30 नवंबर 2018

कांधे मुंज जनेऊ साजे !

पराशर संहिता में लिखा गया है कि,स्वयं सूर्यदेव ने हनुमानजी के विवाह पर यह कहा कि,"यह विवाह ब्रह्मांड के कल्याण के लिए ही हुआ है और इससे हनुमान का ब्रह्मचर्य भी प्रभावित नहीं हुआ।"
हनुमानजी ने भगवान सूर्य को अपना गुरु बनाया था।हनुमान,सूर्य से अपनी शिक्षा ग्रहण कर रहे थे... सूर्य कहीं रुक नहीं सकते थे इसलिए हनुमानजी को सारा दिन भगवान सूर्य के रथ के साथ साथ उड़ना पड़ता और भगवान सूर्य उन्हें तरह-तरह की विद्याओं का ज्ञान देते थे ।

परंतु, हनुमानजी को ज्ञान देते समय सूर्य के सामने एक दिन धर्मसंकट खड़ा हो गया।

कुल ९ प्रकार की विद्याओं में से हनुमानजी को उनके गुरु ने पांच तरह की विद्या तो सिखा दी परंतु बची चार प्रकार की विद्या और ज्ञान ऐसे थे जो केवल किसी विवाहित को ही सिखाए जा सकते थे।हनुमानजी पूरी शिक्षा लेने का प्रण कर चुके थे और इससे कम पर वो मानने को तैयार नहीं थे।

यहां भगवान सूर्य के सामने संकट था कि वो धर्म के अनुशासन के कारण किसी अविवाहित को कुछ विशेष विद्याएं नहीं सिखा सकते थे।

ऐसी स्थिति में सूर्य देव ने हनुमान को विवाह की सलाह दी.. और अपने प्रण को पूरा करने के लिए हनुमान भी विवाह सूत्र में बंधकर शिक्षा ग्रहण करने को तैयार हो गए।

परंतु, हनुमानजी के लिए वधु कौन हो और कहा से वह मिलेगी इसे लेकर सभी चिंतित थे।ऐसे में सूर्यदेव ने अपने शिष्य हनुमान को राह दिखलाई।

भगवान सूर्य ने अपनी परम तपस्वी और तेजस्वी पुत्री सुवर्चला को हनुमान के साथ विवाह के लिए तैयार कर लिया।

इसके बाद हनुमानजी ने अपनी शिक्षा पूर्ण की और सुवर्चला सदा के लिए अपनी तपस्या में लिन हो गई।

इस प्रकार हनुमानजी भले ही विवाह के बंधन में बंध गए हो परंतु शारिरीक रूप से वे आज भी एक ब्रह्मचारी ही हैं।

पराशर संहिता में तो लिखा गया है की स्वयं सूर्यदेव ने इस विवाह पर यह कहा कि,यह विवाह ब्रह्मांड के कल्याण के लिए ही हुआ है और इससे हनुमान का ब्रह्मचर्य भी प्रभावित नहीं हुआ ..

वाल्मीकि रामायण के युध्द काण्ड में राक्षस,वानर आदि मनुष्य थे।सुग्रीव पक्ष के लोगो को मनुष्य के रूप में युध्द न करने का आदेश देकर केवल सात व्यक्ति ही पुरुष के रूप में लड़ेंगे। शेष वानर रूप धर कर लड़ेंगे ऐसा लिखा है।

* युध्द काण्ड सर्ग ३७ श्लोक ३३,३४,३५ -

न चैव मानुषं रूपं कार्य हरिभिरहवे ;

एषा भवतु नः संज्ञा युध्देsस्मिन् वानरे बले .

वानर एव नश्चिह्रं स्वजनेsस्मिन् भविष्यति ;

वयं तु मानुषेणैव सप्त योत्स्यामहे परान् .

अहमेव सः भ्रात्रा लक्ष्मणेन सहौजसा ;

आत्मना पञ्चमश्चयं सखा मम विभीषण: .
हनुमान जी को व्याकरण का ज्ञाता कहा है.युध्द वेद संगत कहनेवाले वेदज्ञ विद्वान कहा है। रामायण की निम्न पंक्तिया हनुमान जी की शास्त्रीय योग्यता दिखाने पर्याप्त है। 
ना ऋग्वेदविनीतस्य ना यजुर्वेदधारिणः ;

ना सामवेदविदुषः शक्यमेवं प्रभाषितुम् .

नूनं व्याकरणं कृत्स्नमनने बहुधा श्रुतम् ;

बहुव्याहरतानेन न किञ्चिदपशब्दितम् .।.

अब हनुमानजी को अविवाहित ,पिछड़ी जाती या वनवासी कह सकता है वह मुर्ख है !

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