में लोकमान्य तिलक जी को आर्थिक सहाय्यता हेतु राष्ट्रिय स्तर पर दान इकठ्ठा किया जा रहा था।तिलक जी को लन्दन से आते ही शनवार बाड़ा,पुणे में सार्वजनिक सन्मान के साथ ३.२५ लक्ष रुपये महाराष्ट्र से दे दिए गए थे।राष्ट्रिय कोष का नाम "तिलक स्वराज्य फंड" था।जो दिनों दिन बढ़ रहा था।मोतीलाल नेहरू ने तिलक जी की उपेक्षा कर यह पार्टी फंड है कहकर देने से मना किया।बताएं ,गद्दार कौन ?
                रु.१,३०,१९,४१५ आणा १५ का यह फंड योग्य रूप से व्यय करने के लिए एक अनुदान उपसमिति लोकमान्य तिलक जी के निधनोत्तर ३१ जुलाई १९२१ में गठित हुई थी।परन्तु ,६ नवम्बर १९२१ को उसे भंग कर कांग्रेस वर्किंग कमिटी ने कोलकाता तथा नागपुर कार्यकारिणी में खिलाफत आन्दोलन को आर्थिक सहायता हेतु प्रस्ताव पारित कर तिलक स्वराज्य फंड वितरण का सर्वाधिकार अपने पास रख लिया। कॉंग्रेस समिती ने कोई कारण बताये बिना धन का वितरण राष्ट्रद्रोहियो को किया।
             मौलवी बदरुल हसन रु.४०,०००००
             टी.प्रकाश                 रु.   ७,०००००
              च.राजगोपालाचारी  रु.    १,०००००
             बरजाज                   रु.२०,०००००
             बै.मो.क.गाँधी          रु.१,००,०००००
                          कुल       रु.१,६८,०००००

            प्रश्न अब खड़ा होता है,फरवरी १९२२ बार्डोली कांग्रेस वर्किंग कमिटी ने अछूतोध्दार के लिए २ लक्ष रु.घोषित किये।जून में हुई लखनऊ कमिटी में," २ लक्ष कम है !" कहकर बढाकर ५ लक्ष किया।अछूतोध्दार समिति के निमंत्रक हिन्दू महासभा नेता स्वामी श्रध्दानंद जी को नियुक्त किया गया।तिलक स्वराज्य फंड का संचयन बढ़ ही रहा था। अछूतोध्दार की मांगे बढ़ न जाये इसलिए,मई १९२३ कार्य समिति में, "अछूतोध्दार, कांग्रेस का काम नहीं है,अछुतता का पालन हिन्दू करते है इसलिए इस कार्य की जिम्मेदारी हिन्दू महासभा की है !" इस प्रस्ताव के साथ यह भी प्रस्ताव किया गया कि,"इस जिम्मेदारी को स्वीकार करने की विनती हिन्दू महासभा को भी की जाये ! " अछूतोध्दार का यह कार्य हिन्दू महासभा पर सौप कर कांग्रेस जिम्मेदारी से मुक्त हुई।
         अछूतोध्दार में मुख्य कार्य शुध्दिकरण का था। जो, मुसलमानों को रास नहीं आया क्यों की,धर्मान्तरण बंद हो गया था। स्वामी जी पर दबाव डालकर उन्हें पदमुक्त कर वहा कांग्रेसी नेता  गंगाधरराव देशपांडे को नियुक्त किया गया। अब ५ लक्ष खर्च करने की भी आवश्यकता नहीं रही ! अछूतोध्दार के लिए पांच संस्थाओ को रु.४३,३८१ ; अलग अलग प्रांतीय कांग्रेस कमिटियो को रु.४१,५०,६६१ दिए गए। उसमे से रु.२४ लक्ष गाँधी ने १८% कथित रूप से अछूत जनसँख्या के गुजरात को दिए। ६९% कथित अछूत जनसँख्या के महाराष्ट्र को १ . ६% सहायता मिली तो,१८% जनसँख्या के कर्णाटक को ०.९३% दिए। अगले कुछ वर्ष में कांग्रेस ने तिलक स्वराज फंड का धन कहा, कैसे खर्च किया ? अभी तक किसी को पता नहीं। उसपर डॉ.आम्बेडकर जी ने उद्विग्नता से कहा की, " It is enough to say that never was there such an organized look of public mony."
        हिन्दू घाती कांग्रेस अछूतोध्दार के प्रति कितनी बेईमान थी यह स्पष्ट होता है तथा लोकमान्य तिलक जी के नाम जमा धन,नेताजी सुभाष को विट्ठलभाई पटेल ने दिया धन नेहरु ने किस प्रकार लुटा वह भी स्पष्ट होता है।
            आजकल होड़ लगी है ,पहले सावरकर हमारे कहनेवाली भाजप गांधी-पटेल-सुभाष हमारे ! कह रही है। वही , सावरकर को उठा के फेंक दिया ? राहुल गांधी संसद में भाजप को पूछ रहे है। पुणे में १९३९-१९४१ ढमढेरे वकील के घर में संविधान पर मसौदा बनाया जा रहा था , आम्बेडकरजी पुणे नगर हिन्दू सभा के प्रार्थमिक सदस्य थे। आगे सावरकरजी के शिफारिस / ,समर्थन पर विधिज्ञ आम्बेडकर मसौदा समिती के अध्यक्ष बनाए गए। आगे चलकर उन्होंने कांग्रेस से अपमानित होकर मंत्री पद त्याग किया।
         संविधानिक समान नागरिकता के विरोधक १२५ वी आम्बेडकर जयंती पर भाजप-कांग्रेस उन्हें चुनावी लाभ के लिए भुनाने लगी है। मात्र जब हिन्दू महासभा आम्बेडकर महानिर्वाण पर चैत्यभूमी आनेवाले दर्शनार्थियों की आवाजाही के लिए विशेष ट्रेन छोड़ने के लिए रेल मंत्रालय से सतत प्रयत्नशील थी। राम नाईक,रामविलास पासवान तक ने अनुलक्षित किया। स्व प्रा राम कापसे (पूर्व राज्यपाल) ने प्रयास करने का वचन देकर पत्राचार माँगा। सहयोग शून्य ! ममता बैनर्जी को लिखा तो,तत्काल प्रतिउत्तर आया और "चैत्यभूमी दादर-मुंबई विशेष ट्रेन" आरम्भ हुई ! अब बताए कोई आम्बेडकर किसके ?

सावरकर विरोधी गद्दार !

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